नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के उन दंडनीय प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय करेगी जो बलात्कार के अपराध के लिए पति को अभियोजन से छूट प्रदान करता है, यदि वह अपनी पत्नी, जो नाबालिग नहीं है, को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्र की इस दलील पर याचिकाकर्ताओं की राय जाननी चाही कि इस तरह के कृत्यों को दंडनीय बनाने से वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा तथा विवाह की संस्था भी प्रभावित होगी।
एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने दलीलें शुरू कीं और वैवाहिक दुष्कर्म पर आईपीसी तथा बीएनएस के प्रावधानों का जिक्र किया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह एक संवैधानिक प्रश्न है। हमारे सामने दो निर्णय हैं और हमें फैसला लेना है। मुख्य मुद्दा संवैधानिक वैधता का है।’’
नंदी ने कहा कि अदालत को एक प्रावधान को रद्द कर देना चाहिए जो असंवैधानिक है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘आप कह रहे हैं कि यह (दंडात्मक प्रावधान) अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है... संसद ने जब अपवाद खंड लागू किया था, तो उसका आशय यह था कि जब कोई पुरुष 18 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ यौनाचार में संलग्न होता है, तो इसे बलात्कार नहीं माना जा सकता।’’
सुनवाई जारी है।
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