Farmers Protest: सरकार से 9 बार मिले किसान यूनियन, किसानों का आंदोलन 52वें दिन भी जारी
देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन शनिवार को 52वें दिन जारी है. कृषि सुधार पर तकरार के बीच आंदोलन की राह पकड़े किसानों की अगुवाई करने वाले यूनियन और सरकार से नौ बार मिल चुके हैं, फिर भी मन नहीं मिला है. ऐसे में वार्ताओं का दौर जारी रहने के इस क्रम में सरकार और किसान यूनियन का मन मिलने का इंतजार है.
नई दिल्ली, 16 जनवरी: देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन शनिवार को 52वें दिन जारी है. कृषि सुधार पर तकरार के बीच आंदोलन की राह पकड़े किसानों की अगुवाई करने वाले यूनियन और सरकार से नौ बार मिल चुके हैं, फिर भी मन नहीं मिला है. नये कृषि कानूनों (Farmers Law) को लेकर किसानों के मन में पैदा हुई आशंकाओं का समाधान तलाशने के लिए किसान यूनियनों के नेताओं के साथ शुक्रवार को करीब पांच घंटे मंथन के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकलने पर सरकार को फिर मिलने की अगली तारीख तय करनी पड़ी. अब 19 जनवरी को फिर अगले दौर की वार्ता होगी. सरकार के साथ किसान यूनियनों (Farmer Union) की नौवें दौर की वार्ता समाप्त होने के बाद आईएएनएस ने एक बार फिर आंदोलनकारी किसानों की रहनुमाई करने वालों से जानना चाहा कि आखिर मन क्यों नहीं मिलता है?
यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि सरकार और यूनियन दोनों की मंशा किसानों की भलाई करना है. जब मकसद एक तो फिर राह क्यों जुदा-जुदा? कृषि और संबद्ध क्षेत्र में सुधार लाने के मकसद से केंद्र सरकार ने कोरोना काल में कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 लाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बहरहाल इन कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है और मसले के समाधान के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन कर दिया.
किसान यूनियनों का कहना है कि इन कानूनों का फायदा किसानों को नहीं बल्कि कॉरपोरेट को होगा. इस आशंका को सरकार निराधार बताती है. किसानों की आशंका दूर करने के लिए सरकार ने पहले ही उन्हें नये कानूनों मनमाफिक संशोधन की पेशकश की है. मगर, यूनियन को कानूनों में संशोधन मंजूर नहीं है, इसलिए वे इन्हें निरस्त करने की मांग कर रहे हैं. बार-बार मिलने के बावजूद मन नहीं मिलने की वजह यही है कि सरकार कानून को वापस लेने को तैयार नहीं है और किसान इन काूननों को निरस्त करवाए बगैर आंदोलन वापस लेने को तैयार नहीं है. रोचक तथ्य यह है कि हर बार बातचीत सौहार्दपूर्ण माहौल में होने की बात कही जाती है और अगले दौर की वार्ता की तारीख तय होती है. हर बार, अगली वार्ता में सकारात्मक नतीजे भी निकलने की उम्मीद भी जताई जाती है.
सर्व हिंद राष्ट्रीय किसान महासंघ के शिव कुमार कक्का को उम्मीद है कि मसले का हल निकलेगा, मगर कब यह ना मालूम. नौवें दौर की वार्ता समाप्त होने के बाद इसी प्रकार कुछ अन्य किसान नेताओं ने भी समाधान के रास्ते निकलने की बात कही. केंद्रीय कृषि एवं कसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी शुक्रवार की वार्ता के बाद कहा कि सरकार खुले मन से और बड़पन्न से लगातार चर्चा कर रही है. अगले दौर की वार्ता को लेकर आश्वस्त केंद्रीय मंत्री ने कहा, "मुझे आशा है कि संभवत: हम समाधान की ओर बढ़ सकेंगे."
भारतीय किसान यूनियन के नेता हरिंदर सिंह लाखोवाल ने बताया कि नौवें दौर की बैठक में आरंभ में चर्चा आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमों और किसानों की मदद करने वालों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई पर केंद्रित रही, फिर कानूनों पर बातचीत हुई. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 पर देर तक चर्चा हुई और आखिर में एमएसपी पर भी बातचीत हुई, लेकिन किसी भी मसले पर सहमति नहीं बन पाई. किसान यूनियन सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के पास जाने को तैयार नहीं है और सरकार के साथ वार्ता के जरिए ही समाधान चाहते हैं. ऐसे में वार्ताओं का दौर जारी रहने के इस क्रम में सरकार और किसान यूनियन का मन मिलने का इंतजार है.