HC on Live In Relationship and Rape: दो विवाहित वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप अपराध नहीं, रेप का आरोप नहीं लगा सकती महिला पार्टनर
जस्टिस शर्मा ने कहा कि लोगों को अपनी पसंद तय करने का अधिकार है. चाहे वह पुरुष हो या महिला. लेकिन दोनों को ऐसे रिश्तों के दुष्परिणामों को लेकर अलर्ट रहना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत वयस्क ऐसे निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं.
नई दिल्ली: शादीशुदा दो वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप सामाजिक रूप से अस्वीकार्य हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहीं है. दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में 13 सितंबर को दिए गए एक फैसले में, जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि सामाजिक दृष्टिकोण से नैतिक गलत काम और कानूनी आपराधिक गलत काम दो अलग-अलग मुद्दे हैं. हालांकि समाज में कुछ लोग दो विवाहित व्यक्तियों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप के गंभीर आलोचक हो सकते हैं, लेकिन कई अन्य शायद इसके पक्ष में हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा, ' कानून में दो सहमति वाले विवाहित वयस्कों के बीच लिव-इन संबंध अपराध नहीं है.' अगर महिलाओं को सियाचिन में तैनात किया जा सकता है, तो सेना में पुरुष नर्स क्यों नहीं हो सकते.
जस्टिस शर्मा ने कहा कि लोगों को अपनी पसंद तय करने का अधिकार है. चाहे वह पुरुष हो या महिला. लेकिन दोनों को ऐसे रिश्तों के दुष्परिणामों को लेकर अलर्ट रहना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत वयस्क ऐसे निर्णय लेने के लिए भी स्वतंत्र हैं जो सामाजिक मानदंडों या अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं हो सकते हैं. हालांकि लोगों को इसके दूरगामी परिणामों के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है.
अदालत ने कहा, हालांकि महिला किसी अन्य व्यक्ति से अपनी मौजूदा शादी के कारण कानूनी तौर पर शादी नहीं कर सकती है और साथ ही विवाहित महिला यह दावा नहीं कर सकती कि उसे शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने के लिए उकसाया गया था.
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने गुरुवार को जारी एक आदेश में कहा कि इस केस में दो व्यक्ति शामिल थे. जो कानूनी रूप से एक-दूसरे से शादी करने के लिए अयोग्य थे, लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में साथ रह रहे थे. भारतीय दंड संहिता की धाारा 356 के तहत दी गई सुरक्षा ऐसी पीड़िता को नहीं दी जा सकती है.