
अमृतसर: भारत-पाकिस्तान सीमा पर बढ़ते खतरे के बीच भारतीय सेना ने एक ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाया, जिसकी मिसाल शायद पहले कभी नहीं मिली. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइल हमलों से बचाव के लिए भारतीय सेना को स्वर्ण मंदिर परिसर में एयर डिफेंस गन तैनात करने की अनुमति मिली. यह अनुमति खुद स्वर्ण मंदिर के हैड ग्रंथी (मुख्य पुजारी) ने दी थी.
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पहली बार बुझाई गईं स्वर्ण मंदिर की रौशनी
सेना के एयर डिफेंस विभाग के महानिदेशक, लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर इवान डी’कुन्हा ने ANI से बातचीत में बताया कि पाकिस्तान द्वारा धार्मिक स्थलों को निशाना बनाने की आशंका को देखते हुए सेना ने पहले से ही रणनीतिक तैयारी कर ली थी. उन्होंने बताया कि पहली बार स्वर्ण मंदिर की सभी लाइटें बंद की गईं ताकि अंधेरे में ड्रोन को आसानी से ट्रैक और निष्क्रिय किया जा सके.
लेफ्टिनेंट जनरल डी कुन्हा ने कहा, "स्वर्ण मंदिर की लाइटें बुझाना एक ऐतिहासिक कदम था, लेकिन यह जरूरी था ताकि हम आसमान में आते हुए ड्रोन को स्पष्ट रूप से देख सकें और कार्रवाई कर सकें."
हैड ग्रंथी का सहयोग बना बड़ी मिसाल
लेफ्टिनेंट जनरल डी कुन्हा ने कहा कि सेना की इस योजना को तब मजबूती मिली जब स्वर्ण मंदिर के हैड ग्रंथी ने हालात की गंभीरता को समझते हुए सेना को मंदिर परिसर में गन तैनात करने की इजाज़त दी. उन्होंने इसे "संपूर्ण सहयोग" करार दिया और कहा कि यह सहयोग सुरक्षा और श्रद्धा के संतुलन का प्रतीक है.
क्यों हुआ ऐसा फैसला?
सेना अधिकारी में कहा, "भारतीय सेना को इनपुट मिला था कि पाकिस्तान की ओर से सीमापार आतंकी ठिकानों पर भारतीय जवाबी कार्रवाई के बाद, वे भारत के धार्मिक स्थलों को निशाना बना सकते हैं. अमृतसर जैसे संवेदनशील शहर और उसमें स्थित स्वर्ण मंदिर जैसे विश्वप्रसिद्ध स्थल संभावित निशाने थे. "पाकिस्तान के पास कोई सैन्य लक्ष्य नहीं थे, इसलिए वे धार्मिक स्थलों को निशाना बनाकर अफरातफरी फैलाना चाहते थे."
अमृतसर पर ड्रोन हमले और भारतीय जवाब
7 मई से 10 मई के बीच अमृतसर सहित पंजाब के सीमावर्ती इलाकों में कई ड्रोन और मिसाइल हमले किए गए. हालांकि भारतीय वायु सुरक्षा तंत्र ने लगभग सभी हमलों को विफल कर दिया. पूरे क्षेत्र में ब्लैकआउट कर दिया गया और मंदिर की लाइटें भी बुझा दी गईं. 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच अनौपचारिक युद्धविराम (सीज़फायर) की समझ बनी, जिसके बाद हालात शांत हुए.