Bal Gangadhar Tilak Jayanti: ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ का नारा बुलंद करने वाले बाल गंगाधर तिलक के जीवन के रोचक तथ्य!

देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले स्वराज आंदोलन के प्रणेता बाल गंगाधर तिलक की इस वर्ष सारा देश 167 वीं जयंती मनाएगा. ज्ञात हो कि बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को हुआ था, उनके मुखर राष्ट्रवादी व्यवहार ने स्वदेशी आंदोलन की वकालत की

(File Photo)

Bal Gangadhar Tilak Jayanti: देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले स्वराज आंदोलन के प्रणेता बाल गंगाधर तिलक की इस वर्ष सारा देश 167 वीं जयंती मनाएगा. ज्ञात हो कि बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को हुआ था, उनके मुखर राष्ट्रवादी व्यवहार ने स्वदेशी आंदोलन की वकालत की. देश की आजादी के लिए कई आंदोलनों को मुखर करने में उनका बहुत बड़ा योगदान था. तिलक गांधी जी के अहिंसावादी विचारों से दूर गर्म मिजाज वाले शख्सियत थे, इसके बावजूद गांधी जी तिलक की व्याख्या आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में करते थे. उनकी तिकड़ी (पंजाब के लाला लाजपत राय, महाराष्ट्र के बाल गंगाधर और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल) लाल-बाल-पाल के नाम से मशहूर थी. तीनों ही कट्टर पंथी के प्रतीक थे, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के राजनीतिक सोच में क्रांतिकारी परिवर्तन ले आए. यह भी पढ़े: Bal Gangadhar Tilak Jayanti 2021 Quotes: लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 165वीं जयंती, उनके इन प्रेरणादायी विचारों को अपनों के साथ करें शेयर

शिक्षण से पत्रकारिता तक

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को रत्नागिरी (महाराष्ट्र) में एक मराठी हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता गंगाधर तिलक संस्कृत के विद्वान एवं शिक्षक थे. तिलक जब 16 साल के थे, उनका विवाह ताराबाई से हो गया, विवाहोपरांत पत्नी का नाम सत्यभामाबाई हो गया. विवाह के कुछ माह उपरांत ही पिता का निधन हो गया. साल 1877 में तिलक ने डेक्कन कॉलेज (पुणे) से गणित में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की. पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए उन्होंने 1879 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से एलएलबी स्नातक की डिग्री प्राप्त की. स्नातक करने के बाद पुणे के एक स्कूल में उन्होंने गणित के शिक्षक की नौकरी की, लेकिन बाद में स्कूल छोड़कर पत्रकारिता करने लगे.

अन्याय के आगे कभी नहीं झुके

स्कूली शिक्षा हो या राजनीति, बाल गंगाधर कभी किसी के सामने झुके नहीं. उनके स्कूली दिनों की बात है. एक दिन क्लास में कुछ बच्चों ने मूंगफली खाकर वहीं फेंक दिया. जब शिक्षक क्लास रूम में आये, तो उन्होंने पूछा ये गंदगी किसने की है? सभी बच्चे खामोश थे, शिक्षक ने हर बच्चों की बेंत से पिटाई की. लेकिन बाल गंगाधर ने अपने हाथ आगे नहीं किये, शिक्षक ने प्रतिप्रश्न किया, तो तिलक ने कहा मैंने गंदगी नहीं फैलाई. शिक्षक ने प्रिंसिपल से शिकायत की, बाल गंगाधर के पिता को बुलाया गया, सारी बात सुनकर पिता ने प्रिंसिपल से कहा कि बाल गंगाधर के पास पैसे ही नहीं थे, वह मूंगफली कहां से खाएगा.

डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना

बाल गंगाधर तिलक ने आम भारतीयों को विशेषकर अंग्रेजी भाषा में शिक्षित करने के लिए साल 1884 में डेक्कन एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की, क्योंकि उस समय उनका और उनके सहयोगियों का मानना था कि अंग्रेजी उदार और लोकतांत्रिक आदर्शों के लिए एक प्रभावशाली शक्ति है.

दो महत्वपूर्ण उत्सव की शुरुआत

बाल गंगाधर तिलक ने दो महत्वपूर्ण पर्वों के आयोजन का सिलसिला शुरू किया था, 1893 में गणेश जी और 1895 में शिवाजी का महान उत्सव शुरू हुआ. गणेश भगवान का नेतृत्व गजराज यानी हाथी करता है और सभी हिंदू उन्हें प्रथम पूज्य देव मानते हैं, वहीं शिवाजी चूंकि पहले हिंदू शासक थे, जिन्होंने भारत में मुगल शक्ति के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और 17वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी.

केसरी और द मराठा ने पहुंचाया बुलंदियों पर

बाल गंगाधर तिलक ने 'केसरी' (मराठी) और 'द मराठा' (अंग्रेजी) जैसे द्विभाषी समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों को देशभक्ति के प्रति जागृत करना शुरू किया. इन पत्रों से उन्हें खूब लोकप्रियता प्राप्त हुई. उन्होंने ब्रिटिशों और नरमपंथियों के तरीकों की कड़ी आलोचना की, जो पश्चिमी तर्ज पर सामाजिक सुधारों और संवैधानिक तर्ज पर राजनीतिक सुधारों की वकालत करते थे. जनता के बीच ये दोनों अखबार खूब पसंद किये जाते थे.

राजनीतिक जीवन की शुरुआत

बाल गंगाधर तिलक का लंबा राजनीतिक जीवन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से भारतीय स्वायत्तता के लिए आंदोलन करते हुए बीता. गांधीजी से पहले, तिलक ही सबसे व्यापक रूप से लोकप्रिय भारतीय राजनीतिक नेता थे. अपने साथी महाराष्ट्रीयन समकालीन, गोखले के विपरीत, तिलक को एक कट्टरपंथी राष्ट्रवादी लेकिन एक सामाजिक रूढ़िवादी माना जाता था. उन्हें विभिन्न आंदोलनों के लिए बार-बार जेल भेजा गया, जिसमें मांडले सबसे लंबा कार्यकाल था. तिलक के राजनीतिक जीवन में एक समय ब्रिटिश लेखक सर ने तिलक को ‘भारतीय अशांति का जनक’ भी कहा था.

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