नई दिल्ली, 5 अगस्त : देश में हाथ से मैला ढोने से कोई मौत नहीं हुई है, लेकिन 1993 से अब तक 941 लोगों की मौत सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई है. संसद को बुधवार को सूचित किया गया. "मैनुअल मैला ढोने वाले (अस्वच्छ शौचालयों से गंदगी को उठाना) के कारण किसी भी मौत की सूचना नहीं है, जैसा कि मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के रूप में रोजगार के निषेध की धारा 2 (1) (जी) के तहत परिभाषित किया गया है, लेकिन 941 मौतें 1993 से सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए हुए हैं.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने एक लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया, "इनमें से राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) ने राज्य सरकारों द्वारा 650 मामलों में पूर्ण मुआवजे और 142 में आंशिक मुआवजे का भुगतान सुनिश्चित किया है. झारखंड से किसी की मौत की सूचना नहीं है." उन्होंने कहा कि 2014 में शुरू किया गया स्वच्छ भारत मिशन लगभग सभी अस्वच्छ शौचालयों को बदलने में सफल रहा है और इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 10.78 करोड़ और शहरी क्षेत्रों में 63 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है. यह भी पढ़ें : एनआईए ने लश्कर-ए-मुस्तफा साजिश मामले में 6 आतंकियों के खिलाफ चार्जशीट की दाखिल
उन्होंने कहा, "स्वच्छ भारत मिशन के बाद, अधिकांश अस्वच्छ शौचालयों को सैनिटरी शौचालयों में बदल दिया गया है, जिससे हाथ से मैला ढोने का अस्तित्व समाप्त हो गया है." मंत्री ने यह भी कहा कि 2013 से मैला ढोने में लगे लोगों के सर्वेक्षण के आधार पर 58,098 व्यक्तियों को एकमुश्त 40,000 रुपये की नकद सहायता का भुगतान किया गया है, 16,057 को वैकल्पिक व्यवसायों में प्रशिक्षण दिया गया है और 1,387 व्यक्तियों को अपना उद्यम शुरू करने के लिए ऋण दिया गया है.