Republic Day 2022: संवैधानिक अधिकारों के लिए संवैधानिक कर्तव्यों को भी समझें! 72वें गणतंत्र दिवस पर स्कूल प्रांगण में भूतपूर्व छात्र (स्थानीय सांसद) का ओजस्वी भाषण!

माननीय प्रधानाचार्य, सम्मानित अध्यापक, एवं मित्रों.. आज जब हम सब अपने गणतंत्र दिवस की 72वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं, मुझे यह परम सौभाग्य का अवसर मिला है कि आपके समक्ष अपनी बात रख सकूँ, परम सौभाग्य इसलिए कि लगभग 15 साल पहले मैं भी आपकी तरह इसी स्कूल का छात्र था, इसी प्रांगण में ना जाने कितने समारोहों में आपकी तरह हिस्सा लेता था.

Happy Republic Day Wishes (Photo Credits: File Image)

Republic Day 2022: माननीय प्रधानाचार्य, सम्मानित अध्यापक, एवं मित्रों.. आज जब हम सब अपने गणतंत्र दिवस की 72वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं, मुझे यह परम सौभाग्य का अवसर मिला है कि आपके समक्ष अपनी बात रख सकूँ, परम सौभाग्य इसलिए कि लगभग 15 साल पहले मैं भी आपकी तरह इसी स्कूल का छात्र था, इसी प्रांगण में ना जाने कितने समारोहों में आपकी तरह हिस्सा लेता था. आज आप सभी के प्यार, विश्वास एवं आशीर्वाद से इस क्षेत्र का सांसद निर्वाचित हुआ हूँ. मैं माननीय प्रधानाचार्य जी का दिल से आभार व्यक्त करना चाहता हूं कि उन्होंने मुझे यहाँ बुलाकर यह सम्मान देते हुए गणतंत्र दिवस पर दो शब्द बोलने का आदेश दिया, जी हाँ, उनके मुख से मेरे लिए निकले हर शब्द को मैं आज भी आदेश मानता हूँ.

साथियों, मुझे यह कहते हुए बहुत हर्ष और गर्व महसूस हो रहा है, हमारे क्षेत्र के सभी लोगों ने कोविड का टीका लगवा लिया है, अब बच्चों की बारी है, सभी माता-पिता से अनुरोध है कि वे अपने आवास के करीबी टीकाकरण केंद्र में जाकर बच्चों को टीका लगवाएं. ताकि हम कोविड संक्रमण की विभीषिका से मुक्त हों.

अब बात गणतंत्र दिवस की.

मित्रों, आपको पता होगा कि 26 जनवरी 1950 के दिन आजाद भारत का अपना संविधान लागू हुआ था. भारत का संविधान यानी विश्व का सबसे बड़ा संविधान! वस्तुतः संविधान हमारा वह दस्तावेज है, जिसमें वर्णित मौलिक अधिकारों के दम पर देश-प्रदेश के हर कोने में संपूर्ण आजादी के साथ जीते हैं. किसी भी व्यक्ति विशेष पर किसी भी तरह का अन्याय होने पर यही मौलिक अधिकार ढाल बनकर उसकी रक्षा करता है. हमें गर्वान्वित होना चाहिए कि हमें ऐसे मौलिक अधिकार मिले. यहां मैं अधिकारों के साथ-साथ कुछ संवैधानिक कर्तव्यों की भी चर्चा करूंगा, क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि हम अपने मौलिक अधिकारों की बात तो खूब करते हैं, लेकिन जब देश के प्रति कर्तव्य एवं जिम्मेदारियों की बात आती है तो हम खामोश हो जाते हैं. इसी संविधान ने हमें समाज व देश के प्रति कुछ विशिष्ट जिम्मेदारी तय करने के मौलिक कर्तव्य भी दिए, जिससे हम सदा बचने की कोशिश करते हैं, यानी हम सब कुछ पाने के लिए तो संविधान की दुहाई देते हैं, लेकिन दायित्वों एवं जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं.

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि साल 1976 में इसी संविधान के 42वें संशोधन में भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध किया गया. संविधान के भाग IV खंड में सन्निहित अनुच्छेद 51 'क' मौलिक कर्तव्यों के बारे में है.

यह खण्ड संविधान का अनुसरण एवं देश की रक्षा के साथ-साथ देश की सेवा करने एवं सौहार्द्र तथा बंधुत्व की भावना विकसित करने का आदेश व प्रेरणा देता है. सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर संविधान के 42वें संशोधन-1976 ई० के द्वारा मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया. प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रगान का सम्मान करे, तथा भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे. लेकिन क्या हम राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य एवं जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाते हैं? यह भी पढ़ें : Tripura Statehood Day 2022 Messages: त्रिपुरा राज्य स्थापना दिवस की इन Wishes, WhatsApp Status, Photo SMS, GIF Greetings के जरिए दें बधाई

* हम अपने लिए शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सड़क जैसी जनसुविधाएं पाने के मौलिक अधिकारों की बात करते हैं, लेकिन इन जनसुविधाओं को पाने के बाद इनके बेहतर रखरखाव की बात क्यों नहीं करते?

* हम परिवहन सुविधा तो चाहते हैं, लेकिन इनकी सुरक्षा के दायित्व को नहीं निभाते. आंदोलन की आड़ में छोटी-मोटी मांगों को पूरा करवाने के आक्रोश में आकर उसे जला देते हैं, बस की सीटें बिना वजह फाड़कर राष्ट्र की संपत्ति को नष्ट करना संविधान के मौलिक कर्तव्यों का हनन है.

* याद रखें ये सुविधाएं हमें मुफ्त में उपहार स्वरूप नहीं मिली हैं. इसके लिए हम अपनी जेब से टैक्स देते हैं, इसीलिए सरकारी विज्ञापनों में इसे ‘आपकी संपत्ति’ के रूप में उल्लेखित किया जाता है.

* हमें हमारी सुविधानुरूप मौलिक अधिकार तो याद रहते हैं, लेकिन उन्हीं सुविधाओं यानी सार्वजनिक संपत्तियों के प्रति अपने मौलिक कर्त्तव्यों को भुला देते हैं. पर्यावरण की रक्षा एवं उसका संवर्धन भी हमारे मौलिक कर्तव्यों में आता है, लेकिन जंगलों की वृक्षों की कटाई करते समय अपने कर्तव्य एवं दायित्वों को ताक पर रख देते हैं.

* माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वां संशोधन) उनका मौलिक अधिकार है, लेकिन उनके अभिभावकों का मौलिक कर्त्तव्य भी है कि बच्चों को शिक्षित बनाएं. याद रखिये अधिकारों की मांग कर्तव्यों को पूरा करने के बाद ही सार्थक होता है.

तो प्यारे साथियों गणतंत्र दिवस की इस बेला पर हम उम्मीद ही नहीं विश्वास करते हैं हम सैंविधान अधिकारों का लाभ उठाने के साथ-साथ राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों एवं कर्तव्यों का भी पालन करेंगे.

जय हिंद

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