देश की खबरें | विदेशी वित्तपोषित धर्मांतरण के निशाने पर होती हैं महिलाएं एवं बच्चे: याचिकाकर्ता ने न्यायालय से कहा

नयी दिल्ली, 11 दिसंबर उच्चतम न्यायालय को बताया गया है कि देश में महिलाएं और बच्चे ‘विदेशी वित्तपोषित’ धर्मांतरण के मुख्य निशाने हैं तथा केंद्र एवं राज्य सरकारें उसे रोकने के वास्ते उपयुक्त कदम उठाने में विफल रही हैं।

धर्मांतरण के विरूद्ध एक याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ के समक्ष दाखिल अपनी लिखित दलील में जनहित याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने इस मुद्दे पर कानून नहीं होने का हवाला दिया और कहा कि इसी कारण से सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े नागरिकों का धर्मांतरण करने के लिए अनैतिक रणनीतियां अपनायी जा रही हैं।

जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच दिसंबर को शीर्ष अदालत ने कहा था कि परमार्थ कार्य का मकसद धर्मांतरण नहीं होना चाहिए और जबरन धर्मांतरण एक ‘गंभीर मुद्दा’ है, जो संविधान की भावना के विरूद्ध है।

अपनी लिखित दलील में उपाध्याय ने धर्मांतरण से जुड़ी अवैध गतिविधियों पर रोक लगाने के वास्ते विदेशी चंदा प्राप्त एनजीओ एवं व्यक्तियों के लिए विदेशी चंदा विनिमयन कानून (एफसीआरए) के तहत बनाए गए नियमों की समीक्षा समेत विभिन्न राहतों की मांग की।

याचिका में धर्मांतरण पर रोक के लिए हवाला एवं अन्य माध्यमों से होने वाले धन के अंतरण पर नियंत्रण के लिए भी कठोर कदम उठाने की मांग की गयी है।

याचिका में विधि आयोग से गैरकानूनी कपटपूर्ण धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए उपयुक्त कानून एवं दिशानिर्देश का सुझाव देने का अनुरोध किया गया है।

उसमें केंद्र और राज्यों को ‘कपटपूर्ण धर्मांतरण’ में लगे व्यक्तियों एवं संगठनों की ‘बेनामी’ एवं आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति को जब्त करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।

याचिका में कहा गया है, ‘‘ याचिकाकर्ता का कहना है कि महिलाएं और बच्चे विदेशी चंदा पाने वाले मिशनरियों एवं धर्मांतरण समूहों के मुख्य निशाने हैं, लेकिन केंद्र एवं राज्यों ने अनुच्छेद 15 (3) की भावना के तहत धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त कदम नहीं उठाया है। स्थिति इतनी भयावह है कि कई व्यक्ति एवं संगठन सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों की गरीबी का फायदा उठाते हुए जबर्दस्ती या लालच देकर बड़े पैमाने पर उनका धर्मांतरण कर रहे हैं।’’

भादंसं के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए उसमें कहा गया है कि उपासना स्थल को नुकसान पहुंचाना या अशुद्ध करना, धार्मिक भावना को आहत करने के लिये जानबूझकर किया गया दुर्भावनापूर्ण कृत्य, कब्रिस्तान में अनधिकार प्रवेश आदि धर्म से जुड़े अपराध समझे जाते हैं।

उसमें कहा गया है, ‘‘ लेकिन डरा धमकाकर, उपहार या मौद्रिक लाभ का लालच देकर या प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण, जो धर्म से संबंधित अधिक गंभीर अपराध हैं, को भादंसं के पंद्रहवें अध्याय में शामिल नहीं किया गया है। ’’

उसमें कहा गया है कि गलत तरीके से धर्मांतरण से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन जीने के अधिकार, आजादी या गरिमा को सीधा नुकसान पहुंचता है।

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