नयी दिल्ली, 12 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को महिला आरक्षण कानून से जुड़ी एक याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया जिसमें आगामी लोकसभा चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, इससे संबंधित कानून को तत्काल और समयबद्ध तरीके से लागू करने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने हालांकि वकील योगमाया एमजी को कांग्रेस नेता जया ठाकुर द्वारा दायर लंबित जनहित याचिका में हस्तक्षेप याचिका दायर करने की छूट दे दी।
पीठ ने कहा, ''हम इस मामले में याचिकाओं की बहुलता नहीं चाहते। आप जया ठाकुर द्वारा दायर याचिका में हस्तक्षेप आवेदन दाखिल करें।''
योगमाया की ओर से पेश अधिवक्ता ने अदालत से याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया। पीठ ने इस पर सहमति जताई और इसे वापस लेने की अनुमति दे दी।
ठाकुर की याचिका 16 जनवरी को सूचीबद्ध हो सकती है।
योगमाया द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि आगामी लोकसभा चुनावों के लिए नए कानून को समय पर लागू करने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि शीघ्र कार्यवाही के बिना राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं को वे अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाएंगे जिनके लिए यह कानून लाया गया है।
इसमें कहा गया है, ''महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 को इसके कार्यान्वयन में अनिश्चितता के साथ पारित किया गया था। याचिकाकर्ता यह सुनिश्चित करने के लिए इस अदालत के हस्तक्षेप की मांग करती है कि महिलाओं के लिए उचित प्रतिनिधित्व के संवैधानिक आदेश को शीघ्रता से पूरा किया जाए।''
आधिकारिक तौर पर ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के रूप में जाना जाने वाला यह कानून महिलाओं के लिए लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण का प्रावधान करता है।
यह कानून हालांकि, तुरंत लागू नहीं किया जाएगा। यह एक नई जनगणना होने के बाद लागू होगा। नयी जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिए सीट आरक्षित करने के वास्ते परिसीमन किया जाएगा जिसके बाद यह कानून लागू होगा।
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