वोट देने में आगे लेकिन वोट मांगने में पीछे हैं अरुणाचल की औरतें
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अरुणाचल प्रदेश में वोट डालने के लिए महिलाओं में काफी उत्साह रहता है. कई महिलाएं सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करके वोट डालने अपने गृहनगर पहुंची हैं. हालांकि उनका यह उत्साह राजनीति के मैदान में उतरने के लिए नहीं दिखता.अरुणाचल प्रदेश में पहले चरण के मतदान है. 2019 के विधान सभा चुनाव में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने ज्यादा भागीदारी दिखाई. चुनाव आयोग के अनुसार अरुणाचल प्रदेश में कुल 7,94,162 मतदाता हैं, जिसमें से 4,01,601 औरतें और 3,92,561 पुरुष हैं. चुनाव में मतदान के लिए खासतौर से महिलाओं में बहुत उत्साह रहता है.

हालांकि राजनीति में यह तस्वीर बदल जाती है. इस मामले में औरतें काफी पीछे हैं. भूभाग के आधार पर भारत के 14वें सबसे बड़े राज्य में औरतें चुनाव में मतदान करती हुई तो बड़ी संख्या में दिख जाती है, लेकिन सामने आ कर वोट मांगती हुई नजर नहीं आती हैं.

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उम्मीद की किरण

एक बात है कि मोटे तौर पर महिलाओं के लिए यहां समर्थन दिखाई देता है. अरुणाचल प्रदेश के तवांग में लोगों से बात करते हुए यह साफ तौर पर महसूस हुआ. तवांग के ओल्ड मार्केट में 30 साल की सोनम, होमस्टे चलाती हैं. उनका मानना है कि अब महिलाएं बीते वर्षो के मुकाबले राजनीति में ज्यादा सक्रिय हो रही हैं. राजनीति में उनकी व्यक्तिगत रुचि नहीं है परन्तु उनका परिवार उनका पूरा समर्थन करता है. ऐसा इसलिए भी है क्यूंकि उनके पिता और ससुर, दोनों ही राजनीति में हैं.

उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर महिलाएं राजनीति में बढ़- चढ़ कर भाग लेती हुई दिखाई देती है. उनकी मित्र और राजनीतिक कार्यकर्ता सोनम नोर्डजिन स्थानीय राजनीति में काफी सक्रिय हैं. उन्हें उम्मीद है कि धीरे धीरे यह रुझान राष्ट्रीय राजनीति पर भी नजर आएगा.

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1987 में अरुणाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ था. हालांकि 37 सालों में अरुणाचल की ओर से एक भी महिला राज्य सभा में नहीं पहुंची है. 2019 में जब बीजेपी सरकार ने भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा महिला सांसद उनकी दौर में चुने जाने का दावा करके खूब चर्चा बटोरी तब अरुणाचल से एक भी महिला सांसद नहीं बनी थी.

तवांग के ओल्ड मार्केट में जूते की दुकान चलाने वाले 60 साल के कालूराम नेहरा राजस्थान से हैं और तवांग में रहते है. कालूराम नेहरा को लगता है कि औरतें अब स्थानीय स्तर पर राजनीति में सक्रिय हैं. वह अलग अलग पार्टी के लिए प्रचार भी करते हैं और चुनाव के दौरान बाजार का माहौल भी गर्मजोशी से भरपूर रखते हैं. वह आशा करते है कि इसकी औरतों की मौजूदगी आने वाले समय में राष्ट्रीय राजनीति में भी दिखाई देगी.

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राजनीतिक होड़ में गिनी चुनी महिलाएं

विधान सभा में भी महिलाओं की भागीदारी ना के बराबर ही नजर आती है. सिबो काइ पहली महिला थीं, जो 1978 में विधानसभा में चुनी गईं. हालांकि इनको गवर्नर ने चुना था तब अरुणाचल प्रदेश एक केंद्र शासित प्रदेश हुआ करता था.

