
बिहार में लंबे समय से खस्ताहाल बुनियादी ढांचे, भ्रष्टाचार, राजनीति और प्रशिक्षित कोच की कमी का दंश झेल रहे खेल और खिलाड़ी अपनी पहचान बनाने की पुरजोर जुगत में हैं. बीते सालों में सरकार ने भी इस ओर ध्यान दिया है.खेल के लिए बिहार का बजट 680 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. वर्ष 2024 में कला, संस्कृति व युवा विभाग से अलग खेल विभाग का गठन किया गया. इसका उद्देश्य प्रदेश में खेल का बेहतर माहौल बनाना है. साथ ही प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की खोज कर ओलंपिक जैसी प्रतियोगिता के लिए तैयार करना है.
मेडल लाओ-नौकरी पाओ के बाद अब बिहार खेल छात्रवृति योजना शुरू की जा रही है. जिसके तहत प्रति वर्ष तीन, पांच और 20 लाख रुपये तक की राशि 725 प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर दी जाएगी.
बुनियादी ढांचे में निवेश
नौकरी के प्रावधानों से इतर खेल के बुनियादी ढांचे पर भी बिहार में भारी निवेश किया जा रहा है. नालंदा जिले के राजगीर में 770 करोड़ की लागत से बिहार स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई है, जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट और हॉकी स्टेडियम सहित 23 तरह के खेलों के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं तथा भारतीय खेल प्राधिकरण के तीन प्रशिक्षण केंद्र हैं.
यहां कुश्ती, तैराकी, बॉक्सिंग, एथलेटिक्स, फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी, बास्केटबॉल, ताइक्वांडो, साइकिलिंग और शूटिंग पर विशेष फोकस किया जा रहा है. इसके अलावा बड़े स्तर पर स्टेडियम का निर्माण हो रहा है ताकि बच्चे पढ़ें भी और खेलें भी.
निर्माण कार्यों का नतीजा
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 250 से अधिक स्टेडियम का निर्माण पूरा हो चुका है. खिलाड़ियों के बेहतर प्रशिक्षण के लिए उन्हें बिहार के बाहर भी भेजा जा रहा है. हर पंचायत में स्पोर्ट्स क्लब बनाए जा रहे. ऐसे प्रयासों के बेहतर परिणाम भी सामने आए.
38वें राष्ट्रीय खेलों में महिला एथलीटों ने शानदार प्रदर्शन किया. 12 मेडल के साथ बिहार ने इतिहास रच दिया. इतना ही नहीं, राजगीर स्थित खेल परिसर में महिला एशियाई हॉकी चैंपियनशिप हुआ.
इस साल मार्च महीने में पटना में 20 से 25 मार्च तक सेपक टाकरा वर्ल्ड कप का आयोजन किया गया. इस वर्ल्डकप में 20 देशों के 300 से अधिक खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था. बिहार अब 29 अगस्त से सात सितंबर तक राजगीर में पुरुष एशिया कप हॉकी टूर्नामेंट की मेजबानी करने जा रहा है.
खिलाड़ियों को एसडीओ-डीएसपी बनने का मौका
बिहार में खेल रोजगार का भी जरिया बन रहा है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लिए बिहार सरकार ने ‘मेडल लाओ नौकरी पाओ' योजना शुरू की गई है. इसके तहत खेल प्रतियोगिताओं में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को सरकारी विभागों में सीधे नौकरी दी जा रही है. उन्हें एसडीओ एवं डीएसपी तक बनने का अवसर दिया जा रहा है.
वर्ष 2023-24 में इस योजना के अंतर्गत 71 उत्कृष्ट खिलाड़ियों को परीक्षा या इंटरव्यू के बिना ही सरकारी विभागों में नौकरी दी गई. 2010 से अबतक बिहार में 342 खिलाड़ियों को नौकरी दीजा चुकी है. खेल समीक्षक सुधीर कुमार कहते हैं, ‘‘दरअसल, जब नीतीश जी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्री थे तो उन्होंने रेलवे में एथलीटों को नौकरी देने की शुरुआत की थी. फिर, उन्होंने बिहार में खिलाड़ियों की उत्कृष्टता का स्तर बढ़ाने के उद्देश्य से रेलवे वाले मॉडल पर काम किया.''
कितना बड़ा हो सका खिलाड़ियों का कैनवस
राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई खेल प्रतिस्पर्धाओं में राज्य के खिलाड़ियों ने कई पदक हासिल किए. प्रखंड स्तर पर खेल कार्यक्रम आयोजित करने तथा अधिक से अधिक खिलाड़ियों की सहभागिता बढ़ाने के लिए फिक्की द्वारा दिया जाने वाला वर्ष 2024 का इमर्जिंग स्टेट ऑफ प्रमोटिंग स्पोर्ट्स का अवार्ड बिहार को मिला.
