भारत बनाएगा परमाणु ऊर्जा से चलने वाली दो लड़ाकू पनडुब्बियां
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत सरकार ने 450 अरब रुपयों की लागत से देश में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली दो नई लड़ाकू पनडुब्बियों के उत्पादन की इजाजत दे दी है. जानकारों का कहना है कि भारत अपनी नौसैनिक क्षमताओं को और बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.हिंद महासागर इलाके में चीन की बढ़ती मौजूदगी का सामना करने के लिए भारत अपनी सेना के आधुनिकीकरण की कोशिश में लगा हुआ है. इन कोशिशों के तहत भारत अपनी नौसैनिक क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.

देश के रक्षा मंत्रालय के दो अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इन दो परमाणु पनडुब्बियों के उत्पादन के प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा दी. भारतीय नौसेना नए किस्म की छह पनडुब्बियां बनाना चाहती है, जिनमें से यह पहली दो होंगी.

10-12 साल में तैयार होंगी पनडुब्बियां

इन दोनों अधिकारियों ने अपना नाम ना बताने की शर्त रखी. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि दोनों पनडुब्बियों के कब तक बनकर तैयार हो जाने की उम्मीद है. नई पनडुब्बियां विशाखापत्तनम में स्थित जहाज बनाने के सरकारी केंद्र में बनेंगी. एक अधिकारी ने यह बताया कि निर्माण कंपनी लार्सन एंड टूब्रो भी इस परियोजना में शामिल हो सकती है.

टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार के मुताबिक इन दोनों पनडुब्बियों को बनाने की परियोजना का नाम 'प्रोजेक्ट 77' है. ये पनडुब्बियां पारंपरिक मिसाइलों, टॉरपीडो और अन्य हथियारों से लैस होंगी.

जब भारत ने तैनात की पनडुब्बियां

अखबार का दावा है कि इनमें से पहली पनडुब्बी को तैयार होने में 10-12 साल लग सकते हैं. दोनों पनडुब्बियां करीब 95 प्रतिशत भारत निर्मित होंगी. डिजाइन कंसल्टेंसी के लिए विदेशी मदद ली जाएगी.

ये पनडुब्बियां उन अरिहंत परमाणु पनडुब्बियों से अलग होंगी, जो अभी भारत में बन रही हैं. परमाणु हथियार लॉन्च करने की क्षमता रखने वाली अरिहंत पनडुब्बियों में से एक बन चुकी है और दूसरी को इसी साल अगस्त में कमीशन किया गया था.

अपनी परमाणु पनडुब्बियां बनाने से पहले भारत ने रूस से दो पनडुब्बियां लीज पर ली थीं और फिर वापस दे दी थीं. हालांकि इस समय देश एक और पनडुब्बी लीज पर लेने के लिए रूस से बातचीत कर रहा है.

परमाणु पनडुब्बियां डीजल से चलने वाली पारंपरिक पनडुब्बियों के मुकाबले ज्यादा शांत होती हैं और ज्यादा समय तक पानी के नीचे रह सकती हैं. इस वजह से उनका पता लगाना भी ज्यादा मुश्किल होता है. इन्हें दुनिया के सबसे ताकतवर नौसैनिक हथियारों में से एक माना जाता है.

इस समय सिर्फ मुट्ठी भर देश इन्हें बनाते हैं. इनमें चीन, फ्रांस, रूस और अमेरिका शामिल हैं. चीन को इस समय दुनिया की सबसे बड़ी नौसैनिक शक्ति माना जाता है. उसके पास 370 से ज्यादा जहाज हैं.

साथ ही प्रिडेटर ड्रोन भी खरीदेगा भारत

टाइम्स ऑफ इंडिया का कहना है कि इन पनडुब्बियों के साथ साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अमेरिका से 31 विशेष ड्रोन खरीदने की भी इजाजत दे दी. इन्हें एमक्यू-नाइनबी प्रिडेटर ड्रोन कहा जाता है. इनमें से 15 नौसेना के लिए, आठ थल सेना के लिए और आठ वायु सेना के लिए खरीदे जाएंगे.

उम्मीद की जा रही है कि इस संधि पर जल्द ही हस्ताक्षर कर लिए जाएंगे. पहला ड्रोन तीन सालों में मिल जाने की उम्मीद है. यह ड्रोन 40,000 फुट की ऊंचाई पर करीब 40 घंटों तक उड़ते रह सकते हैं और ये हेलफायर मिसाइलों, बम आदि जैसे हथियारों से लैस होते हैं.