J&K: हर भारतीय के लिए सबसे बड़ी खुशखबरी, सेना ने बारामूला में सभी आतंकियों का किया खात्मा- बना पहला आतंक मुक्त जिला
बारामुला हिज्बुल का गढ़ माना जाता था ( फाइल फोटो )

जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) के बारामूला (Baramulla district)को भारतीय सेना और वहां की पुलिस ने आतंक ( militants)मुक्त करा दिया है. एक दौर था जब बारामुला हिज्बुल का गढ़ माना जाता था. यहां आतंकियों का राज चलता था और उनकी तूती बोला करती थी. लेकिन यहां से आतंक के पैर को उखाड़ के फेंक दिया गया है और घाटी का पहला ऐसा जिला घोषित किया गया है, जहां पर एक भी आतंकी नहीं है. जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी दिलबाग सिंह(DGP Dilbagh Singh) ने मीडिया से यह बात कही है. उन्होंने कहा कि यहां पर एक भी आतंकी जिंदा नहीं है.

इसी ऐलान के बाद अब से बारामुला पूरी से आतंकवाद के चंगुल से मुक्त हो गया है. बता दें कि बारामूला जिले में बुधवार को सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में तीन आतंकवादी मारे गए. पुलिस ने कहा था कि सुरक्षाबलों ने सुबह बिन्नेर गांव में आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाया जिसके बाद शुरू हुए मुठभेड़ में तीनों आतंकवादी मारे गए. जिसके बाद इसे आतंक से मुक्त घोषित कर दिया गया.

2018 में सेना के लिए रही सफल

जम्मू-कश्मीर में साल 2018 में सुरक्षा बलों के हाथों 257 आतंकवादी मारे गए. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, यह संख्या बीते चार साल में सर्वाधिक है. साल 2017 में 213, 2016 में 150 और 2015 में 108 आतंकवादी मारे गए थे. आतंकरोधी अभियानों में 31 अगस्त तक कुल 142 आतंकवादी मारे गए. बाकी बाद के चार महीनों में मौत के घाट उतारे गए. अगस्त के महीने में 25 आतंकवादी ढेर हुए. यह संख्या साल 2018 के किसी महीने में सर्वाधिक है.

यह भी पढ़ें:- 26 जनवरी 2019: कभी आतंकी थे लांस नायक नजीर अहमद वानी, 6 आतंकियों को ढेर कर हो गए थे शहीद, अशोक चक्र से होंगे अब सम्मानित

बता दें कि साल 2018 में 105 आतंकवादी गिरफ्तार हुए और 11 ने आत्मसमर्पण किया. 2017 में 97, 2016 में 79 और 2015 में 67 आतंकी गिरफ्तार हुए थे. सुरक्षा बल 2018 में अधिक आतंकवादियों का आत्मसमर्पण कराने में सफल रहे. यह संख्या 2017 की तुलना में छह गुना अधिक रही. 2017 में केवल दो और 2016 में एक ने ही आत्मसमर्पण किया था. 2015 में किसी आतंकी ने आत्मसमर्पण नहीं किया था. आंकड़ों से यह भी पता चला कि साल 2018 में हिंसक घटनाएं भी चरम पर रहीं. यह साल 2017 की 279 घटनाओं की तुलना में करीब डेढ़ गुना अधिक रहीं.