राज्य का दर्जा मिलने के बाद न्यारी वेल्ली 1980 में पहली चुनी हुई एमएलए बनीं. इसके बाद 1984 में भी वह चुनाव जीती थीं. इनके अलावा 1990 में ओ एम डोरी और कोमोली मोसंग, 1995 में यदप अपांग, 1999 में मेकउप डोलो, 2001 में नियनि नातुंग, 2002 में यारी दुलोम और 2009 में नंग सटी मैन और कार्य बगांग विधान सभा में चुने गए थे.

राजनीतिक उम्मीदवारी या पारिवारिक विरासत

2019 में 60 विधान सभा सीटों में केवल तीन महिलाएं एमएलए बनीं, गुम तायेंग, दसांगूल पुल और जुम्मुम एते देओरि. जुम्मुम, पूर्व राज्यसभा सांसद ओमम मायोंग देओरि की बहु है. जबकि गुम तायेंग, अपने पति और पूर्व एमएलए जोमिन तायेंग की मृत्यु के बाद 2013 के उप चुनाव में निर्विरोध चुनाव जीत गई थीं.

इसके बाद 2014 और 2019 में भी उन्होंने अपनी सीट जीती. दसांगूल, पूर्व मुख्यमंत्री कालीखो पुल की पत्नी है. जाहिर है कि इम महिलाओं के राजनीति में उतरने के पीछे उनकी पारिवारिक विरासत का भी योगदान है.

साल 2024, चीनी कैलेंडर के अनुसार स्त्री ऊर्जा से भरपूर है. हालांकि इस वर्ष भी अरुणाचल की 50 विधान सभा सीटों के लिए केवल 8 उम्मीदवार ही महिलाएं हैं. लोकसभाके लिए कुल 14 उम्मीदवारों में भी केवल एक महिला है.

महिलाओं की हिचकिचाहट और जिम्मेदारियों का बोझ

22 साल की थुप्तेन ल्हामु ईटानगर में पढ़ाई करती है और चुनाव के सिलसिले में तवांग आई हैं. उन्हें लगता है कि कहीं ना कहीं अरुणाचल की महिलाओं में जागरूकता की कमी है. उनका कहना है, "लंबे समय तक बाकी हिस्सों से अलग- थलग रहने के कारण बाकी राज्यों के मुकाबले पहाड़ों की महिलाओं में राजनीतिक जागरूकता कम होती थी. कुछ वर्षों से ही उनको यह जानकारी मिलनी शुरू हुई है." इस जानकारी के लिए वह इंटरनेट को श्रेय देती है.

जागरूकता की कमी के अलावा महिलाओं में एक हिचकिचाहट भी दिखती है. उन्हें डर रहता है कि उनको पुरुषों के बराबर समर्थन मिलेगा या नहीं. यहां की ज्यादातर महिलाएं सब तरह का काम करती हैं. दुकान संभालने से लेकर बच्चे पालने तक के काम में उनकी बड़ी भागीदारी है. यह भी एक वजह है कि महिलाएं समर्थक के रूप में तो सदैव आगे दिखती हैं लेकिन खुद के लिए समर्थन मांगने में नहीं. राजनीति में बहुत समय देना पड़ता है, जिससे उनके बाकी के काम पर असर पड़ता है.

इसके अलावा महिला नेताओं की कमी भी एक वजह है. महिलाओं के सामने कोई रोल मॉडल नहीं है.

हालांकि यह प्रचलन अब बदल रहा है. नई पीढ़ी अपने अधिकारों को लेकर अधिक जागरूक है और राजनीति की ओर उनका रुझान भी साफ देखा जा सकता है. यह झिझक जल्दी दूर होती नहीं दिखती लेकिन आशा की जा सकती है कि भविष्य में राष्ट्रीय स्तर के साथ साथ अरुणाचल में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी.