लखनऊ: ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अयोध्या विवाद मामले में मध्यस्थता के उच्चतम न्यायालय के विचार पर कहा कि वह अदालत की राय का एहतराम (सम्मान) करता है. बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने गुरुवार को 'भाषा' से बातचीत में कहा कि ' बोर्ड अयोध्या के विवादित स्थल के मामले में दूसरे पक्ष से कोई बातचीत ना करने के रुख पर अब भी कायम है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि बोर्ड और मुल्क के मुसलमान उच्चतम न्यायालय की राय का 'एहतराम' करते हैं.' उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय में हमारे वकील ने कहा है कि अदालत की राय के सम्मान में हम एक बार फिर बातचीत की कोशिश कर सकते हैं.
बोर्ड महासचिव ने कहा ''अगर बातचीत से कोई हल निकल सकता है तो बड़ी अच्छी बात है. हमें बहुत खुशी होगी. अगर दोनों पक्ष किसी एक बात पर संतुष्ट हो जाएं तो सुबहान अल्लाह.'' मौलाना रहमानी ने कहा कि 'हम कभी इस मामले पर बातचीत से नहीं भागे, दूसरे पक्ष के लोगों ने ही सहयोग नहीं किया.'
बोर्ड महासचिव ने कहा कि मुस्लिम पक्ष ने उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया है कि बातचीत की कोई 'गाइड लाइन' होनी चाहिये और यह वार्ता न्यायालय की निगरानी में होनी चाहिये. अदालत इसका नुस्खा बताएगी. अब छह मार्च को अदालत इस पर अपनी राय जाहिर करेगी. इस बीच, बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य एवं अधिवक्ता जफरयाब जीलानी ने कहा कि सिविल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 89 के तहत न्यायालय का यह कर्तव्य है कि मुकदमे की आखिरी सुनवाई से पहले विभिन्न पक्षकारों के बीच समझौते के बारे में कोशिश करे. उसी के तहत अदालत ने कहा कि पक्षकार मिलकर फिर बातचीत के जरिये हल निकालने की कोशिश करें.
उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष ने इस पर रजामंदी जाहिर की है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी इससे कोई आपत्ति नहीं है. जीलानी ने हालांकि यह भी कहा कि उन्हें इस बात की कोई उम्मीद नहीं है हिन्दू पक्ष की तरफ से बातचीत का कोई कदम उठाया जाएगा. मालूम हो कि राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को संबंधित पक्षों से कहा था कि अगर ‘‘एक फीसदी भी’’ सफलता की गुंजाइश है तो वे मुद्दे के स्थायी समाधान के लिये गंभीरता से मध्यस्थता पर विचार करें.