Jagjit Singh Birthday: आज है गजल किंग जगजीत सिंह की 80वीं वर्षगांठ, जानिए उनसे जुड़ी कई दिलचस्प बातें

जगजीत सिंह ने गजल गायकी को आसान, रोमांटिक एवं कुछ अलग स्वरूप देकर आम लोगों के बीच पहुंचा दिया था, अब लोग रेस्टोरेंट, कैंडल लाइट डिनर जगजीत सिंह को सुनने लगे थे, कहने का आशय यह कि जगजीत सिंह की गजलों ने पाश्चात्य संगीत की ओर भागते युवाओं को रोका और अपनी गजलें सुनने के लिए मजबूर किया.

जगजीत सिंह (Photo Credits: Facebook)

Jagjit Singh Birthday: गजल किंग जगजीत सिंह (Jagjit Singh) की 80वीं वर्षगांठ पर विशेष हम चले जायेंगे तो सोचोगे, हमने क्या खोया क्या पाया. 'होठों से छू लो तुम..', 'झुकी झुकी सी नजर.', 'तुम को देखा तो ये ख्याल आया..', 'हजार बार रुके हम, हजार बार चले..',कागज की कश्ती..' जैसे बेशुमार लोकप्रिय गजलों ने गुरुद्वारों में भजन गाने वाले को गजल किंग बना दिया. जिन दिनों जगजीत सिंह ने गजल गायकी में कदम रखा था, उस समय तक गजलों में रुचि लेने वालों की संख्या नगण्य ही थी. इसकी दो वजहें थी, एक यह कि उन दिनों तक के.एल. सहगल, तलत महमूद, नूरजहां, मल्लिका पुखराज, बेगम अख्तर, मेहंदी हसन, अब्दुल करीम खान, बड़े गुलाम अली खान और उस्ताद आमिर खान की गजलें अपेक्षाकृत क्लिष्ट होती थीं, दूसरी उन दिनों पाश्चात्य संगीत युवाओं को अपनी मोहपाश में बांध रहा था.

जगजीत सिंह ने गजल गायकी को आसान, रोमांटिक एवं कुछ अलग स्वरूप देकर आम लोगों के बीच पहुंचा दिया था, अब लोग रेस्टोरेंट, कैंडल लाइट डिनर जगजीत सिंह को सुनने लगे थे, कहने का आशय यह कि जगजीत सिंह की गजलों ने पाश्चात्य संगीत की ओर भागते युवाओं को रोका और अपनी गजलें सुनने के लिए मजबूर किया. शायद यही वजह थी कि 70 के दशक में अपना पैर जमाते हुए जगजीत सिंह ने पांच दशक तक राज किया और इस दरम्यान उनके 80 बेहद लोकप्रिय गजल अलबम बाजार में आए. इस महान गजल सम्राट की 80वीं वर्षगांठ पर आइये जानें कि जगजीत सिंह ने गजल की दुनिया में न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि गजल को आम लोगों के बीच भी लोकप्रिय कराया. यह भी पढ़े: जन्मदिन विशेष: गायक बनने के लिए जगजीत सिंह को भागकर आना पड़ा था मुंबई, जानें वजह

जानें क्यों आईएएस बनना रास नहीं आया?

 

जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी 1941 को श्री गंगानगर (राजस्थान) में एक सामान्य सिख परिवार में हुआ था. उनके पिता अमर सिंह लोक निर्माण विभाग में कार्य करते थे. तब उनका नाम जगमोहन सिंह धीमन था. पिता चाहते थे कि जगमोहन भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाये. लेकिन जगमोहन का रुझान संगीत और गायकी में था. जगमोहन के टैलेंट को देखते पिता अमर सिंह ने उन्हें  पं. छगन लाल शर्मा के सान्निध्य में शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए भेजा. इसके बाद जगमोहन ने सैनिया घराने के उस्ताद जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं. इसके साथ-साथ उन्होंने श्री गंगानगर स्थित खालसा हाई स्कूल और गवर्नमेंट कॉलेज से इंटरमीडियेट पास करने के बाद जालंधर के डीएवी कॉलेज से कला में डिग्री हासिल की. गायन के प्रति उनका जुनून कुछ ऐसाथा कि सुबह पांच बजे से लगातार 3-3 घंटे रियाज करते, इसके बाद ही कॉलेज जाते थे.
इसी दरम्यान उनके पिता ने गुरुजी के सुझाव पर उनका नाम जगमोहन से जगजीत सिह रख दिया. वर्ष (1961) में ऑल इंडिया रेडियो के जालंधर स्टेशन के लिए काम भी उन्हें गाने के अवसर मिले. इस वर्ष उन्होंने कई गीत गाये और लिखे. साल 1962 में जगजीत ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के स्वागत के लिए एक गाना भी लिखा था. गायन और लेखन उनकी दिलचस्पी को देखते हुए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति सूरजभान ने उन्हें प्रोत्साहित करते हुए मुंबई जाकर किस्मत आजमाने का सुझाव दिया.

मुंबई जाने और वापसी के बाद क्या हुआ?

जगजीत सिंह के लिए मुंबई अन्जान शहर था, लेकिन कुछ शुभचिंतकों के सहयोग से मुंबई में उन्हें एक सस्ता पेइंग गेस्ट मिल गया. गुजारे के लिए वे जिंगल्स गाते, शादी विवाह जैसे समारोहों में अपने गीत गजलों को पेश करते. लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद जब सफलता नहीं मिली तो जगजीत वापस जालंधर आ गये. लेकिन कुछ ही समय के बाद 1965 में किसी के आश्वासन पर वे पुनः मुंबई आये. इस बार एचएमी म्युजिक कंपनी ने उनकी दो गजलों को रिकॉर्ड किया. यही वह समय था, जब उन्हें मोना सिख (पगड़ी रहित) बनना पड़ा.

जिंदगी में आई चित्रा और जोड़ी छा गई!

 

 जगजीत सिंह को अभी भी एक बड़ी सफलता की तलाश थी. फिलहाल जिंगल्स के अलावा वे विज्ञापन एवं डाक्यूमेंट्री फिल्मों के लिए गीत-गाने तैयार करते. ऐसी ही एक रिकॉर्डिंग के दरम्यान उनकी मुलाकात चित्रा से हुई. कुछेक मुलाकात के बाद दोनों में प्रेम संबंध बनें और 1969 में विवाह सूत्र में बंध गये. गौरतलब है कि चित्रा का जगजीत से यह दूसरा विवाह था. उनकी पहले विवाह से एक लड़की थी. जिंदगी में चित्रा के प्रवेश के साथ ही जगजीत सिंह की सफलता के द्वार खुल गये. 1975 में एचएमवी संगीत कंपनी ने उनका पहला अलबम 'द अनफॉरगेटेबल्स' जारी किया, जिसमें उन्हें संगत मिला पत्नी चित्रा सिंह का. इसके बाद एक पंजाबी अलबम 'बिरहा द सुल्तान' और कम 'एलाइव' रिलीज हुए और जगजीत-चित्रा गजल गायिकी की दुनिया में छा गये. अलबम हिट होने के साथ ही कंसर्टों के आमंत्रण भी मिलने लगे. कहते हैं कि सफलता के द्वार खुलते हैं तो पीछे मुड़ने का वक्त नहीं मिलता. 1980 में फिल्म 'साथ साथ' में जावेद अख्तर की गजलों को आवाज देने का अवसर मिला. इसी वर्ष महेश भट्ट की फिल्म 'अर्थ' के एक गजल 'तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो' की मिली लोकप्रियता ने जगजीत सिंह को रातों-रात स्टार बना दिया.

इस घटना ने 'विवेक' शून्य कर दिया गजल जोड़ी को

 

जगजीत-चित्रा सिंह ने जग को जीत लिया था. भारत ही नहीं दुनिया भर में उन्हें कंसर्ट के लिए बुलाया जाने लगा था, इसके एवज में मुंहमांगी कीमत दी जाती थी. लेकिन शीघ्र ही इस खुशियों पर कहर का पहाड़-सा टूट पड़ा. जब साल 1990 में एक कार दुर्घटना में उनके 18 वर्षीय युवा बेटे की दर्दनाक मौत हो गई. इसके कुछ ही अंतराल में चित्रा सिंह की बेटी भी आकस्मिक मौत का शिकार हो गई. दो-दो ट्रेजिडी ने गजल की इस जोड़ी को तोड़ कर रख दिया. चित्रा तो दुबारा रिकॉर्डिंग में नहीं आईं, लेकिन जगजीत सिंह ने खुद को संभालने की कोशिश में रिकॉर्डिंग जारी रखने की कोशिश की, मगर अब उनके स्वर में गम व दुःखी ही थी, जो गजल में महसूस होता था.

इस तरह जग से रुखसत हुए जगजीत सिंह

 

23 सितंबर के दिन गजल किंग गुलाम अली के साथ एक शो की तैयारी कर रहे थे कि अचानक जगजीत सिंह का ब्रेन हैमरेज हो गया. उन्हें तत्काल मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती करवाया गया. उनकी सर्जरी की गयी, लेकिन हालात सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ती गई.अंतत 10 अक्टूबर 2011 को अस्पताल में ही उनकी मृत्यु हो गयी.
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