नई दिल्ली. कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) की इस साल 20वीं सालगिरह में महज कुछ दिन बचे हैं. लेकिन वीरों की शाहदत और अपने देश के प्रति उनके समर्पण को देश आज भी नहीं भुला है. पाकिस्तान ने नापाक हरकत तो कि लेकिन भारत ने उन्हें रौंद के पीछे भगा दिया. भारत और पाकिस्तान के बीच मई से जुलाई 1999 यानी पूरे दो महीने एक युद्ध चला था. इस लड़ाई में भारत के लगभग 527 से ज्यादा जवान शहीद हुए और 1300 से ज्यादा जवान घायल हुए थे.
भारतीय सेना के रणबांकुरों 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. भारतीय सीमा में घुसपैठ कर हमला करने वाले पाकिस्तान सेना ने खदेड़ के फिर से उनके देश में भगा दिया. सेना ने आज के ही दिन ठीक 17 साल पहले अपनी शहादत देकर कारगिल को बचाया था. वैसे भी भारतीय सेना के जवानों जज्बे का हर कोई लोहा मानता है. इन्हीं वीरों में एक नाम था लांस नायक शहीद आबिद खान का भी था.
आबिद खां का जन्म 6 मई 1972 को उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के पाली कस्बे में हुआ था. आबिद का बचपन से ही सपना था कि वो भारतीय सेना का हिस्सा बने और अपने परिवार का नाम रौशन करें. उनकी इसी सोच ने उन्हें 5 फरवरी 1988 को सेना से जोड़ दिया. 1999 में कारगिल की जंग शुरू हो गई उनके हेडक्वाटर आबिद को छुट्टी कैंसल कर ड्यूटी ज्वाइन करने को कहा. फिर क्या एक वीर अपनी धरती माता की रक्षा के लड़ाई के लिए निकल गए.
आलाकमान ने आबिद की पलटन को टाइगर हिल फतह करने का टास्क दिया. सर पर कफन बांधे आबिद दुश्मनों पर कहर बनकर टूट पड़े. इसी दौरान एक गोली उनके पैर में आ लगा. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पाकिस्तान के 17 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन इस लड़ाई में दुश्मन की एक गोली आबिद को लगी और अपने वतन की रक्षा करते हुए वे शहीद हो गए. मातृभूमि के इन बलिदानी जांबाजों में से एक जब शहीद आबिद का शव तिरंगा में लिपटकर उनके गांव आया तो उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था.
कारगिल युद्ध में सेना के शहीद जवानों को हमारा नमन
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का बांकी यही निशां होगा"