Maa Movie Review: काजोल की 'मां' है पावरफुल विज़ुअल ट्रीट, पौराणिकता और इमोशंस के बीच गूंजता है हॉरर का स्वर
जब पौराणिक कथाएं, मातृत्व की भावना और हॉरर का मेल होता है, तो नतीजा कुछ वैसा ही निकलता है जैसा निर्देशक विशाल फुरिया की नई फिल्म 'मां' में देखने को मिलता है. चन्द्रपुर के घने जंगलों में दर्जनों लड़कियों के गायब होने के बाद एक बच्ची की बलि दी जानी है, लेकिन उसकी मां बनती है दैत्य के सर्वनाश की शक्ति — यही इस कहानी की मूल आत्मा है.
Maa Movie Review: जब पौराणिक कथाएं, मातृत्व की भावना और हॉरर का मेल होता है, तो नतीजा कुछ वैसा ही निकलता है जैसा निर्देशक विशाल फुरिया की नई फिल्म 'मां' में देखने को मिलता है. चन्द्रपुर के घने जंगलों में दर्जनों लड़कियों के गायब होने के बाद एक बच्ची की बलि दी जानी है, लेकिन उसकी मां बनती है दैत्य के सर्वनाश की शक्ति — यही इस कहानी की मूल आत्मा है. काजोल और रोनित रॉय स्टारर यह फिल्म न केवल एक हॉरर जर्नी है, बल्कि एक मां के अंतहीन साहस की कहानी भी है. निर्देशक विशाल फुरिया, जिन्होंने पहले 'छोरी' जैसी सराही गई हॉरर फिल्म दी थी, यहां एक अलग लेवल का विज़ुअल अनुभव और माइथॉलिकल वाइब्स लेकर आए हैं.
फिल्म का स्केल काफी बड़ा है. जंगलों की भव्यता, मंदिरों की संरचना, और डार्क टोन वाले विज़ुअल्स इस फिल्म को सिनेमाघरों में देखने लायक बनाते हैं. 'मां' का म्यूजिक भी खास है — कुछ जगह पर 'तान्हाजी'जैसी फिल्मों की झलक मिलती है. हालांकि यह हॉरर फिल्म में थोड़ा अनअपेक्षित लगता है, लेकिन इमोशनल और एक्शन सीन्स में म्यूजिक प्रभावशाली रहता है.
अभिनय की बात करें तो काजोल ने एक मां के रूप में पूरी शिद्दत से स्क्रीन पर अपने किरदार को जिया है. उनका आक्रोश, पीड़ा और अंत में शक्ति में बदलना दर्शकों को बांधकर रखता है. रोनित रॉय भी अपने रोल में दमदार हैं और उनका किरदार कहानी को संतुलन देता है. एक स्पेशल कैमियो भी फिल्म का हिस्सा है, जो फिल्म के संभावित सीक्वल की ओर संकेत करता है. हालांकि उसका स्क्रीन टाइम कम है, फिर भी यह फिल्म के इमोशनल टोन में योगदान देता है.
'मां' ट्रेलर:
अब अगर बात करें फिल्म की कमजोरियों की, तो मां का पहला हाफ थोड़ा स्लो महसूस होता है, जिससे दर्शकों की शुरुआती पकड़ थोड़ी ढीली पड़ सकती है. फिल्म में शामिल हॉरर एलिमेंट्स हर जगह प्रभावी नहीं लगते और कई जगह उनका असर कमजोर पड़ता है. वहीं, राक्षस का लुक भी पूरी तरह डरावना नहीं है — उसमें एक रोबोटिक फील है जो उसकी भयानकता को कम कर देता है. इसके अलावा, स्क्रीनप्ले को और कसाव के साथ लिखा जाता तो फिल्म की इंटेंसिटी और प्रभाव और मजबूत हो सकता था.फिर भी, फिल्म की ताकत इसकी स्टोरी, ट्रीटमेंट और लीड परफॉर्मेंस में है. आखिर तक फिल्म दर्शकों को सीट से बांधे रखती है और एक मां के रौद्र रूप की कहानी दर्शकों के दिल में रह जाती है.
अगर आप माइथॉलजी और हॉरर के फ्यूज़न में दिलचस्पी रखते हैं, तो 'मां' जरूर देखें. यह फिल्म डर भी देती है, भावुक भी करती है और सोचने पर मजबूर भी.