डॉक्टरों ने 20 सेंटीमीटर लंबी और 350 ग्राम वजन की बच्ची को इस तरह दिया नया जीवन

चेरी अब बिना कृत्रिम सहारे के सांस और भोजन ले पा रही है, उसका तापमान भी स्थिर है और अब वो किसी नार्मल बच्चे की तरह ही है. रूटीन चेकअप के दौरान उसका वजह 2.14 किलोग्राम पाया गया.

प्रतीकात्मक तस्वीर ([Photo Credits: Unsplash)

नई दिल्ली. हैदराबाद के रेनबो अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने ऑपरेशन कर दक्षिण पूर्वी एशिया में जन्मी बच्ची को बचाने में सफलता प्राप्त की है. जन्म के वक्त बच्ची का वजन मात्र 350 ग्राम था. छत्तीसगढ़ के रहने वाले निकिता और सौरभ की बेटी चेरी का जन्म सामान्य डिलीवरी से चार महीने पहले ही हो गया. अस्पताल सूत्रों के मुताबिक निकिता पांच महीने से गर्भवती थी और चिकित्सा दिक्कतों के कारण उन्हें पहले चार बार गर्भपात करवाना पड़ा था.

सूत्रों ने बताया कि 24 हफ्ते बाद हुए अल्ट्रासाउंड से मालूम हुआ कि बच्ची का वजन मात्र 350 ग्राम है और निकिता की बच्चेदानी में फ्लूइड कम होने की वजह से बच्चे की जान को खतरा हो गया है. बच्चे को मां से भी कम रक्त प्राप्त हो रहा था. ऐसे में अन्य अस्पतालों के डॉक्टरों ने बच्चे के बचने की उम्मीद बिलकुल खत्म कर दी थी. जिसके बाद दंपति ने रेनबो अस्पताल से संपर्क किया.

रेनबो अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें भरोसा दिलाया और पहले भी इस तरह के सफल आपरेशन की जानकारी दी. इसके बाद निकिता को एम्बुलेंस के जरिये रेनबो अस्पताल लाया गया जहां उन्हें प्रसवकालीन (पेरिनैटल) यूनिट में भर्ती किया गया.

टीम में अनेस्थीसिस्ट, महिला चिकित्सक, और नवजात शिशु विशेषज्ञों की टीम ने निकिता के प्रसव से पहले विस्तृत और सुरक्षित प्लान बनाया और 27 फरवरी को निकिता ने 350 ग्राम की बच्ची को सफलतापूर्वक जन्म दिया. महज 20 सेंटीमीटर लम्बी बच्ची इतनी छोटी थी कि उसे हैथेली पर रखा जा सकता था. अस्पताल के प्रशासन और डॉक्टर्स की टीम ने दंपति को विश्वास दिलाया कि वो सभी इस मुहिम में उनके साथ खड़े हैं.

रेनबो अस्पताल के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉक्टर रमेश कंचर्ला ने बताया, अस्पताल में अत्याधुनिक पेरिनैटल टीम की वजह से हम इतने छोटे बच्चे को बचा पाए. उन्होंने कहा, "पिछले 20 वषों की कठिन मेहनत का परिणाम है कि रेनबो अस्पताल ऐसे जटिल प्रसव को भी सफलतापूर्वक अंजाम दे पाता है. इसके लिए कुशल अनेस्थीसिस्ट, महिला चिकित्सक, शिशु विशेषज्ञ और दाईओं की जरूरत होती है. उन्होंने इसके लिए अस्पताल की नसिर्ंग टीम का भी जिक्र करते हुए उनके काम की तारीफ की.

डॉ. रमेश ने कहा, "प्रीमैच्यूर हुए बच्चों के मामलों में प्रसव के बाद शुरू के तीन चार दिन बेहद क्रिटिकल होते हैं क्यूंकि इस दौरान बच्चे बहुत कमजोर होते हैं. खासकर इस मामले में बच्ची को ऑक्सीजन और ब्लडप्रेशर की कमी से भी जूझना पड़ा था. बच्ची के छोटे आकर की वजह से उसके अन्दर श्वास नाली का डालना चुनौतीपूर्ण काम था और उसे प्रचुर श्वास देने के लिए वेंटीलेटर पर भी रखना पड़ा. पर अच्छी बात ये थी बच्ची के ब्रेन में ब्लीडिंग नहीं हो रही थी.

पांचवे दिन चेरी के फेफड़ों में ब्लीडिंग शुरू हो गयी जिससे उसे उच्च आवर्ती कंपन (हाई फ्रीक्वेंसी औसीलेशन) वेंटीलेटर पर रखना पड़ा. उसे 105 दिनों तक वेंटीलेटर पर रखा गया और इस दौरान कई बार बच्ची की हालात बिगड़ी पर हर बार उसे सफलतापूर्वक बचा लिया गया. जन्म के बाद चेरी को पीलिया, मल्टीपल ब्लड ट्रांस्फ्यूजन, भोजन सम्बंधित, फेफड़ों में इन्फेक्शन आदि की समस्याओं का सामना करना पड़ा. पर कुशल मेडिकल टीम की निगरानी में उसके वजन में लगातार बढ़ोतरी हुई और 128 दिनों की गहन देखभाल के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दे गयी.

चेरी अब बिना कृत्रिम सहारे के सांस और भोजन ले पा रही है, उसका तापमान भी स्थिर है और अब वो किसी नार्मल बच्चे की तरह ही है. रूटीन चेकअप के दौरान उसका वजह 2.14 किलोग्राम पाया गया.

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