नई दिल्ली, 13 मार्च: महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक गिरीश महाजन (MLA Girish Mahajan) ने बम्बई उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) का रुख किया है, जिसमें राज्य विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चयन करने के लिए खुली मतदान पद्धति के नए नियमों की वैधता को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया है. Maharashtra: बीजेपी विधायक नितेश राणे ने CM ठाकरे को लिखा पत्र, फिल्म द कश्मीर फाइल्स को टैक्स फ्री करने की मांग की
महाजन ने जनहित याचिका में आरोप लगाया है कि 23 दिसंबर, 2021 की अधिसूचना ‘‘अवैध और मनमाने ढंग से’’ महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी की गई थी, जिसमें महाराष्ट्र विधानसभा नियम, 1960 के नियम 6 और 7 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत गुप्त मतदान पद्धति को ध्वनि मत और हाथों के प्रदर्शन के माध्यम से एक खुली मतदान पद्धति में बदल दिया गया था.
अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह और सिद्धार्थ धर्माधिकारी के माध्यम से दायर की गई अपील में कहा गया है कि बम्बई उच्च न्यायालय ने नौ मार्च को याचिकाकर्ता महाजन द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें बड़े पैमाने पर आम जनता पर प्रभाव डालने वाले कानूनों से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गये थे.
अपील में सवाल किया गया था कि क्या महाराष्ट्र विधानसभा नियम, 1960 कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाएं हैं. अपील में कहा गया है, ‘‘क्या राज्य विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव की तारीख तय करने के संबंध में राज्य के राज्यपाल के पास विवेकाधीन शक्तियां हैं?’’ इसमें कहा गया है कि कानून का एक और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या किसी राज्य का मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना भारत के संविधान के तहत किसी भी शक्ति का इस्तेमाल कर सकता है?
अपील में यह भी कहा गया है, ‘‘क्या विधानसभा के उपाध्यक्ष का चयन राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा किया जा सकता है?’’ इसमें कहा गया है कि विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय का कर्तव्य है कि वह लोकतंत्र की प्रक्रिया में आम जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए निष्पक्ष रहे.
महाजन ने कहा कि उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि नियम कहीं भी यह निर्दिष्ट नहीं करते हैं कि मुख्यमंत्री अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति का एकतरफा निर्णय ले रहे हैं और वह चुनाव की तारीख पर निर्णय ले रहे हैं. उन्होंने अपनी अपील में कहा, ‘‘इस आदेश की प्रति अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है और याचिकाकर्ता अक्षेपित आदेश की प्रति को जब भी उपलब्ध हो रिकॉर्ड पर रखने का वचन देता है।’’
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