Corona Vaccine Update: कोविड वैक्सीन के लिए 600 रुपये से अधिक देने को राजी नहीं 63 फीसदी लोग

निजी अस्पतालों में 1 मार्च से शुरू हो रहे अगले चरण के टीकाकरण अभियान के दौरान कोविड-19 वैक्सीन लेने की योजना बनाने वालों में से 63 प्रतिशत लोग (वैक्सीन को दो खुराक के लिए) 600 रुपये से अधिक का भुगतान करने को राजी नहीं है.

वैक्सीन/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Twitter)

नई दिल्ली, 27 फरवरी : निजी अस्पतालों में 1 मार्च से शुरू हो रहे अगले चरण के टीकाकरण अभियान (Vaccination Campaign) के दौरान कोविड-19 वैक्सीन लेने की योजना बनाने वालों में से 63 प्रतिशत लोग (वैक्सीन को दो खुराक के लिए) 600 रुपये से अधिक का भुगतान करने को राजी नहीं है. इस आशय की जानकारी लोकलसर्किल्स द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में सामने आई है. जनमत सर्वेक्षण में इस धारणा को समझने की कोशिश की गई कि लोग अपने परिवार के किसी सदस्य को इस अगले चरण में टीका लगाने के योग्य होने पर दो खुराक के लिए कितना भुगतान करने को तैयार हैं. जवाब में 17 फीसदी ने कहा कि "200 रुपये तक", 22 फीसदी ने कहा "300 रुपये तक", 24 फीसदी ने कहा "600 रुपये तक", 16 फीसदी ने कहा "1000 रुपये तक", और 6 फीसदी ने कहा "1000 रुपये से ऊपर", जबकि 15 प्रतिशत लोगों ने कहा कि "कुछ नहीं कह सकते". सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चलता है कि निजी अस्पताल में अगले चरण में कोविड-19 वैक्सीन लेने की योजना बनाने वालों में से 63 प्रतिशत दो खुराक के लिए कुल शुल्क में 600 रुपये से अधिक का भुगतान नहीं करेंगे.

यह इस बात की ओर इंगित करता है कि सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास करने होंगे कि निजी अस्पतालों को सबसे कम लागत पर वैक्सीन मिल सके, ताकि वे इस बजट में नागरिकों को वैक्सीन लगा सकें. सर्वेक्षण के परिणामों से संकेत मिलता है कि इस समय 21 प्रतिशत नागरिक अपने परिवार के सदस्यों के लिए भुगतान के आधार पर निजी अस्पताल में वैक्सीन प्राप्त करने के लिए तैयार हैं और यह इस पर निर्भर करता है कि निजी अस्पताल में टीकाकरण अभियान कैसे आगे बढ़ता है. 27 प्रतिशत लोग अभी यह तय नहीं कर पाए हैं. वे भी संभवत: इस चैनल के माध्यम से वैक्सीन प्राप्त कर सकते हैं. जिस आधार पर निजी अस्पताल में टीका लगाया जा रहा है, उनमें से 63 प्रतिशत लोग टीके (दो खुराक) के लिए 600 रुपये या उससे कम का भुगतान करने को तैयार हैं. यह भी पढ़ें : यूपी विधानसभा चुनाव से पहले लोगों के बीच मजबूत पकड़ बनाने में जुटी AAP, मेरठ में कल सीएम अरविंद केजरीवाल किसान महापंचायत को करेंगे संबोधित

सरकार के सामने उलझन यह है कि चूंकि इस वैक्सीन को बाजार में बेचने की इजाजत नहीं है, तो ऐसे में इसके एमआरपी को कैसे परिभाषित किया जाए. इसे सरकार को सुलझाना होगा. मूल्य निर्धारण के अलावा टीके की कालाबाजारी, अपव्यय और पहले टीका किसको लगे - यह अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टर द्वारा तय किया जाना - कुछ ऐसी बातें हैं जिससे कई लोग बेहद चिंतित हैं. 35 प्रतिशत नागरिकों ने कहा कि वे "एक सरकारी केंद्र में वैक्सीन लेंगे", जबकि 21 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे "एक निजी अस्पताल में वैक्सीन लगवाएंगे". 27 प्रतिशत नागरिक ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि वे "टीका तो लगवाएंगे लेकिन, निजी या सरकार अस्पताल में - यह फिलहाल तय नहीं है". इस सर्वेक्षण के अनुसार, यह पता चला है कि 5 प्रतिशत नागरिकों ने "टीका पहले ही ले लिया है", जबकि 6 प्रतिशत नागरिकों ने कहा "नहीं कह सकते", और अन्य 6 प्रतिशत ने कहा कि "उनके परिवार का कोई भी सदस्य उपरोक्त मानदंडों को पूरा नहीं करता है".

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