कोलकाता रेप मर्डर: सरकार के गले की फांस बनता महिला डॉक्टर का मामला

कोलकाता में रेप और मर्डर की घटना का विरोध लगातार तेज हो रहा है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

कोलकाता में रेप और मर्डर की घटना का विरोध लगातार तेज हो रहा है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगी.कोलकाता में हुई बलात्कार और हत्या की घटना के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने रात की ड्यूटी के दौरान सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं. सीबीआई की जांच के दौरान साजिश और सबूतों को गायब करने के संकेत तो मिले हैं. लेकिन अब तक इस मामले में दूसरी गिरफ्तारी नहीं हो सकी है. यह मामला ममता बनर्जी सरकार के गले की फांस बनता जा रहा है. उधर, सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगी.

इस बीच, पुलिस ने मृतका की तस्वीर और परिचय के खुलासे और कथित रूप से भ्रामक खबरें फैलाने के आरोप में एक हजार से ज्यादा लोगों की शिनाख्त कर उनको पूछताछ के लिए समन भेजा है. इनमें तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद के अलावा 11 मशहूर डॉक्टर भी शामिल हैं.

क्या है पूरा मामला

बीते नौ अगस्त की सुबह कोलकाता के सरकारी आरजी कर मेडिकल कालेज के सेमिनार रूम में एक जूनियर महिला का शव बरामद किया गया था. रेप करने के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी. इस मामले में पुलिस ने अब तक एक सिविक वालंटियर को गिरफ्तार किया है. दूसरी ओर, मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष के खिलाफ भी लापरवाही और सबूत मिटाने के आरोप लगे हैं. सीबीआई उनसे बीते चार दिनों से लगातार पूछताछ कर रही है.

महानगर और राज्य के दूसरे हिस्सों में इस घटना के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. फुटबॉल का मक्का कहे जाने वाले कोलकाता में विरोध प्रदर्शन की आशंका की वजह से रविवार को दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों--ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के बीच होने वाला फुटबॉल मैच भी स्थगित कर दिया गया था. बावजूद इसके इन दोनों के अलावा मोहम्मडन स्पोर्टिंग के हजारों समर्थकों ने पूरे दिन एक साथ मिल कर न्याय की मांग में विरोध प्रदर्शन किया. पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े.

कहां तक पहुंची सीबीआई की जांच

कलकत्ता हाईकोर्ट ने बीते सप्ताह इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. इसकी जांच के लिए दिल्ली से सीबीआई की 65 सदस्यीय टीम यहां पहुंची है. उसके साथ कई आधुनिक उपकरण भी हैं जिनके जरिए मोबाइल मैसेज और व्हाट्सएप कॉल और मैसेज की निगरानी की जा सकती है. इसबीच, मृतका की एक अहम डायरी भी सामने आई है जिसके कुछ पन्ने गायब हैं. इसके सामने आने के बाद सीबीआई अब अस्पताल के बीते तीन महीने का रोस्टर यानी ड्यूटी चार्ट भी खंगाल रही है. सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया कि इससे यह पता चलेगा कि हाल की महीनों के दौरान किन किन लोगों ने उस डॉक्टर के साथ ड्यूटी की थी. इसके बाद एक-एक कर उन लोगों से पूछताछ की जाएगी कि क्या मृतका ने उनको कभी किसी साजिश या दबाव के बारे में बताया था.

सीबीआई सूत्रों ने डीडब्ल्यू को बताया कि अब तक की जांच से कई सवाल खड़े हुए हैं. इनमें पहला यह है कि आखिर मृतका का पोस्टमार्टम इतनी जल्दबाजी में क्यों कर दिया गया? इसके अलावा पोस्टमार्टम के दौरान जो वीडियो रिकॉर्डिंग की गई है उसके ज्यादातर हिस्से साफ नहीं है. पोस्टमार्टम के दौरान कई जरूरी प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया गया. बलात्कार व हत्या के मामले में उन प्रक्रियाओं का पालन करना बेहद अहम है. अब शव का अंतिम संस्कार हो जाने के कारण नए सिरे से पोस्टमार्टम या दूसरी जरूरी जांच संभव नहीं है.

