उत्तर प्रदेश: 'अमृता बनेगी लोगों के आरोग्य और किसानों की आय का जरिया'
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

लखनऊ, 23 दिसंबर: कोविड को देखते हुए अमृता योजना लोगों के आरोग्य और किसानों की आय का अच्छा माध्यम बनेगी. इसके तहत किसानों को औषधीय और सगंध पौधों की खेती के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा. यही नहीं उनको न्यूनतम दाम पर गुणवत्ता के बीज और नर्सरी से पौधे भी उपलब्ध कराए जाएंगे. भविष्य में अलग-अलग उत्पादों के प्रसंस्करण के लिए इकाईयां लगेंगी. सरकार उत्पाद के ग्रेडिंग, पैकिंग और बाजार मुहैया कराने में भी योजना से जुड़े किसानों को मदद करेगी.

दरअसल उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) आयुष सोसायटी (Ayush Society) के सहयोग से मॉडल प्रोजेक्ट के रूप में कृषि विभाग ने लखनऊ के मोहनलालगंज स्थित राजकीय कृषि प्रक्षेत्र डेहवा में अमृता योजना के तहत करीब 20 हेक्टेयर रकबे पर आयुष वाटिका, मॉडल नर्सरी और औषधीय पौधे लगाए जाएंगे. इसमें सीरीस, घृतकुमारी, नीम, सतावरी, पुनर्नवा, सहजन, जटामानशी, तुलसी, रतनजोत गिनसैन्गा, गिलोय और ऑवला, स्टीविया आदि के औषधीय पौधों के साथ इनके बीज उत्पादन और नर्सरी का काम कराया जाएगा.

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केंद्र पर कोविड प्रोटोकॉल का अनुपालन करते हुए इच्छुक किसानों को एक दिवसीय सघन प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. इसकी शुरूआत भी हो गयी है. अपर निदेशक प्रसार डॉ. आनंद त्रिपाठी ने बताया कि औषधीय खेती के बारे में प्रशिक्षण के दौरान ही व्यवहारिक ज्ञान और वैज्ञानिकों से सीधा संवाद कराने के लिए किसानों को सीमैप और रहमानखेड़ा का भी विजिट कराया जाएगा. किसानों के आने-जाने और अन्य खर्चें का सरकार वहन करेगी. खेती से जुड़ने वाले किसानों को अपने उपज का वाजिब दाम मिले इसके लिए सरकार बड़ी-बड़ी आयुर्वेदिक कंपनियों और निर्यातकों से भी किसानों को जोड़ेगी.

मालूम हो कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करना सरकार का लक्ष्य है. परंपरागत खेती से यह संभव नहीं. इसलिए सरकार लगातार कृषि विविधीकरण (डाइवर्सिफिकेशन) पर जोर दे रही है. डाइवर्सिफिकेशन अगर बाजार की मांग के अनुसार हो तो किसानों की आय में और वृद्धि होगी. कोविड के कारण रोग प्रतिरोधी होने के कारण आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग बढ़ी है. सेहत के प्रति बढ़ती जागरूकता के साथ ये और बढ़ेगी. इसी संभावना और इससे होने वाली किसानों की आय के मद्देनजर बतौर मॉडल लखनऊ से इस योजना की शुरूआत की गयी है.

यह अपेक्षाकृत अनउपजाऊ भूमि पर भी हो सकती है. आम तौर पर जानवर भी इसे क्षति नहीं पहुंचाते. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज भी विकासशील देशों के करीब 80 फीसद लोग अपनी स्वास्थ्य संबंधी जरूररतों के लिए जड़ी-बूटियों पर निर्भर करते हैं. यही वजह है कि औषधीय पौधों के उत्पादों की मांग की वृद्धि दर सालाना 15 फीसद के करीब है. ऐसे में इनकी मांग और बढ़ेगी. लिहाजा इनकी खेती बेहतर संभावनाओं की वजह बन सकती है. खासकर यह देखते हुए कि आयुर्वेद भारत की परंपरा रही है और औषधीय पौधों की प्रजातियों के अनुसार भारत दुनिया के कुछ संपन्नतम देशों में से एक है. प्रदेश में 9 तरह के कृषि जलवायु क्षेत्र होने के नाते यहां बाजार की मांग के अनुसार हर तरह के औषधीय खेती की बेहतर संभावना भी है. निजी स्तर पर कई किसान ऐसा कर भी रहे हैं. अपनी फार्म प्रोड्यूसर कंपनी बनाकर किसान इसे और बेहतर तरीके से कर सकते हैं.