Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने सिविल सेवा पेपर लीक मामले में पंजाब-हरियाणा एचसी के पूर्व रजिस्ट्रार के खिलाफ आरोप बरकरार रखे
दिल्ली हाईकोर्ट ने हरियाणा सिविल सेवा (न्यायिक शाखा) प्रारंभिक परीक्षा 2017 के पेपर लीक के मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. बलविंदर कुमार शर्मा के खिलाफ आरोपों को बरकरार रखा है.
नई दिल्ली, 16 दिसंबर : दिल्ली हाईकोर्ट ने हरियाणा सिविल सेवा (न्यायिक शाखा) प्रारंभिक परीक्षा 2017 के पेपर लीक के मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. बलविंदर कुमार शर्मा के खिलाफ आरोपों को बरकरार रखा है. न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने कहा कि सबूत कथित लीक से ठीक पहले प्रश्नपत्र शर्मा के पास होने का संकेत देते हैं. मामले की संवेदनशील प्रकृति की ओर इशारा करते हुए अदालत ने कहा कि आवश्यक साक्ष्य मुख्य रूप से डिजिटल या दस्तावेजी हैं.
शुरू में आरोप 31 जनवरी 2020 को चंडीगढ़ की एक सत्र अदालत द्वारा तय किए गए थे, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट ने बरकरार रखा. 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने शर्मा की याचिका के बाद मुकदमे को राष्ट्रीय राजधानी में स्थानांतरित कर दिया था. यह मामला वर्तमान में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश-सह-विशेष न्यायाधीश (पीसी एक्ट/सीबीआई) राउज एवेन्यू कोर्ट की अदालत में लंबित है. यह भी पढ़ें : संसद सुरक्षा चूक मामले के ‘मास्टरमाइंड’ ललित झा के माता-पिता ने कहा : हमारा बेटा ऐसा नहीं कर सकता
पेपर लीक के बाद पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा शर्मा को निलंबित कर दिया गया और रोपड़ स्थानांतरित कर दिया गया, बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. आरोप पत्र में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत धाराएं शामिल हैं. शर्मा की याचिका खारिज करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोप के चरण में आरोपी तब तक दस्तावेज जमा नहीं कर सकता, जब तक कि वह असाधारण रूप से बेमेल न हो.
इस मामले में, अदालत को ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली, जो सह-अभियुक्त सुनीता के साथ शर्मा के लगातार संचार के अभियोजन पक्ष के दावे को सही ठहराती हो. डिजिटल साक्ष्य के संबंध में अदालत ने कहा कि ऐसे साक्ष्य से जुड़े मामलों को प्रारंभिक चरण में खारिज नहीं किया जा सकता है. पुनरीक्षण याचिकाओं पर विचार करने में अदालत का क्षेत्राधिकार ट्रायल कोर्ट के आदेश में गंभीर अवैधता, दुर्बलता या विकृति के उदाहरणों तक सीमित है, जिसे अदालत ने इस मामले में नहीं पाया.