भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक विवाद का फौरी तौर पर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों को फायदा हो सकता है लेकिन लंबे समय में भारत को इसका बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है.भारत और कनाडा के बीच पिछले एक साल से जारी कूटनीतिक विवाद का असर बहुत लंबा और गहरा हो सकता है. सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के आरोपों से शुरू हुए इस तनाव को लेकर कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे भारत की वैश्विक छवि को नुकसान होगा. वहीं, एक विचार यह भी है कि यह विवाद नरेंद्र मोदी और जस्टिन ट्रूडो दोनों के लिए थोड़े समय के लिए फायदेमंद हो सकता है.
14 अक्टूबर को कनाडा और भारत ने एक दूसरे के सबसे वरिष्ठ राजनयिकोंको निष्कासित कर दिया. कनाडा की विदेश मंत्री मेलनी जोली ने कहा कि उनका देश छह भारतीय राजनयिकों को निष्कासित कर रहा है, जिसमें उच्चायुक्त भी शामिल हैं, क्योंकि पुलिस को भारतीय सरकार के एजेंटों द्वारा कनाडा के नागरिकों के खिलाफ अभियान चलाने के सबूत मिले हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि भारत निज्जर की हत्या की जांच में सहयोग नहीं कर रहा है. भारत इन आरोपों से इनकार करता है.
अमेरिका ने भी कनाडा के इस आरोप पर सहमति जताई और कहा कि भारत को सहयोग करना चाहिए. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने मीडिया से कहा, "हम यह स्पष्ट कर चुके हैं कि आरोप बेहद गंभीर हैं और उन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए. हम चाहते हैं कि भारत सरकार कनाडा के साथ सहयोग करे. जाहिर है कि वे ऐसा नहीं कर रहे हैं.”
भारत की छवि पर असर
भारत, जो एक उभरती ताकत के रूप में खुद को पेश कर रहा है, इस विवाद के चलते मुश्किलों में पड़ सकता है. कुछ जानकारों का मानना है कि कनाडा के साथ बिगड़ते रिश्तों से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को झटका लग सकता है और इसकी वैश्विक ताकत बनने की कोशिशें कमजोर हो सकती हैं.
थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के सीनियर एनालिस्ट प्रवीन डोंथी कहते हैं कि निज्जर की हत्या के मामले में कनाडा के आरोप और भारत का इन आरोपों को नकारना दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा रहा है. उन्होंने कहा, "भारत और कनाडा के बीच संबंध पिछले साल से बिगड़ रहे थे, लेकिन अब इस विवाद से ये और भी खराब होंगे और इन्हें ठीक करने में लंबा समय लगेगा."
भारत का कनाडाई जांच में सहयोग न करने का कदम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का कारण बना है. ओटावा विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर रोलैंड पेरिस ने कहा, "भारत पर लगाया गया आरोप कि उसने किसी दूसरे देश की जमीन पर हिंसा को अंजाम दिया, चौंकाने वाला है. हमें एक लोकतंत्र से बेहतर की उम्मीद करनी चाहिए."
यह विवाद भारत और पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, के रिश्तों को भी प्रभावित कर सकता है, जो हाल के समय में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर एकजुट हो रहे थे. डोंथी ने चेताया कि इस विवाद से भारत की 'महाशक्ति बनने की कोशिशों' को धक्का लग सकता है.
मोदी और ट्रूडो के लिए राजनीतिक फायदा
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस विवाद से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को फौरी तौर पर फायदा हो सकता है. मोदी की छवि एक मजबूत राष्ट्रवादी नेता के रूप में और मजबूत हो सकती है. बीते आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की पार्टी कमजोर हुई थी, जिसे कुछ लोग मोदी की लोकप्रियता में कमी का संकेत मानते हैं.
भारत के पूर्व विदेश सचिव हर्ष वर्धन शृंगला कहते हैं, "लोग देखेंगे कि भारत सरकार एक विकसित देश की धमकी और दबाव का डटकर सामना कर रही है. मोदी का इस मामले में सख्त रुख उनकी देशभक्ति की छवि को और मजबूत करता है, जो उनके समर्थकों के बीच लोकप्रिय है.”
वहीं, ट्रूडो को भी इससे कुछ समय के लिए राहत मिल सकती है. उनकी लिबरल पार्टी अगले चुनावों से पहले जनता के बीच ज्यादा लोकप्रिय नहीं है. भारत के साथ विवाद ने उनके घरेलू मुद्दों से ध्यान हटाने का काम किया है.
इस बारे में पूछे जाने पर ट्रूडो ने कहा, "अभी पार्टी के अंदरूनी विवादों पर बात करने का समय नहीं है." उन्होंने कहा कि उनका ध्यान इस वक्त कनाडा की संप्रभुता की रक्षा पर है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रूडो को इससे मिलने वाला फायदा थोड़े समय के लिए ही होगा.
ट्रेंट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर क्रिस्टीन डी क्लेरसी कहती हैं कि घरेलू मुद्दे अब भी ट्रूडो के लिए बड़ी चुनौती बने रहेंगे. उन्होंने कहा, "आप कह सकते हैं कि कुछ समय के लिए यह विवाद सुर्खियों में रह सकता है लेकिन एक दूर देश की एक घटना के मुकाबले ट्रूडो के सामने जो घरेलू मुद्दों की सूची है वह कहीं ज्यादा लंबी और जटिल है.”
एक वैश्विक संकट
चाहे मोदी और ट्रूडो को इस कूटनीतिक संकट से थोड़े समय के लिए फायदा हो, लेकिन भारत की वैश्विक छवि और अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है. विल्सन सेंटर के माइकल कुगेलमैन के अनुसार भारत अपनी नीतियों की बाहरी आलोचना को लेकर बेहद संवेदनशील है और यह संवेदनशीलता और इस विवाद पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान भारत की छवि पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
कुगेलमैन कहते हैं, "भारत की सख्त प्रतिक्रिया की एक वजह यह भी है कि कनाडा ने सार्वजनिक रूप से ऐसे आरोप लगाए हैं. विदेशों में होने वाली आलोचना को लेकर भारत सरकार अत्यधिक संवेदनशील है. और कनाडा सिर्फ भारत की नीति की आलोचना नहीं कर रहा है. उसकी सरकार के सबसे बड़े नेताओं ने कुछ ऐसे सबसे गंभीर आरोप लगाए हैं जो कोई सरकार किसी अन्य सरकार पर लगा सकती है.”
इसका नुकसान भारत और पश्चिमी देशों के बीच अविश्वास के रूप में सामने आ सकता है. पश्चिमी देश इस वक्त चीन और रूस को लेकर चिंतित हैं और भारत उनके लिए इन दोनों को साधने का एक जरिया माना जा रहा है. लेकिन भारत पर भरोसा टूटना इस पूरी रणनीति को धराशायी कर सकता है. डोंथी कहते हैं, "अमेरिका-भारत संबंधों का एक बड़ा भू-राजनीतिक ढांचा और संदर्भ भी है.”
वह कहते हैं कि कनाडा के साथ विवाद का असर अमेरिका और पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों के साथ भारत की बढ़ती रणनीतिक साझेदारी पर भी पड़ेगा. उन्होंने कहा, "कनाडा द्वारा भारत पर लगाए गए आरोप सामान्य स्थिति से उलट हैं, क्योंकि नई दिल्ली को पश्चिमी देशों से काफी सहयोग मिल रहा था.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)