Chandrasekhar Azad 90th Death Anniversary: चंद्रशेखर आजाद की 90वीं पुण्य-तिथि पर विशेष, जानिए इनके जीवन के 10 अनछुए एवं रोमांचकारी सत्य!

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को अलीराजपुर (मप्र) जिला के भाबरा गांव में हुआ. पिता पं. सीताराम तिवारी अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते थे. माता जगरानी सामान्य गृहिणी थी. बचपन में भील बच्चों के साथ उन्होंने तीर धनुष चलाना सीखा.

भारत के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ( फाइल फोटो )

चंद्रशेखर आजाद की पुण्य-तिथि : चंद्रशेखर आजाद (Chandrasekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई 1906 को अलीराजपुर (मप्र) जिला के भाबरा गांव में हुआ. पिता पं. सीताराम तिवारी (Pt. Sitaram Tiwari) अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते थे. माता जगरानी सामान्य गृहिणी थी. बचपन में भील बच्चों के साथ उन्होंने तीर धनुष चलाना सीखा. पिता के सुझाव पर 1921 में उन्होंने संस्कृत की उच्च शिक्षा के लिए बनारस (वाराणसी) के बीएचयू में दाखिला लिया. यहीं पर वे मन्मथदास गुप्त और प्रणवेश चटर्जी जैसे क्रांतिकारियों से जुड़े. 1922 में गांधीजी द्वारा छेड़े 'असहयोग आन्दोलन'(non cooperation movement) से प्रभावित होकर चंद्रशेखर पढ़ाई छोड़ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ युद्ध में कूद पड़े. लेकिन गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद उनका मन गांधी जी से खट्टा हो गया. वे सक्रिय क्रांतिकारियों से जुड़ गये. 9 अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल के साथ 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड में हिस्सा लिया. भगत सिंह के साथ लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया एवं दिल्ली पहुंचकर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया. चंद्रशेखर जब 24 साल के थे, कुछ नेताओं की साजिशों से 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज स्थित अल्फ्रेड पार्क में पुलिस द्वारा घेर लिये गये. इससे पहले कि पुलिस उन तक पहुंचती, चंद्रशेखर ने अपनी कनपटी पर गोली मार ली.

जीते जी ब्रिटिश हुकमत की चूलें हिला देनेवाले चंद्रशेखर आजाद की 90वीं पुण्य-तिथि पर आइये आजादी के नायक 'आजाद' के कुछ अनछुए पहलुओं से रुबरू हों:

1. पिता की ख्वाहिश थी कि बेटा संस्कृत का विद्वान बनें, उन्होंने 1921 में उच्च शिक्षा के लिए BHU भेजा. हांलाकि पढ़ाई के प्रति उनकी दिलचस्पी कभी नहीं रही. उन्हीं दिनों गांधीजी ने 'असहयोग आंदोलन' शुरु किया था, चंद्रशेखर पढ़ाई छोड़ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े.

2. 15 वर्षीय किशोरवयः के चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर पुलिस ने अदालत में प्रस्तुत किया तो जज द्वारा नाम पूछने पर 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्र' और निवास स्थान 'जेल' बताया. उनके जवाब से चिढ़कर जज ने उन्हें 15 कोड़ों की सजा सुनाई. कहते हैं कि जब उनके बदन पर कोड़े पड़ते, 'वे भारत माता की जय' का उद्घोष करते थे. इसके बाद ही उनके नाम के साथ 'आजाद' शब्द जुड़ गया. यह भी पढ़ें : Marathi Bhasha Divas Messages 2021: मराठी भाषा दिवस पर ये WhatsApp Messages, SMS, Wishes भेजकर दें शुभकामनाएं

3. 1924 में चंद्रशेखर क्रांतिकारियों के साथ सदस्य अमीर घरों में डकैतियां डालते थे, ताकि हथियारों के लिए धन की व्यवस्था हो सके. एक बार डकैती के दरम्यान एक महिला ने आज़ाद का पिस्तौल छीन लिया, चंद्रशेखर चाहते तो पिस्तौल छीन सकते थे, लेकिन उन्होंने उसे स्पर्श भी नहीं किया. तब बिस्मिल उस महिला चांटा मारकर पिस्तौल छीन लिया. गौरतलब है कि चंद्रशेखर ने पहले ही कह रखा था कि वे किसी महिला पर हाथ नहीं उठायेंगे. जिसका उन्होंने मरते दम तक पालन किया.

4. बाद में चंद्रशेखर एक स्वतंत्रता सेनानी और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल के एसोसिएशन से जुड़े. इसके लिए फंड जुटाने की जिम्मेदारी ली.

5. 1925 में चंद्रशेखर ने अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्र लाहिड़ी और राम प्रसाद बिस्मिल के साथ काकोरी ट्रेन डकैती काण्ड का हिस्सा बनें. ट्रेन में रखे सरकारी खजाने को लूट लिया, ताकि इस खजाने से हथियार खरीदकर ब्रिटिश हुकूमत के हथियारों का जवाब दिया जा सके.

6. वर्ष 1927 में लाला लाजपत राय की हत्या का बदला स्वरूप चंद्रशेखर ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी.

7. काकोरी काण्ड के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने रोशन सिंह, अशफाक उल्लाह और राजेंद्र लाहिड़ी को गिरफ्तार कर फांसी की सजा सुनाई थी. यद्यपि चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह के साथ फरार होने में सफल रहे. यह भी पढ़ें : World NGO Day 2021 Messages: विश्व एनजीओ दिवस को इन हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, HD Image, Quotes के जरिए करें सेलिब्रेट

8. चंद्रशेखर ने अपने क्रांतिकारियों को अस्त्र-शस्त्र से प्रशिक्षित करने के लिए झांसी से 15 किमी दूर ओरछा के बीहड़ जंगलों को चुना, जहां अंग्रेज पुलिस का पहुंचना आसान नहीं था.

9. चंद्रशेखर आजाद ने कसम खाई थी कि ब्रिटिश पुलिस अधिकारी उसे जिंदा नहीं पकड़ सकेंगे. इसलिए प्रयागराज (पूर्व नाम इलाहाबाद) के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस द्वारा घेरे जाने पर आजाद ने अपने रिवॉल्वर की पांच गोलियों से पुलिस वालों को मारने के बाद अंतिम गोली खुद के सीने में मारकर मौत को गले लगाया और इस तरह जीते जी नहीं पकड़े जाने की कसम पूरी की.

10. चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु के पश्चात लोगों ने उस पार्क का नाम अल्फ्रेड पार्क से बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क नाम रख दिया. आज वह स्थान राष्ट्रीय धरोहर के रूप में जाना जाता है.

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