'हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए...'
पूर्व प्रधानमंत्री और 'भारत रत्न' स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) आजाद भारत के इकलौते राजनेता थे, जो 4 राज्यों (उ.प्र., म.प्र., गुजरात, और दिल्ली) के 6 लोकसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर चुके थे. यह इस बात का प्रमाण है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में उनकी क्या लोकप्रियता थी. जनता उन्हें कितना स्नेह करत थी. उनकी प्रथम पुण्य-तिथि (16 अगस्त) (Atal Bihari Vajpayee 1st Death Anniversary) पर भावभीनी श्रद्धांजलि...
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से प्रधानमंत्री तक का सफर तय करनेवाले अटलबिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था. उनके पिता पंडित कृष्णबिहारी बाजपेयी ग्वालियर में ही अध्यापक थे, मां कृष्णा बाजपेयी हाउस वाइफ थीं. कहते हैं कि अटल जी को काव्य एवं ओजस्वी भाषण की कला विरासत में मिली थी. उनके पिता कृष्ण बाजपेयी हिंदी और ब्रज भाषा के लोकप्रिय कवि और प्रखर वक्ता भी थे. ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कॉलेज) से स्नातक करने के बाद उन्होंने कानपुर के डीएवी महाविद्यालय से आर्ट से प्रथम श्रेणी में एम पास किया. अटल जी स्कूली फंक्शनों में भाषण, डिबेट, काव्यपाठ आदि में खुलकर पार्टिसिपेट करते थे. साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में भी हिस्सा लेते थे. कुछ वर्षों तक पत्रकारिता करने के पश्चात कालांतर में उन्होंने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया. अटल जी ने सक्रिय राजनीति में 1942 में उस समय कदम रखा, जब महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण उनके भाई को जेल में बंद कर दिया गया था.
जनसंघ की स्थापना
साल 1951 में आरएसएस और श्यामा प्रसाद मुखर्जी तथा अटलबिहारी बाजेपयी के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन हुआ. अटल जी को प्रचारक नियुक्त किया गया. 1957 के लोकसभा चुनाव में पहली बार उप्र की बलरामपुर से भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी के तौर पर वे चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. 1968 से 1973 तक पूरी तत्परता एवं सक्रियता से भारतीय जनसंघ पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी निभाई.
नेहरू ने कहा था भविष्य के प्रधानमंत्री हैं अटल
अटल जी अपने ओजस्वी एवं विशेष शैलीवाले भाषण से बहुत जल्दी जनता का दिल जीत लेते थे. सूत्रों के अनुसार एक बार लोकसभा में अटलजी का भाषण सुनकर पंडित नेहरू इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने स्वीकारा कि अटल जी में भविष्य के प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण मौजूद हैं. अटल जी अपने मृदुभाषी एवं मिलनसार स्वभाव से विपक्षी पार्टी के नेताओं का भी दिल आसानी से जीत लेते थे.
इंदिरा गांधी को बताया था ‘साक्षात दुर्गा’
किसी शख्सियत की प्रशंसा करते वक्त अटल जी यह नहीं देखते थे कि अमुक शख्स किस पार्टी का है. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने बांग्लादेश को आजाद करवाकर 93 हजार पाकिस्तान सैनिकों को घुटनों के बल आत्मसमर्पण करवाया था. इससे प्रभावित होकर अटल जी ने संसद में इंदिरा गांधी को ‘साक्षात दुर्गा’ बताया था.
संयुक्त राष्ट्रसंघ पहली बार हिंदी में भाषण देनेवाला विदेश मंत्री
सन 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने का अटल जी ने खुलकर विरोध किया था. अंतत यही आपातकाल 1977 में इंदिरा गांधी की हार का कारण बनी. तब पहली बार गैरकांग्रेसी पार्टी के रूप में जनता पार्टी सत्तासीन हुई. मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बनें. अटल जी पहले गैरकांग्रेसी विदेश मंत्री बनाए गये. तीन साल के इस कार्यकाल में अटलजी ने विश्व भर में भारत की शाख को शिखर तक पहुंचाया. संयुक्त राष्ट्र संघ में बतौर विदेश मंत्री हिंदी में भाषण देनेवाले पहले वक्ता थे.
