China-India: चीन और भारत के बारे में चौकाने वाला खुलासा, कोरोना के बाद बड़ी संख्या में लोग मानसिक परेशानियों से जूझ रहे

दुनिया भर में करोड़ों लोग किसी न किसी परेशानी से जूझ रहे हैं। शारीरिक बीमारियों के साथ-साथ मानसिक समस्याओं ने भी लोगों को घेर कर रखा है. कोरोना महामारी के कारण बड़ी संख्या में लोग मानसिक रोगों की चपेट में आ गए हैं. इन चुनौतियों से न केवल उम्रदराज़ लोग त्रस्त हैं, बल्कि जवान भी.

बीजिंग, 10 अक्‍टूबर :  दुनिया भर में करोड़ों लोग किसी न किसी परेशानी से जूझ रहे हैं. शारीरिक बीमारियों के साथ-साथ मानसिक समस्याओं ने भी लोगों को घेर कर रखा है. कोरोना महामारी के कारण बड़ी संख्या में लोग मानसिक रोगों की चपेट में आ गए हैं। इन चुनौतियों से न केवल उम्रदराज़ लोग त्रस्त हैं, बल्कि जवान भी. ताज़ा आंकड़ों की मानें तो अभी विश्व के 20 फीसदी बच्चे और किशोर मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं. इतना ही नहीं 15 से 29 साल की उम्र के युवाओं के बीच मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है. भारत और चीन जैसे देश भी इन चुनौतियों से जूझ रहे हैं.  जाहिर है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी आबादी वाले राष्ट्रों को अपने नागरिकों को मानसिक रूप से स्वस्थ बनाने की दिशा में ध्यान देने की जरूरत है.

चीन में लगभग दस प्रतिशत वयस्क डिप्रेशन की कगार पहुंच चुके हैं. जबकि किशोरों में मानसिक समस्या बड़ी चुनौती है. चीन के मुकाबले भारत की स्थिति ज्यादा खराब है. भारत में हर पांच में से एक व्यक्ति भावनात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याओं से परेशान है. जबकि लगभग 6-7 करोड़ लोग सामान्य और गंभीर मानसिक विकार से पीड़ित हैं. भारत में आत्महत्या करने की समस्या बहुत व्यापक हो चुकी है, हर साल करीब दो लाख 60 हज़ार से अधिक लोग अपनी जान ले लेते हैं. यह भी पढ़े:  बच्चों पर चिल्लाना मौखिक दुर्व्यवहार, इसे परिभाषित करना हानिकारक पालन-पोषण को रोकने में मदद करेगा 

डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति लाख लोगों पर आत्महत्या की औसत दर 10.9 है. चीन में हाल में जारी रिपोर्ट में मानसिक अवसाद को लेकर चेतावनी दी गयी है। बताया गया है कि चीन में लगभग 10 वयस्क लोगों में से एक व्यक्ति डिप्रेशन की चपेट में है. चाइनीज़ एकेडमी ऑफ साइंसेज़ इंस्टीट्यूट ऑफ साइकोलॉजी के शोधकर्ताओं के अनुसार मेंटल हेल्थ को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए. उनका कहना है कि चीन में स्थिति पहले की तुलना में बेहतर है. इसकी वजह हाल के वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में लोगों की बढ़ती पहुंच को माना जा रहा है.

गौरतलब है कि इंडिया की तरह चीनी युवा भी मानसिक रूप से चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। चीन में 18 से 24 वर्ष की आयु के युवाओं में डिप्रेशन सबसे बड़ी परेशानी है. इस आयु वर्ग के 24 फीसदी अवसाद का शिकार हो रहे हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि युवाओं में नींद कम आना और मानसिक परेशानी आम है. शायद वे नौकरी और अपने भविष्य के प्रति चिंतित रहते हैं. ऐसे समय उन्हें बेहतर काउंसलिंग की आवश्य़कता है। इस बारे में संबंधित विभागों को ध्यान देना होगा. जैसा कि हम जानते हैं कि कोरोना महामारी ने करीब तीन साल तक आतंक मचाए रखा. जिसके कारण लाखों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। जबकि लोग मानसिक रूप से बेहद परेशान रहे। उन्होंने अपने सगे-संबंधियों और दोस्तों को खो दिया, जबकि नौकरी का संकट भी पैदा हो गया.

इसकी वजह से तमाम लोग मानसिक तौर पर बीमार हो गए, डिप्रेशन से घिर गए या अनिद्रा की समस्या से परेशान हुए. लगभग समूचे विश्व में कोविड-19 के कारण लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ा। आम तौर पर शारीरिक रूप से बीमार व्यक्ति ही लोगों को अस्वस्थ नज़र आता है। जबकि मानसिक समस्या लोगों को अंदर से परेशान करती है. इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि मानसिक परेशानियों से लोग कितने त्रस्त हैं.

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