कोलकाता पुलिस के सूत्रों ने बताया कि शव को सबसे पहले सुबह साढ़े नौ बजे देखा गया था. लेकिन अस्पताल से पुलिस को इस बारे में सुबह 10.10 बजे सूचना दी गई थी. सीबीआई का सवाल है कि बीच के इस 40 मिनट के दौरान आखिर क्या होता रहा. सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया कि इस 40 मिनट के दौरान क्या-क्या हुआ, उसमें घटना का रहस्य छिपा हो सकता है. क्या इस दौरान सबूतों को नष्ट किया गया या फिर मौके पर मिले सबूतों के अलावा अस्पताल प्रबंधन ने कोई और सुराग तलाशने की कोशिश ही नहीं की?

ममता सरकार पर हर ओर से दबाव

पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में भी इस घठना पर मतभेद सतह पर आ गया है. इससे सरकार व ममता की मुश्किलें बढ़ गई हैं. यही वजह है कि वो खुद भी दो,यों को फांसी की सजा की मांग में कोलकाता की सड़क पर उतरी थी. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि रीक्लेम द नाइट अभियान के तहत राज्य के करीब तीन सौ स्थानों पर महिलाओं के स्वतःस्फूर्त जमावड़े और विरोध प्रदर्शन के कारण उनके इस सबसे मजबूत वोट बैंक के बिखरने का खतरा पैदा हो गया है.

आम लोगों के अलावा विपक्ष भी ममता बनर्जी सरकार पर इस घटना की लीपापोती का प्रयास करने के आरोप लगा रहा है. अब पार्टी के कई नेता भी इस मामले में सरकार व पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं. वैसे, ममता बनर्जी सरकार पर पहली बार ऐसी किसी घटना की लीपापोती का प्रयास करने के आरोप पहली बार नहीं लगे हैं. पहली बार उनके सत्ता में आने के साल भर बाद यानी वर्ष 2012 में कोलकाता के अभिजात्य पाक स्ट्रीट इलाके में एक महिला के साथ चलती कार में सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद ममता ने इसे नाटकीय मामला कहा था. उस समय भी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ममता फिलहाल इस घटना के कारण ऐसे भंवर में फंसी है जहां से निकलने की कोई रणनीति नहीं सूझ रही है. राजनीतिक विश्लेषक समीर कुमार राय डीडब्ल्यू से कहते हैं, "ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ यह नाराजगी एक दिन में नहीं पनपी है. लेकिन इस घटना ने लोगों के मन में जमी नाराजगी की चिंगारी भड़का दी है."

महिला सुरक्षा के मुद्दे पर घिरी भारत की एकलौती महिला मुख्यमंत्री

वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक शिखा मुखर्जी कहती हैं, "इस बार ममता की सबसे बड़ी चिंता इस घटना के खिलाफ भारी तादाद में आम महिलाओं और छात्राओं का सड़क पर उतरना है. यह महिलाएं ही उनका सबसे बड़ा वोट बैंक रही हैं." वो कहती हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में दो साल से भी कम समय बचा है. ऐसे में अगर महिलाओं का उनकी सरकार से मोहभंग होता है तो ममता और तृणमूल कांग्रेस का राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ सकता है.

दूसरी ओर, विपक्ष भी इस मुद्दे पर सरकार पर लगातार दबाव बना रहा है. राज्यपाल सीवीआनंद बोस ने कहा है कि बंगाल महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित जगह है. विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने भी डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "बंगाल में महिला मुख्यमंत्री के राज में ही महिलाएं सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं, यह गंभीर चिंता का विषय है." सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती भी यही आरोप दोहराते हैं. पार्टी के युवा और छात्र संगठन इस घटना के खिलाफ लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि घटना तो कहीं भी हो सकती है. लेकिन लोगों की नाराजगी घटना के बाद पुलिस के लापरवाह रवैए से भड़की है. दूसरी ओर, ममता बनर्जी की सबसे बड़ी चिंता दोषियों की गिरफ्तारी की बजाय अपने महिला वोटरों की नाराजगी दूर कर उनको साथ बनाए रखना है. यही वजह है कि पदयात्रा आयोजित करने के साथ ही सरकार ने महिला सुरक्षा के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं और साथ ही सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए एक समिति गठित की है और इस मद में पांच करोड़ की रकम जारी कर दी है.

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