Medical College Scam: 'फर्जी डॉक्टर' बनाने की फैक्ट्रियां! CBI ने खोला भारत के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज घोटाले का कच्चा चिट्ठा

Medical College Scam India: केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने एक ऐसे घोटाले का पर्दाफाश किया है जो भारत की मेडिकल शिक्षा की जड़ों को खोखला कर रहा था. यह सिर्फ कुछ लाख रुपये की रिश्वतखोरी का मामला नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी संगठित रैकेट है, जिसमें देश के सबसे बड़े नौकरशाह, शिक्षाविद, प्रभावशाली बाबा, बिचौलिए और कॉलेज मालिक शामिल हैं. यह कहानी बताती है कि कैसे करोड़ों रुपये के दम पर अयोग्य मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दी जा रही थी, जो आगे चलकर देश के लिए "नकली डॉक्टर" पैदा करते.

घोटाला कैसे काम करता था? (The Modus Operandi)

यह रैकेट एक बेहद शातिर और सुनियोजित तरीके से काम करता था. इसका मुख्य उद्देश्य नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) के निरीक्षण को किसी भी तरह से पास करना था, चाहे कॉलेज में सुविधाएं हों या न हों. इसके लिए कई तरीके अपनाए जाते थे:

  1. डमी फैकल्टी और स्टाफ: NMC के नियमों के अनुसार, एक मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसरों, डॉक्टरों और स्टाफ की एक निश्चित संख्या होनी चाहिए. जिन कॉलेजों के पास पूरे टीचर नहीं होते थे, यह रैकेट उन्हें इंस्पेक्शन के दिन के लिए "किराए के डॉक्टर" या "डमी फैकल्टी" उपलब्ध कराता था. ये लोग दूसरे शहरों से लाए जाते थे और इंस्पेक्शन टीम के सामने असली स्टाफ बनकर खड़े हो जाते थे. इसके लिए नकली अटेंडेंस रजिस्टर और फर्जी एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट भी बनाए जाते थे.
  2. फर्जी मरीज: मेडिकल कॉलेज के साथ एक फंक्शनल हॉस्पिटल होना जरूरी है, जिसमें पर्याप्त संख्या में मरीज भर्ती हों. जिन कॉलेजों के अस्पताल खाली पड़े रहते थे, वहां इंस्पेCTION के दिन आसपास के गांवों से लोगों को पैसे देकर मरीज के तौर पर भर्ती कर दिया जाता था. उन्हें सिखाया जाता था कि जांच टीम के सामने क्या बोलना है.
  3. जानकारी का लीक होना: इस घोटाले का सबसे खतरनाक पहलू यह था कि रैकेट की पहुंच सिस्टम के अंदर तक थी. CBI के अनुसार, दिल्ली में बैठे कुछ अधिकारी NMC की गोपनीय फाइलों की तस्वीरें खींचकर व्हाट्सएप के जरिए बिचौलियों को भेज देते थे. इससे कॉलेज मालिकों को पहले ही पता चल जाता था कि इंस्पेक्शन कब होगा, कौन सी टीम आएगी और वे किन चीजों पर ज्यादा ध्यान देंगे.
  4. रिश्वत का खेल: यह सब काम पैसों के दम पर होता था. कॉलेज मालिकों से NMC की मान्यता की "गारंटी" के लिए 3 से 5 करोड़ रुपये तक वसूले जाते थे. यह पैसा हवाला और बैंकिंग चैनलों के माध्यम से बिचौलियों तक और फिर वहां से अधिकारियों तक पहुंचाया जाता था.

इस घोटाले के मुख्य खिलाड़ी कौन हैं?

CBI की FIR में 35 से ज्यादा नाम हैं, लेकिन कुछ चेहरे इस पूरे रैकेट के केंद्र में हैं:

  • रावतपुरा सरकार (रविशंकर महाराज): एक तथाकथित 'बाबा', जिनका राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में काफी प्रभाव है. उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अपने और दूसरे कॉलेजों के लिए गैर-कानूनी मंजूरियां दिलाईं. बड़े-बड़े नेताओं और अफसरों के साथ उनकी तस्वीरें उनकी पहुँच को दर्शाती हैं. रायपुर का श्री रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SRIMSR) इसी केस के केंद्र में है.
  • सुरेश सिंह भदौरिया: इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन. CBI का मानना है कि भदौरिया और रावतपुरा सरकार ने मिलकर एक शक्तिशाली गठजोड़ बनाया था. इंदौर का यह कॉलेज एक तरह से इस रैकेट का "हेडक्वार्टर" था, जहां से दूसरे कॉलेजों के लिए फर्जीवाड़े का ऑपरेशन चलाया जाता था.
  • डी.पी. सिंह: UGC (University Grants Commission) के पूर्व चेयरमैन और TISS के वर्तमान चांसलर. इतने बड़े शिक्षाविद का नाम आना इस बात का संकेत है कि घोटाले की जड़ें कितनी गहरी हैं.
  • संजय शुक्ला (सेवानिवृत्त IFS अधिकारी): छत्तीसगढ़ वन विभाग के प्रमुख रह चुके एक सीनियर अधिकारी. वे रावतपुरा ग्रुप में ट्रस्टी के तौर पर जुड़े हैं, जो सरकारी सिस्टम में रैकेट की गहरी पैठ को दिखाता है.
  • जीतू लाल मीणा: मेडिकल असेसमेंट एंड रेटिंग बोर्ड (MARB) का एक पूर्व सदस्य. FIR के अनुसार, वह एक प्रमुख बिचौलिए के तौर पर काम करता था और अपने पद का दुरुपयोग करके रिश्वत लेता था. एक चौंकाने वाले खुलासे में पता चला कि उसने रिश्वत के पैसों से कथित तौर पर राजस्थान में 75 लाख रुपये का एक हनुमान मंदिर भी बनवाया.

देश के अलग-अलग कोनों में फैला जाल

यह घोटाला किसी एक शहर तक सीमित नहीं था:

  • रायपुर: यहीं से जांच की शुरुआत हुई, जब CBI ने एक कॉलेज में इंस्पेक्शन टीम को 55 लाख की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा.
  • इंदौर: इसे घोटाले का "इंजन रूम" कहा जा सकता है, जहां से फर्जी फैकल्टी और दस्तावेजों का नेटवर्क चलाया जा रहा था.
  • दिल्ली: यह रैकेट का "कंट्रोल सेंटर" था, जहां से मंत्रालय के अंदर के लोग गोपनीय जानकारी लीक कर रहे थे.
  • आंध्र प्रदेश और तेलंगाना: दक्षिण भारत में एजेंटों का एक नेटवर्क था जो इंस्पेक्शन के लिए नकली फैकल्टी और मरीजों का इंतजाम करता था. वारंगल के फादर कोलंबो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ने क्लीयरेंस पाने के लिए 4 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया.

इस घोटाले का देश पर असर

यह मामला सिर्फ भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि देश की जनता के स्वास्थ्य के साथ एक गंभीर खिलवाड़ है. जब ऐसे कॉलेजों से छात्र बिना पूरी पढ़ाई और प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के डॉक्टर बनेंगे, तो वे मरीजों की जान के लिए खतरा साबित होंगे. इस घोटाले ने मेडिकल शिक्षा की नियामक संस्था NMC की विश्वसनीयता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

CBI की जांच अभी जारी है और माना जा रहा है कि 40 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज जांच के दायरे में आ सकते हैं. यह मामला भारत के मेडिकल एजुकेशन सिस्टम में तत्काल और बड़े सुधारों की जरूरत को रेखांकित करता है.