Section 377 के आरोपी भारत के इस राज्य में सबसे ज्यादा होते थे, दूसरे नंबर पर है केरल; अब मिलेगी आजादी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo: IANS)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए भारत में दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया. इसका साफ मतलब है कि अब बालिगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं कहलाएंगे. इस फैसले के बाद अब तक Section 377 की मार झेल रहे समलैंगिक खुशी से चहक उठे. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली 5 जजों वाली संवैधानिक पीठ ने समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने को मना कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को मनमाना करार देते हुए व्यक्तिगत चुनाव को सम्मान देने की बात कही.सबसे अहम बात कोर्ट ने कहा कि बच्चों और जानवरों से अप्राकृतिक संबंध अब भी अपराध रहेगा.

इसी कड़ी में बताना चाहते है कि धारा 377 के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश और केरल में होते थे. जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में 999 केस दर्ज हुए. वहीं दूसरे नंबर पर केरल है, जहां 2016 में सबसे ज्यादा 377 धारा के केस दर्ज किए गए. केरल के कई इलाकों में गे सेक्स बहुत सामान्य है.  यहां पर कई लोग ऐसे हैं जो रुपये लेकर सेक्स करते हैं. ऐसे व्यक्तियों के बारे में पता चलते ही लोग केस दर्ज करा देते हैं.  यह भी पढ़े-सुप्रीम कोर्ट का समलैंगिकता पर फैसला आते ही करन जौहर का बड़ा बयान, कहा-आज मुझे..

दूसरी तरफ दक्षिण भारतीय राज्यों कर्नाटक में 8, आंध्र प्रदेश में 7 और तेलंगाना में 11 केस दर्ज हुए। तमिलनाडु में एक भी केस दर्ज नहीं हुआ.

टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2016 के आंकड़ों में केरल में 207 केस धारा-377 के तहत दर्ज किए गए. यह भी पढ़े-समलैंगिकता: दुनिया के इन देशों में सेम सैक्स मैरिज को मिल चुकी है कानूनी मंजूरी

ज्ञात हो कि सेक्शन 377 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध सबसे ज्यादा केरल से निकल कर आया है. यहां के मुस्ल‍िम संगठनों ने फैसले का विरोध किया है.