Bhagat Singh Birth Anniversary: भारत माता के इस लाल ने हिला दी थी अंग्रेज सरकार की नींव, जानें शहीद-ए-आजम भगत सिंह के बारे में कुछ अनसुनी बातें
शहीद भगत सिंह (File Photo)

Bhagat Singh 112th Birth Anniversary: शहीद-ए-आजम भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh ) का 28 सितंबर को जन्मदिन है. भारत की आजादी के लड़ाई में सबसे कम उम्र में अंग्रेजो (British governments) के खिलाफ लड़ने वाले भारत माता के सच्चे सपूत भगत सिंह के बलिदान को भारत कभी नहीं भूल सकता है. भारत माता के सबसे लाडले पुत्र भगत सिंह अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए 23 बरस की छोटी सी उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए थे. आज भले भगत सिंह हमारे बीच में न हों लेकिन वे आज भी लाखों-करोड़ो हिन्दुस्तानी के दिलों में बसते हैं और जब हम आजादी के आबोहवा सांस लेते हैं तो रोम-रोम उन्हें नमन करता है. भगत सिंह ने अपनी मां की ममता से ज्यादा तवज्जो भारत मां के प्रति अपने प्रेम को दी थी. शहीद भगत सिंह के जन्मदिन पर जाने उनसे जीवन से जुड़ी रोचक बातें.

भगत सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत में लायपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर 1907 हुआ था. जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है. अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने का मन भगत सिंह उस वक्त ही बना चुके थे जब उनकी उम्र महज 12 साल की थी. एक बार जब भगत सिंह छोटे थे तब उन्हें एक बंदूक मिल गया था. जिसे लेकर वे अपने खेत में गए और उसे जमीन में गाड़ने लगे क्योंकि उन्हें लगा आम की पेड़ की तरह आगे बहुत सारा बंदूक जमीन से निकलेगा, उस दौरान उनके चाचा भी थें. भगत सिंह के नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ाई के दौरान ही असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई जा रही थी.

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अंग्रेजों दहलाने के लिए भगत सिंह और सुखदेव को चुना गया. भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर एसेंबली में बम फोड़ा. इस घटना के बाद भगत सिंह पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था. भगत सिंह और उनके दो साथियों-राजगुरु और सुखदेव को गोरी हुकूमत के खिलाफ षड्यंत्र और ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी सांडर्स की हत्या के आरोप में 23 मार्च 1931 को लाहौर में फांसी दी गई थी.

भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जे. पी. सांडर्स को मारा था. इसकी योजना बनाने में सुखदेव भी साथ थे. इस कार्रवाई में क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने भी उनकी पूरी मदद की थी. इसके अलावा भगत सिंह ने क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर सेंट्रल असेंबली में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे. बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी थी.

करीब 2 साल जेल में रहने के दौरान भी भगत सिंह क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और लेखन व अध्ययन भी जारी रखा. कहा जाता है कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी देने के लिए 24 मार्च की सुबह तय की गई थी लेकिन एक दिन पहले ही यानी 23 मार्च की रात को ही इन क्रांति-वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी गई क्योंकि तीनों क्रांतिकारियों को फांसी देने का ऐलान पहले ही किया जा चुका था और यह खबर आग की तरह पूरे देश में फैल गई थी.