लखनऊ, 11 नवंबर : एक घर और एक कार हर किसी का सपना होता है, लेकिन बहुत सारे घर और बहुत सारी कारें एक बुरे सपने में भी बदल सकती हैं और उत्तर प्रदेश में यही हो रहा है. ज्यादा घर और ज्यादा कारें भी जीवन को दयनीय बना सकती हैं. उत्तर प्रदेश काफी हद तक स्वच्छ और शांतिपूर्ण माना जाता है. हालांकि, पिछले 15 सालों में वायु प्रदूषण एक बड़ी चिंता के रूप में उभरा है और समस्या दिन पर दिन गंभीर होती जा रही है. पर्यावरणविद् प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता ने कहा कि अगर तत्काल प्रभाव से वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपाय नहीं किए गए तो वायु गुणवत्ता जल्द ही 'खराब' से 'गंभीर' हो जाएगी. यह पिछले एक सप्ताह से राज्य के प्रमुख शहरों में 'खराब' श्रेणी में है और नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे प्रमुख शहरों में यह एक सप्ताह से अधिक समय से 'गंभीर' श्रेणी में है. एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी, जो एक समय शहरी विकास विभाग के प्रमुख थे, ने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस से बात की. उन्होंने कहा, ''जहां तक प्रदूषण का सवाल है, शहरों में लापरवाह और तेज विकास मौजूदा स्थिति के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है."
मुख्यमंत्री के रूप में मायावती ने तेजी से विकास शुरू किया और अन्य लोगों ने भी इसका अनुसरण किया. आप जहां भी जाएं, वहां निर्माण कार्य चल रहा है. बंगले तोड़े जा रहे हैं और हाईराइज इमारतों की संस्कृति सनक बन गई है.'' उन्होंने बताया कि कोविड लॉकडाउन के दौरान जब निर्माण गतिविधियां रुक गई, तो हवा काफी साफ हो गई. उन्होंने कहा, ''लखनऊ का मामला लीजिए, बगीचे कम हो गए और पत्थर से बने स्मारक बन गए. राज्य की राजधानी तेजी से बढ़ रही है और हरित आवरण कम हो रहा है. शहर के बाहरी इलाकों जैसे सीतापुर रोड, सुल्तानपुर रोड और रायबरेली रोड में निर्माण का स्तर इतना तीव्र है कि इन क्षेत्रों में तापमान भी शहर के अन्य स्थानों की तुलना में अधिक है.'' शहरी नियोजन में विशेषज्ञता रखने वाले वास्तुकार एसवी अग्रवाल ने कहा, ''यह विडंबनापूर्ण है कि एक तरफ, सरकार ख़ुशी से इमारतों पर बुलडोजर चला रही है और दूसरी तरफ, निर्माण की अनुमति दे रही है. यह भी पढ़ें : बिहार जा रही ट्रेून में सवार होने के लिए सूरत स्टेशन पर भीड़ के कारण अराजक स्थिति, एक की मौत
दोनों गतिविधियां वायु प्रदूषण बढ़ाती हैं. बेहतर होगा कि विवादित इमारतों को गिराने की बजाय दूसरे काम में इस्तेमाल किया जाए. साथ ही प्रदूषण को रोकने के लिए निर्माण के तरीके पर भी किसी तरह की रोक लगनी चाहिए. यूपी में व्यू कटर का उपयोग नगण्य है.'' निजी वाहन, विशेषकर कारें प्रदूषण का एक अन्य प्रमुख स्रोत हैं. एक हालिया अध्ययन के अनुसार, 52 प्रतिशत लोग मानते हैं कि वाहन वायु प्रदूषण का मुख्य स्रोत हैं, इसके बाद उद्योग (30.5 प्रतिशत) और घर या कार्यालय में हवा में प्रदूषक (1.5 प्रतिशत) हैं. एक अन्य अधिकारी ने स्वीकार किया कि वाहन यातायात में वृद्धि एक बड़ी समस्या थी क्योंकि लखनऊ की सड़कों पर 55,000 से 70,000 नई कारें जुड़ रही थीं. अधिकारी ने कहा, ''उदाहरण के लिए, लखनऊ की सड़कें वाहनों, विशेषकर कारों के बढ़ते यातायात का सामना नहीं कर पाती हैं और इससे ट्रैफिक जाम हो जाता है. जाम के दौरान और ट्रैफिक सिग्नल पर लोग इंजन चालू रखते हैं, जिससे उत्सर्जन बढ़ता है और पीक आवर्स के दौरान वायु प्रदूषण बढ़ता है.''
