
दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली सरकार में मंत्री कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. यह एफआईआर साल 2020 में दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के मामले में होगी जिनमें करीब साठ लोगों की मौत हो गई थी.दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने दिल्ली सरकार में कानून मंत्री कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के अलावा दिल्ली दंगों में उनकी कथित भूमिका की जांच करने के भी आदेश दिए हैं. साल 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हुए थे. इनमें कई लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में दिल्ली के यमुना विहार के रहने वाले मोहम्मद इलियास ने कोर्ट में कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी क्योंकि दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था.
मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने साफतौर पर कहा कि कपिल मिश्रा दंगों के समय वहां मौजूद थे इसलिए उनके खिलाफ ना सिर्फ एफआईआर दर्ज की जाए बल्कि दंगों में उनकी भूमिका की भी जांच की जाए. अदालत ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिए हैं कि वो इस आदेश का अनुपालन करे और 16 अप्रैल तक इस संबंध में अपनी रिपोर्ट दाखिल करे. मामले में अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी.
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पिछले साल अगस्त में दायर की गई इस याचिका में मोहम्मद इलियास ने दावा किया है कि 23 फरवरी 2020 को उन्होंने कपिल मिश्रा और उनके साथियों को उत्तर पूर्वी दिल्ली के कर्दमपुरी में एक सड़क को जाम करते हुए देखा था. इस दौरान उन्होंने रेहड़ी पटरी वालों की गाड़ियों को तोड़ते हुए भी देखा था. इलियास ने यह भी दावा किया कि उस समय उत्तर-पूर्वी दिल्ली के तत्कालीन उप पुलिस आयुक्त (डीसीपी) और अन्य पुलिसकर्मी कपिल मिश्रा के पास खड़े थे और वे लोग प्रदर्शनकारियों को इलाका खाली करने की चेतावनी दे रहे थे.
इलियास ने कपिल मिश्रा, दयालपुर थाने के तत्कालीन एसएचओ, बीजेपी विधायक मोहन सिंह बिष्ट, पूर्व विधायक जगदीश प्रधान और सतपाल समेत पांच अन्य लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी.
राउज एवेन्यू कोर्ट में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने कहा कि प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर कपिल मिश्रा की उपस्थिति कर्दमपुरी इलाके में पाई गई है और ये एक संज्ञेय अपराध है जिसकी जांच की जानी जरूरी है.
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डीसीपी से भी पूछताछ के आदेश
अदालत ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया है कि वो शिकायतकर्ता के अलावा दिल्ली पुलिस के तत्कालीन डीसीपी वेदप्रकाश सूर्या से भी पूछताछ करे जो घटना के दौरान वहां मौजूद थे. अदालत ने कहा कि डीसीपी सूर्या यह बताने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं कि उस दिन उनके और मिश्रा के बीच क्या बातचीत हुई थी.
वहीं दिल्ली पुलिस ने अदालत में कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का ये कहते हुए विरोध किया कि उनके खिलाफ साजिश की गई है. दिल्ली पुलिस ने पिछले साल अक्टूबर में दावा किया था कि साल 2020 के दंगे एक सुनियोजित साजिश का नतीजा थे, जिसका मकसद मस्जिदों, मजारों और मुख्य सड़कों के पास मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंसा भड़काना था.
पुलिस ने कहा था कि यह साजिश विरोध प्रदर्शन को चक्काजाम में बदलने के लिए थी, ताकि एक खास समय पर हिंसा को बढ़ाया जा सके. पुलिस ने यह भी दावा किया था कि तमाम सोशल मीडिया अकाउंटों के जरिए अफवाहें उड़ाई गईं कि कपिल मिश्रा के नेतृत्व में भीड़ ने हिंसा शुरू की थी. अदालत ने अभियोजन पक्ष के इन दावों को खारिज कर दिया.
कब हुए थे दिल्ली में दंगे
पांच साल पहले 2020 में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में 23 से 26 फरवरी के दौरान दंगे हुए थे. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इन दंगों में 53 लोगों की जान गई थी. चार दिनों तक चले दंगों में जान-माल का भारी नुकसान हुआ था. कई लोगों के घर और दुकानों में आग लगा दी गई थी. मरने वालों मुसलमान और हिन्दू दोनों थे. इन दंगों के पीड़ित और उनके परिजन आज भी न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं.
दंगों के दौरान कर्दमपुरी इलाक़े से एक वीडियो वायरल हुआ था. इस वीडियो में पुलिस की वर्दी में दिख रहे कुछ लोग पांच लड़कों को डंडों से पीटते हुए नजर आ रहे थे. दिल्ली दंगों के जिन मामलों में दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे थे, उनमें से यह भी एक अहम मामला है. कर्दमपुरी में ही कपिल मिश्रा जहां पुलिस अधिकारियों के साथ खड़े होकर लोगों को कथित तौर पर धमका रहे थे, वो मामला भी यहीं का था.
गिरफ्तारी और जमानत
दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में अब तक 2600 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हुई है जिनमें से दो हजार लोग जमानत पर हैं. अदालत ने अब तक सिर्फ 47 लोगों को दोषी पाया है जबकि 183 लोगों को बरी कर दिया गया है.
वकील महमूद प्राचा दिल्ली दंगों से जुड़े कई मामलों में पीड़ित पक्ष की पैरवी कर रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं कि दिल्ली पुलिस के खिलाफ उन मामलों में भी कोई कार्रवाई नहीं हुई जिनमें उनका नाम आया है.
दिल्ली पुलिस जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को दिल्ली दंगों का मुख्य साजिशकर्ता मानती है. दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था और वो सितंबर 2020 से जेल में हैं. उन पर अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट यानी यूएपीए और आतंकवाद, दंगा फैलाने और आपराधिक साजिश रचने जैसे कई आरोप लगे हैं.
अलग-अलग अदालतों में उनकी कई बार जमानत याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं. हालांकि पिछले साल दिसंबर में उन्हें सात दिन की अंतरिम जमानत मिली थी.
अभी पिछले महीने ही दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों की सुनवाई करते हुए दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने इस मामले में जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाए थे. एडिशनल सेशन जज विनोद यादव ने तब कहा था, "जब इतिहास दिल्ली दंगों को देखेगा तो यह बात जरूर चुभेगी कि जांच एजेंसी ने सही और आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करके जांच नहीं की. यह विफलता लोकतंत्र के पहरेदारों को निश्चित तौर पर परेशान करेगी. जांच एजेंसी ने सिर्फ अदालत की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की है.”
कौन हैं कपिल मिश्रा
अब कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के कोर्ट के आदेश के बाद आम आदमी पार्टी ने उन्हें तुरंत मंत्री पद से हटाने की मांग की है.
कपिल मिश्रा मूल रूप से यूपी के रहने वाले हैं और इस समय भारतीय जनता पार्टी से दिल्ली की करावल नगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. हाल ही में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्हें दिल्ली सरकार में कानून मंत्री बनाया गया. उनके पास कई अन्य विभाग भी हैं. कपिल मिश्रा अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहते हैं.
बीजेपी में शामिल होने से पहले वो आम आदमी पार्टी में थे और 2015 में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार में वो पर्यटन मंत्री थे.बाद में उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया था जिसके बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए. आम आदमी पार्टी में रहते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी कई गंभीर आरोप लगाए थे.