नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के स्तर को ध्यान में रखते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को यह साफ किया कि इस दिवाली और अन्य त्योहारों पर यहां सिर्फ इको फ्रेंडली यानी हरित पटाखे ही बेचे जाएंगे. न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि जिन पटाखों का निर्माण पहले से हो चुका है, उन्हें इस त्योहारी मौसम में देश के अन्य भागों में बेचा जा सकता है. इसके साथ ही कोर्ट ने पटाखों के फोड़ने की समयावधि को लेकर भी दिशा निर्देश जारी किए हैं जिसके अनुसार, नवंबर में पड़ रहे गुरुपर्व के मौके पर सुबह चार से पांच बजे के बीच और रात को नौ से दस बजे के बीच एक-एक घंटे के लिए पटाखे फोड़े जा सकेंगे.
न्यायालय ने 23 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा था कि दिवाली और अन्य त्योहारों पर पटाखे सिर्फ शाम आठ बजे से रात दस बजे तक दो घंटे के लिए जलाए जा सकेंगे. पीठ ने कहा कि तमिलनाडु, पुडुचेरी और अन्य दक्षिणी राज्यों के संबंध में, अदालत 30 अक्टूबर को आदेश पहले ही पारित कर चुका है जिसमें उसने अधिकारियों को संबंधित राज्यों में पटाखे चलाने के समय में बदलाव करने की आजादी दी थी, लेकिन कहा था कि समयावधि एक दिन में दो घंटे से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
न्यायालय ने कहा कि ई-कॉमर्स वेबसाइटों (ऑनलाइन) के माध्यम से पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध पूरे देश में लागू है. न्यायालय ने 23 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा था कि यदि ई-कॉमर्स कंपनियां अदालत के निर्देश का पालन नहीं करती हैं तो उनके खिलाफ अवमानना का मुकदमा चलाया जाएगा. यदि प्रतिबंधित पटाखे बिकते हैं तो उस थाना क्षेत्र के प्रभारी को इसके लिए जिम्मेदार माना जाएगा.
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शीर्ष अदालत ने वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के उद्देश्य से, देश में पटाखों के निर्माण और उनकी बिक्री पर प्रतिबंध के लिए दायर याचिका पर यह आदेश दिया. पीठ ने कहा कि यदि ये वेबसाइटें न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं करेंगी तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जायेगी. साथ ही पीठ ने कहा कि निर्धारित सीमा के भीतर ही शोर करने वाले पटाखों की बाजार में बिक्री की अनुमति होगी.
न्यायालय ने केन्द्र से कहा था कि वह दीपावली और अन्य त्योहारों के अवसर पर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सामुदायिक तरीके से पटाखे फोड़ने को प्रोत्साहन दे. शीर्ष अदालत ने इससे पहले कहा था कि पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध के मामले में इनके निर्माताओं की आजीविका के मौलिक अधिकारों और देश की सवा सौ करोड़ से अधिक आबादी के स्वास्थ्य के अधिकारों सहित विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखना होगा.