राहुल गांधी से नजदीकियों की वजह से कांग्रेस नेता को हुआ नुकसान, उपेक्षित किए गए
राहुल गांधी (Photo Credits ANI)

भोपाल , 17 मार्च : राजनीति में बड़े नेता से नजदीकी और उसकी सरपरस्ती विशेष योग्यता में शामिल है. हालांकि, मध्य प्रदेश के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के लिए बड़े नेता यानि राहुल गांधी से करीबी ही नुकसानदायक हो चली है. उन्हें राज्य की राजनीति में उपेक्षित कर दिया गया है और उनके प्रभाव को लगातार कमजोर करने की कोशिश जारी है. कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर से लेकर राज्य के स्तर तक पर संकट के दौर से गुजर रही है. एक तरफ जहां पराजय उसके खाते में आ रही है तो वहीं दूसरी ओर कार्यकर्ता और नेता निराश हेाकर घर बैठते जा रहे हैं. इसका सीधा असर पार्टी की जमीनी स्थिति पर पड़ रहा है.

बात मध्यप्रदेश की ही करें तो पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव राज्य की राजनीति में पिछड़े वर्ग का बड़ा चेहरा है. उनकी राहुल गांधी से नजदीकी किसी से छुपी नहीं है, मगर इन दिनों उनके सितारे गर्दिश में है. उनके प्रभाव को कम करने की कोशिशें कई तरह से हो रही हैं और इसमें कोई एक नहीं कई बड़े नेता शामिल हैं. राज्य में कांग्रेस के भीतर चल रही गतिविधियों पर गौर करें तो यह साफ नजर आता है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है. पिछले दिनों भोपाल में पार्टी ने पिछड़ा वर्ग के सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें अरुण यादव को बुलाया तक नहीं गया. वही खंडवा लोकसभा चुनाव में पार्टी के असहयोगात्मक रुख को देखते हुए उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. राज्य में ओबीसी का मुद्दा गरमाया हुआ है मगर ओबीसी के चेहरे को ही आगे करने से पार्टी कतरा रही है. यह भी पढ़ें : अदालत ने अभिनेता दिलीप से कहा, हत्या की साजिश मामले में जांच पर रोक नहीं लगाएंगे

अरुण यादव के पिता सुभाष यादव राज्य के उप मुख्यमंत्री रहे हैं. उनके छोटे भाई सचिन यादव कमलनाथ की सरकार में मंत्री रहे हैं और वर्तमान में विधायक हैं. इस परिवार की जहां सहकारिता के क्षेत्र में पकड़ है तो वही कृषि आंदोलनों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. साथ ही वे ओबीसी वर्ग से आते हैं, लिहाजा पार्टी उनका बेहतर उपयोग कर सकती है मगर ऐसा हो नहीं रहा है. कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि अरुण यादव को एक सोची-समझी रणनीति के तहत किनारे किया जा रहा है. वह याद करते हैं कि जब यादव प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे तो उन्होंने राज्य के लगभग हर हिस्से का दौरा किया था और पार्टी की मजबूती के लिए काम भी. यह बात अलग है कि 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की कमान कमलनाथ को सौंप दी गई थी. वर्तमान में पार्टी के कुछ नेता उन नेताओं को निशाने पर ले हुए हुए हैं जो राहुल गांधी के करीबी हैं उनमें पूर्व मंत्री उमंग सिंगार व जीतू पटवारी भी शामिल हैं, जिन्हें पार्टी में महžव नहीं दिया जा रहा है. अरुण यादव भी पार्टी के वर्तमान हालात से दुखी और चिंतित हैं और उन्होंने कुर्सी की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं पर ही तंज कसते हुए बीते रोज एक ट्वीट किया था जिसने सियासी हलकों में खलबली मचा दी है.