हरियाणा और तमिलनाडु को पीछे छोड़ कर बिहार ने यह अवार्ड जीता. इसी साल राज्य के करीब 40 हजार स्कूलों में खेल के कार्यक्रम आयोजित किए गए. साथ ही प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की खोज के लिए देश का सबसे बड़े कार्यक्रम ‘मशाल' का आयोजन किया गया.
उत्तराखंड में आयोजित 38वें नेशनल गेम्स में भी बिहार के खिलाड़ियों ने एक स्वर्ण सहित 12 पदक जीते. कॉमनवेल्थ गेम्स के एक प्रमुख स्पोर्ट्स लॉन बाउल्स में राज्य की महिला टीम ने स्वर्ण पदक का खिताब अपने नाम किया.
अंशिका-दीपिका तथा आकाश ने तीरंदाजी और तलवारबाजी जैसे खेल में बिहार का नाम रौशन किया. इसी तरह स्कूल गेम्स फेडरेशन आफ इंडिया (एसजीएफआइ) के तत्वावधान में बिहार राज्य खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित 68वीं नेशनल स्कूल गेम्स रग्बी (अंडर-19) प्रतियोगिता के बालिका वर्ग में बिहार की महिला टीम विजयी रही.
होनहारों को विशेष प्रशिक्षण
राजधानी पटना के पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कम्पलेक्स में 'खेलो इंडिया यूथ गेम्स' के लिए 500 खिलाड़ियों का ट्रायल हुआ. बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के महानिदेशक रवींद्रण शंकरण ने बताया, ‘‘एथलेटिक्स की 18 स्पर्धाओं के लिए प्रदेश के 12 जिलों से 61 बालिकाओं सहित कुल 230 खिलाड़ी तथा सेपक टाकरा के लिए 137 बालिकाओं सहित कुल 270 खिलाड़ियों ने ट्रायल में हिस्सा लिया.''
पहली बार 'खेलो इंडिया यूथ गेम्स' में शामिल सेपक टाकरा के ट्रायल में 40 खिलाड़ियों का चयन उनकी प्रतिभा, क्षमता और प्रदर्शन के आधार पर कर उन्हें खेलो इंडिया के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा. इस बार तीन से 15 मई तक होने वाले यूथ गेम्स में खेलों की संख्या 28 हो गई है.
इनमें से 25 प्रतियोगिताएं बिहार के पटना, राजगीर, गया, भागलपुर तथा बेगूसराय में आयोजित होंगी, जबकि शूटिंग, ट्रैक साइकिलिंग और जिमनास्टिक का आयोजन दिल्ली में किया जाएगा. रग्बी खिलाड़ी स्वीटी कुमारी कहती हैं, ‘‘अब हर खिलाड़ी बिहार को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर प्रतिनिधित्व देने और राज्य का नाम रौशन करने की कोशिश कर रहा है. सरकार हमारा साथ दे रही है.''
23 तरह के खेलों के लिए कोच की नियुक्ति की जा रही है. 2024 में 644 खिलाड़ियों के कोच व प्रशिक्षण पर साढ़े सात करोड़ रुपये खर्च किए गए.
खेल संघों पर राजनेता हावी
बिहार में खेल पर भी वर्षों से राजनीति हावी रही है. यहां कई ऐसे खेल संघ हैं, जिन पर राजनेताओं का दबदबा है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव काफी दिनों तक बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे. टेबल टेनिस संघ पर जेडीयू के एमएलसी संजय सिंह काबिज हैं तो बैडमिंटन की कमान आरजेडी के अब्दुल बारी सिद्दीकी के पास है. वहीं कबड्डी संघ के अध्यक्ष जेडीयू के विजय यादव और बिहार हॉकी एसोसिएशन के अध्यक्ष जेडीयू के ही श्रवण कुमार हैं.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि खेल संघ खिलाड़ियों के लिए बहुत मददगार साबित नहीं हो सके. इनकी अंदरुनी लड़ाई भी जगजाहिर रही है. बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष व बीजेपी के एमएलसी नवल किशोर यादव कहते हैं, ‘‘बिहार में खेल पर नेताओं का नहीं, अधिकारियों का कब्जा है. सरकार से खेल के आयोजनों पर बहुत मदद नहीं मिल पाती है. यहां के खिलाड़ियों को दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है. इन्फ्रास्ट्रक्चर की यहां कमी है.''
वहीं, सुधीर कुमार कहते हैं, ‘‘लगातार होने वाले खेल आयोजन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को यह भरोसा तो दिला ही रहे कि मन लगाकर खेला जाए तो बिहार में भी फ्यूचर है."