Lal Bahadur Shastri Jayanti 2024: कांटों की सेज था लाल बहादुर शास्त्री का प्रधानमंत्री पद! जानें 'गुदड़ी के लाल' की अंतहीन संघर्ष गाथा!
आजाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का बचपन और किशोरावस्था बेहद दुश्वारियों में गुजरा था. यहां तक कि देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बावजूद उनके जीवन में सतत संघर्ष जारी था. आज 2 अक्टूबर 2024 को लाल बहादुर शास्त्री की 120वीं जयंती पर बात करेंगे कि छोटे कद मगर मजबूत इरादों वाले लाल बहादुर शास्त्री के जीवन के संघर्ष भरे पलों के बारे में
Lal Bahadur Shastri Jayanti 2024: आजाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का बचपन और किशोरावस्था बेहद दुश्वारियों में गुजरा था. यहां तक कि देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बावजूद उनके जीवन में सतत संघर्ष जारी था. आज 2 अक्टूबर 2024 को लाल बहादुर शास्त्री की 120वीं जयंती पर बात करेंगे कि छोटे कद मगर मजबूत इरादों वाले लाल बहादुर शास्त्री के जीवन के संघर्ष भरे पलों के बारे में...
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में एक मध्यम वर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ था. पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक शिक्षक थे, माँ रामदुलारी देवी हाउस वाइफ थीं. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. इस कारण अच्छी शिक्षा और व्यक्तित्व विकास के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत किया. बचपन में उन्हें प्यार से नन्हें कहकर बुलाया जाता है. यह भी पढ़े: Lal Bahadur Shastri Jayanti 2024 Quotes: हैप्पी लाल बहादुर शास्त्री जयंती! प्रियजनों संग शेयर करें उनके ये 10 प्रेरणादायी विचार
ऐसे मिला प्रधानमंत्री पद
27 मई 1964 को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अकस्मात मृत्यु हुई, तब कई लोग प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़े हो गए, जिसमें गुलजारी लाल नंदा, मोरारजी देसाई, जय प्रकाश नारायण प्रमुख थे, जबकि कांग्रेस का एक धड़ा इंदिरा गांधी को भी प्रधानमंत्री बनाना चाहता था. काफी मशक्कत के बाद मोरारजी देसाई और लाल बहादुर शास्त्री तक बात रुकी. चूंकि शास्त्री जी समाजवादी थे, सौम्य और मृदुभाषी थे, लिहाजा कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष के कामराज के निर्णय के बाद 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, हालांकि लाल बहादुर शास्त्री के लिए प्रधानमंत्री का पद किसी कांटे की सेज से कम नहीं था.
शास्त्री जी का 'जय जवान जय किसान का नारा'!
नेहरू जी के प्रधानमंत्रित्व काल में 1962 में भारत-चीन युद्ध में भारत को कड़ी पराजय का स्वाद चखना पड़ा था. देश की आर्थिक स्थित बहुत कमजोर हो गई थी. दुर्भाग्यवश उन्हीं दिनों देश में कमजोर मानसून का असर फसल पर पड़ा, जिससे अकाल तक की नौबत आ गई. देश की आर्थिक स्थिति से जूझ रही भारत सरकार की चिंता उस समय और बढ़ गई, जब 5 अगस्त 1965 में करीब 30 हजार पाकिस्तानी सेना एलओसी पार कर कश्मीर में घुस आए. शास्त्री जी ने पाकिस्तान के इस हमले की कल्पना भी नहीं की थी. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने सेना में जोश और उत्साह का हुंकार भरा, और सेना को पूरी तरह आजा कर दिया, कि दुश्मन को जवाब देने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं. प्रधानमंत्री का यह प्रयोग काम आया. भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया. पाकिस्तानी सेना के 90 टैंक को तो ध्वस्त किया, साथ ही लाहौर पर कब्जा कर लिया.
अमेरिका का कूटनीतिक पाकिस्तान-प्रेम!
6 सितंबर 1965 को भारतीय सेना जब लाहौर तक घुस गई, और लाहौर पर तिरंगा फहराने की योजना बना रही थी. यह वह दौर था, जब अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत लाल गेहूं खाने के लिए बाध्य थे. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को धमकी दी कि अगर भारतीय सेना लाहौर से वापस नहीं आई और भारतीय सेना ने युद्ध नहीं रोका तो उन्हें गेहूं का निर्यात रोक दिया जाएगा. शास्त्री ने अमेरिका की धमकी को ही नजर अंदाज नहीं किया, बल्कि आदेश पारित कर गेहूं के आयात पर रोक लगा दिया. एक तरफ अकाल की मार ऊपर से देशवासियों के लिए अनाज की कमी की किल्लत. अक्टूबर 1965 को दशहरा के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान पर ‘जय जवान जय किसान’ किसान का नारा बुलंद किया. साथ ही जनता को स्वयं अनाज उपजाने, बंजर भूमि पर खेती के लिए प्रेरित किया. स्वयं शास्त्री जी ने भी अपने आवास पर फसल उपजाने की कोशिश शुरू कर दी. उन्होंने जनता से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने का सुझाव दिया और स्वयं भी उपवास रहने लगे.
विवादास्पद निधन!
शास्त्री जी का 'जय जवान जय किसान' का नारा प्रयास रंग लाने लगा था, लेकिन इसी दौरान रूस और अमेरिका की मिलीभगत से सोची-समझी साजिश के तहत 11 जनवरी 1966 को ताशकंद (रूस) में समझौते में शास्त्री जी का विवादास्पद ढंग से निधन हो गया.