WB Teacher's Recruitment Case: बंगाल स्कूल नौकरी मामला- कलकत्ता हाईकोर्ट ने OMR शीट प्रकाशन पर आदेश रखा बरकरार

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति उदय कुमार की खंडपीठ ने बुधवार को 2016 में विभिन्न राज्य संचालित स्कूलों में उच्च माध्यमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए ओएमआर शीट के प्रकाशन के लिए उसी अदालत की एकल-न्यायाधीश पीठ के पहले के आदेश को बरकरार रखा

Calcutta High Court (Photo Credit: Wikimedia Commons)

कोलकाता, 19 जुलाई: कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति उदय कुमार की खंडपीठ ने बुधवार को 2016 में विभिन्न राज्य संचालित स्कूलों में उच्च माध्यमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए ओएमआर शीट के प्रकाशन के लिए उसी अदालत की एकल-न्यायाधीश पीठ के पहले के आदेश को बरकरार रखा. यह भी पढ़े: West Bengal Teacher's Recruitment Scam: बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला में सुप्रीम कोर्ट ने अभिषेक बनर्जी के खिलाफ जांच पर रोक लगाने से किया इनकार

इस साल 7 जुलाई को, न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की एकल-न्यायाधीश पीठ ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) को 2016 में भर्ती किए गए 5,500 उच्च माध्यमिक शिक्षकों के साथ-साथ प्रतीक्षा सूची में रहने वाले शिक्षकों की ओएमआर शीट प्रकाशित करने का निर्देश दिया.

न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने आयोग को उम्मीदवारों के नाम, पिता के नाम और उन स्कूलों के नाम जैसे विवरण प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया, जहां 907 उम्मीदवारों को नियुक्त किया गया था। यह इन उम्मीदवारों की छेड़छाड़ की गई ओएमआर शीट थीं, जिन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारियों ने पश्चिम बंगाल में करोड़ों रुपये के स्कूल भर्ती मामले की जांच के दौरान बरामद किया था.

आयोग ने इस संबंध में एकल न्यायाधीश पीठ के आदेश को चुनौती देते हुए न्यायमूर्ति सेन और न्यायमूर्ति कुमार की खंडपीठ का दरवाजा खटखटाया बुधवार को विस्तृत सुनवाई के बाद खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश पीठ के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें आयोग को 28 जुलाई तक उन विवरणों को प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया था.

हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि सेवा की कोई भी समाप्ति इस समय प्रभावी नहीं होगी, क्योंकि इस संबंध में कोई भी निर्णय सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका के परिणामों पर निर्भर करेगा खंडपीठ ने यह भी कहा कि ओएमआर शीट का प्रकाशन आवश्यक था, क्योंकि मामले में कोई अनियमितता होने पर अदालत अपनी आंखें बंद नहीं कर सकतीं.

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