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना
1980 में जनता दल के टूटने के बाद अटलजी ने सहयोगी नेताओं के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की. 1996 के लोकसभा चुनावों में उनके नेतृत्व में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में चुनी गयी. अटलजी देश के प्रधानमंत्री के रूप में चुने गये, किंतु विभिन्न पार्टी में उपजे मतभेदों के कारण 13 दिन के भीतर अटल जी की अल्पमत सरकार गिर गयी. दो साल बाद पुनः लोकसभा का चुनाव हुआ, इस बार भाजपा पुनः बड़ी पार्टी के रूप में विजयी हुई. अटलजी पुनः प्रधानमंत्री बने, लेकिन इस बार तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के समर्थन वापस लेने के कारण सरकार गिर गयी.
अटल जी की द्दढ़ इच्छाशक्ति और पोखरण परमाणु विस्फोट
सरकार के उठने-गिरने के दरम्यान अटल जी ने प्रधानमंत्रित्वकाल में अपनी द्दढ़ इच्छा शक्ति दिखलाते हुए और विदेशी शक्तियों की धमकी की परवाह किये बिना पोखरण में एक के बाद एक पांच भूमिगत परमाणु विस्फोट कर दुनिया के सामने भारत की शक्ति का दर्शन करवा दिया. इस विस्फोट से घबराकर अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर तमाम प्रतिबंध लगाए लेकिन अटल जी किसी की चिंता किये बिना हर चुनौतियों का डटकर सामना किया.
पाकिस्तान से संबंध सुधारने की पहल
अटलजी ने प्रधानमंत्रित्व काल में पाकिस्तान से संबंधों में सुधारने की पुरजोर कोशिश की. 19 फरवरी 1999 को 'सदा-ए-सरहद' नाम से दिल्ली-लाहौर की बस सेवा शुरू कर दोनों देशों के बीच की दूर कम की. नवाज शरीफ से मुलाकात करने पाकिस्तान भी गये. लेकिन दुर्भाग्यवश पाकिस्तान की इमरान की अदूरदर्शी सरकार ने इस बस-सेवा को 20 वर्ष बाद बंद करवा दिया. यह भी पढ़ें: पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी की पहली पुण्यतिथि, राष्ट्रपति-PM मोदी, अमित शाह समेत कई दिग्गजों ने दी श्रद्धांजलि
अटल जी की बड़ी सफलता करगिल कांड
पाकिस्तान पड़ोसी देशों के उकसावे में आकर आये दिन कायराना हरकतें करता रहता है. अटल जी के दोस्ती के बढ़े हाथ को दरकिनार कर पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तानी सेना व पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादी संगठनों से मिलकर करगिल में घुसपैठ कर भारत की काफी जमीन अपने कब्जे में कर लिया. अटलजी ने बढ़े हुए दोस्ती की हाथ खींचकर भारतीय सेना एवं वायुसेना को खुली छूट दे दी कि वे पाकिस्तान को जिस अंदाज में चाहें सबक सिखा सकते हैं. कारगिल युद्ध में विजयश्री का हश्र ही था कि 1999 के लोकसभा चुनाव में जनता ने अटलजी को बहुमत से विजय दिलायी. यहां भी 13 दलों का गठबंधन 'राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन' (राजग) था, लेकिन अटल जी की सूझ-बूझ से 5 साल का कार्यकाल पूरा हुआ. इन पांच वर्षों में उन्होंने गरीबों, किसानों और युवाओं के लिए अनेक योजनाएं शुरू करवाईं. कार्यकाल पूरा होने के बाद अगला आम चुनाव अटल जी ने 'शाइनिंग इंडिया' नारे के साथ लड़ा, लेकिन त्रिशंकु परिणामों के बाद वामपंथी दलों के समर्थन से कांग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व सरकार बनाई. भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा.
अंततः निरंतर अस्वस्थ रहने से अटलजी ने राजनीति से संन्यास ले लिया. 2015 में उऩ्हें 'भारतरत्न' से सम्मानित किया गया. अटल जी को यह सम्मान उनके आवास पर जाकर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रदान किया था. लगातार गिरते सेहत के कारण अंततः भारतीय राजनीति के इस युगपुरुष, श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कोमल हृदय कवि, संवेदनशील व्यक्ति और राष्ट्रप्रहरी ने 16 अगस्त को हमेशा के लिए आंख बंद कर लिया.