आज भारत बदल रहा है. लोगों की सोच बदल रही हैं. पुरानी मानसिकता से लोग उभर के एक नई सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन कई ऐसे मुद्दे जो सदियों से चले आ रहे हैं और अबतक उनका हल नहीं मिला है. ऐसा ही एक मुद्दा है राम मंदिर निर्माण (Ram Janmabhoomi ) का. यह मामला दशकों से चला आ रहा है. इतना बड़ा विवाद अब तक के इतिहास में देखने को नहीं मिला है.6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने गिरा दिया था. इसी दिन कार्यसेवकों ने महज 17 से 18 मिनट के अंदर ही बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) को ढाह दिया था.
साल 1991 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी और (Kalyan Singh)
कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. 6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई. जहां पर विहिप इसे शौर्य दिवस के तौर मानाने की बात करता है तो कुछ मुस्लिम संगठन यौमे गम के रूप में मनानें की बात करते हैं. इन दोनों के कारण कोई खलल न आये यह प्रशासन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. वहीं बता दें कि 2019 लोकसभा चुनावों से पहले संघ जल्द केंद्र सरकार पर कोई एक्शन लेने के लिए दवाब बना रही है. जिसके बाद बाद एक बार फिर गरमाया हुआ है.
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आजादी के पहले से शुरू है जन्मभूमि विवाद
ऐसी मान्यता है की राम मंदिर (Ram Mandir) की जगह पर 1528 में अयोध्या में मस्जिद का निर्माण हुआ था. जिसके बाद इस विवाद का उद्गम हुआ और इस विवाद को लेकर साल 1850 में पहली बार मंदिर को लेकर सांप्रदायिक दंगा फैला और उसके बाद ब्रिटिश सरकार ने बढ़ते विवाद के बाद 1859 में विवादित स्थल पर बाड़ लगा दिया था लेकिन इस दौरान मुस्लिम अंदर और हिन्दू बाहरी हिस्से में पूजा-पाठ किया करते थे. लेकिन मंदिर की मांग को लेकर 1946 में हिंदू महासभा ने इस पर आंदोलन शुरू किया और 22 दिसंबर 1949 में वहां राम की मूर्ति स्थापित हुआ. लेकिन इसमें भारतीय जनता पार्टी की इंट्री 1980 में हुई और फिर बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन का मोर्चा संभाल लिया उसके बाद 1990 में एल के आडवाणी ने राम मंदिर के लिए रथयात्रा शुरू की है और 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने विवादास्पद ढांचे को गिरा दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि विवाद (Ayodhya babri masjid case) मामले को जनवरी 2019 में सुनवाई के लिए किसी उचित पीठ के लिए सूचीबद्ध करने की बात कही थी. उचित पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विवादित स्थल को तीन भागों में बांटने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जनवरी 2019 में तारीख तय करेगी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा था, "हमारी अपनी प्राथमिकताएं हैं. मामला जनवरी, फरवरी या मार्च में कब आएगा, यह फैसला उचित पीठ को करना होगा." प्रधान न्यायाधीश ने यह टिप्पणी वकील द्वारा अदालत से उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की तारीख तय करने के आग्रह पर की थी.
बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 के अपने फैसले में विवादित स्थल को तीन भागों -रामलला, निर्मोही अखाड़ा व मुस्लिम पक्षकारों- में बांटा था.