उन्होंने एक परिवार में कारों की संख्या सीमित करने का सुझाव दिया. उन्होंने कहा, "पहले एक परिवार के पास एक कार होती थी, लेकिन आज परिवार के हर सदस्य के पास एक कार है." लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर ध्रुव सेन सिंह ने कहा, ''वर्तमान में, हवा में कोई नमी नहीं है जो धूल के कणों/प्रदूषकों को फंसा सके, क्योंकि आर्द्र हवा प्रदूषकों को जमीन के करीब फंसाती है, जिससे उन्हें वायुमंडल में फैलने से रोका जा सके. अधिकारियों को न केवल सड़कों पर बल्कि सड़क किनारे लगे पेड़ों पर भी पानी छिड़कना चाहिए ताकि प्रदूषणकारी कणों को पेड़-पौधे सोख लें. अधिकारियों को निर्माण गतिविधियों पर भी तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए.''
उन्होंने कहा कि केवल कुछ स्थानों पर पानी छिड़कने से मदद नहीं मिलेगी और पूरे शहर में अभियान चलाने का आह्वान किया. इस बीच, पर्यावरणविदों की राय है कि सरकार को इस समस्या के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है जो आने वाले वर्षों में और बदतर हो जाएगी. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अधिकारी मानते हैं कि अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई को मजबूत करने की जरूरत है. एक अधिकारी ने कहा, "प्रदूषण सरकारों के लिए कोई समस्या नहीं है जब तक कि यह जीवन के लिए खतरा न बन जाए." इस बीच पल्मोनोलॉजिस्ट का कहना है कि प्रदूषण विशेषकर अत्यधिक प्रदूषित शहरों में रहने वाले युवाओं के लिए जीवन के लिए खतरा है.
कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड हॉस्पिटल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. देवाशीष शुक्ला ने कहा, ''ऐसे में सबसे ज्यादा खतरा बच्चों को होता है. उनके फेफड़े प्रदूषक तत्वों से प्रभावित होते हैं और किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते समस्याएं सामने आने लगती हैं. यदि कोई व्यक्ति सह-रुग्णताओं से पीड़ित है, तो वायु प्रदूषण उनके लिए अधिक जोखिम पैदा करता है. ऐसे मरीजों को अधिक सतर्क रहने की जरूरत है.'' जाने-माने चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा, ''वायु प्रदूषण के कारण फेफड़ों से संबंधित समस्याओं में भारी वृद्धि हुई है, खासकर युवाओं में जो इसके संपर्क में अधिक आते हैं. लोग शुरुआती चेतावनी के संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं और चिकित्सा सहायता लेने तभी आते हैं जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है.''
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में श्वसन चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ संकाय प्रोफेसर राजीव गर्ग ने कहा, ''ओपीडी में, हमें ऐसे मरीज मिलते थे जो अपनी नियत अनुवर्ती तिथि से पहले हमें रिपोर्ट करते थे. आज रोजाना ऐसे एक दर्जन मरीज सामने आ रहे हैं, जो दर्शाता है कि वायु प्रदूषण का स्तर मरीजों पर असर डालने लगा है.'' उन्होंने कहा, ''वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से सांस की बीमारी के रोगियों में लक्षण बढ़ रहे हैं. यही कारण है कि उनमें से कई अपनी नियत अनुवर्ती तिथि से बहुत पहले आ गए.''