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पर्यावरण को ज्यादा क्या भाता है: चाय या कॉफी?

किसी को सुबह उठते ही चाय की तलब होती है, तो कुछ लोग कॉफी पीने के बाद ही दिन की शुरुआत करते हैं.

एजेंसी न्यूज Deutsche Welle|
पर्यावरण को ज्यादा क्या भाता है: चाय या कॉफी?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

किसी को सुबह उठते ही चाय की तलब होती है, तो कुछ लोग कॉफी पीने के बाद ही दिन की शुरुआत करते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि चाय या कॉफी में से कौन सा पेय पदार्थ पर्यावरण के लिहाज से ज्यादा फायदेमंद है?वैसे तो जिंदा रहने के लिए हमें चाय और कॉफी जैसी चीजों की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन ये भी सच है कि हममें से कई लोग इन कैफीन वाली चीजों पर बहुत निर्भर हो चुके हैं. दुनिया भर में पानी के बाद दूसरा सबसे ज्यादा पीया जाने वाला पेय पदार्थ चाय ही है और कॉफी भी इससे बहुत पीछे नहीं है.

मानव संस्कृति इन दोनों पेय पदार्थों में डूबी हुई है. कॉफी की उत्पत्ति 9वीं शताब्दी में इथियोपिया में हुई. किंवदंती है कि बकरी चराने वाले कलदी नामक व्यक्ति को संयोग से यह पता चला कि कॉफी के बेरी से शरीर में स्फूर्ति आ जाती है. वहीं, चाय की जड़ें प्राचीन चीन में हैं. यहां पौराणिक चरित्र शेन नॉन्ग के बारे में कहा जाता है कि उसने गलती से जहर खा लिया था, लेकिन चाय की एक पत्ती उसके मुंह में गिर गई थी और उसकी जान बच गई थी.

भारत में चाय उत्पादन में अचानक गिरावट क्यों?

काफी लंबे समय के बाद 17वीं शताब्दी में जाकर दोनों पेय पदार्थ यूरोप पहुंचे. और देखते ही देखते चाय और कॉफी हाउस में पसंदीदा पेय पदार्थ बन गए. इन जगहों पर बुद्धिजीवी लोग दिन के समय किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मिलते थे. इन ‘ड्रग फूड्स' की लोकप्रियता इतनी थी कि उनके व्यापार की वजह से कई साम्राज्यों का विस्तार हुआ.

आज कल चाय और कॉफी की खेती व्यापक तौर पर की जाती है, इन्हें प्रोसेस किया जाता है, पैकेट में पैक किया जाता है और दुनिया भर में भेजा जाता है. इस प्रक्रिया में पर्यावरण पर भी असर पड़ता है.

चाय और कॉफी से पर्यावरण पर कैसा असर

इन पेय पदार्थों का प्रभाव कई कारकों के आधार पर अलग-अलग हो सकता है. हालांकि, कुछ ऐसे शोध हैं जिनमें दोनों पदार्थों के पूरे जीवन चक्र का विश्लेषण किया गया है, यानि उनकी खेती से लेकर उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने, उनका इस्तेमाल करने और उनके अपशिष्ट तक का. रिसर्च के नतीजे दिखाते हैं कि इनकी खेती का पर्यावरण पर काफी ज्यादा असर पड़ता है.

18 साल तक कॉफी पर शोध करने वाली लाइफ साइकल विश्लेषक एमी स्टॉकवेल कहती हैं, "बेशक, हर खेत अलग-अलग होता है. वे अलग-अलग देशों में उगाए जाते हैं. मौसम अलग-अलग होता है. किसान अपनी फसलों की देखभाल अलग-अलग तरीके से करते हैं.”

हालांकि, मशीन से चाय और कॉफी की कटाई, सिंचाई और उर्वरकों से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जित होता है. यह एक प्रभावशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिसका जलवायु पर काफी असर होता है.

उदाहरण के लिए, कॉफी को पारंपरिक रूप से अन्य पेड़ों की छाया में लगाया जाता था. अब इसे बड़े पैमाने पर सूरज के संपर्क में आने वाले विशाल बागानों में उगाया जाता है, जिसके लिए पानी, उर्वरक और कीटनाशकों की ज्यादा जरूरत होती है. चाय और कॉफी के बागानों के लिए जमीन तैयार करने के लिए जंगलों की भी कटाई की जाती है. इससे भी पर्यावरण पर असर पड़ता है.

बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी में पर्यावरण, जलवायु और वैश्विक आप:;" onclick="open_search_form(this)"> Search

पर्यावरण को ज्यादा क्या भाता है: चाय या कॉफी?

किसी को सुबह उठते ही चाय की तलब होती है, तो कुछ लोग कॉफी पीने के बाद ही दिन की शुरुआत करते हैं.

एजेंसी न्यूज Deutsche Welle|
पर्यावरण को ज्यादा क्या भाता है: चाय या कॉफी?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

किसी को सुबह उठते ही चाय की तलब होती है, तो कुछ लोग कॉफी पीने के बाद ही दिन की शुरुआत करते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि चाय या कॉफी में से कौन सा पेय पदार्थ पर्यावरण के लिहाज से ज्यादा फायदेमंद है?वैसे तो जिंदा रहने के लिए हमें चाय और कॉफी जैसी चीजों की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन ये भी सच है कि हममें से कई लोग इन कैफीन वाली चीजों पर बहुत निर्भर हो चुके हैं. दुनिया भर में पानी के बाद दूसरा सबसे ज्यादा पीया जाने वाला पेय पदार्थ चाय ही है और कॉफी भी इससे बहुत पीछे नहीं है.

मानव संस्कृति इन दोनों पेय पदार्थों में डूबी हुई है. कॉफी की उत्पत्ति 9वीं शताब्दी में इथियोपिया में हुई. किंवदंती है कि बकरी चराने वाले कलदी नामक व्यक्ति को संयोग से यह पता चला कि कॉफी के बेरी से शरीर में स्फूर्ति आ जाती है. वहीं, चाय की जड़ें प्राचीन चीन में हैं. यहां पौराणिक चरित्र शेन नॉन्ग के बारे में कहा जाता है कि उसने गलती से जहर खा लिया था, लेकिन चाय की एक पत्ती उसके मुंह में गिर गई थी और उसकी जान बच गई थी.

भारत में चाय उत्पादन में अचानक गिरावट क्यों?

काफी लंबे समय के बाद 17वीं शताब्दी में जाकर दोनों पेय पदार्थ यूरोप पहुंचे. और देखते ही देखते चाय और कॉफी हाउस में पसंदीदा पेय पदार्थ बन गए. इन जगहों पर बुद्धिजीवी लोग दिन के समय किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मिलते थे. इन ‘ड्रग फूड्स' की लोकप्रियता इतनी थी कि उनके व्यापार की वजह से कई साम्राज्यों का विस्तार हुआ.

आज कल चाय और कॉफी की खेती व्यापक तौर पर की जाती है, इन्हें प्रोसेस किया जाता है, पैकेट में पैक किया जाता है और दुनिया भर में भेजा जाता है. इस प्रक्रिया में पर्यावरण पर भी असर पड़ता है.

चाय और कॉफी से पर्यावरण पर कैसा असर

इन पेय पदार्थों का प्रभाव कई कारकों के आधार पर अलग-अलग हो सकता है. हालांकि, कुछ ऐसे शोध हैं जिनमें दोनों पदार्थों के पूरे जीवन चक्र का विश्लेषण किया गया है, यानि उनकी खेती से लेकर उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने, उनका इस्तेमाल करने और उनके अपशिष्ट तक का. रिसर्च के नतीजे दिखाते हैं कि इनकी खेती का पर्यावरण पर काफी ज्यादा असर पड़ता है.

18 साल तक कॉफी पर शोध करने वाली लाइफ साइकल विश्लेषक एमी स्टॉकवेल कहती हैं, "बेशक, हर खेत अलग-अलग होता है. वे अलग-अलग देशों में उगाए जाते हैं. मौसम अलग-अलग होता है. किसान अपनी फसलों की देखभाल अलग-अलग तरीके से करते हैं.”

हालांकि, मशीन से चाय और कॉफी की कटाई, सिंचाई और उर्वरकों से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जित होता है. यह एक प्रभावशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिसका जलवायु पर काफी असर होता है.

उदाहरण के लिए, कॉफी को पारंपरिक रूप से अन्य पेड़ों की छाया में लगाया जाता था. अब इसे बड़े पैमाने पर सूरज के संपर्क में आने वाले विशाल बागानों में उगाया जाता है, जिसके लिए पानी, उर्वरक और कीटनाशकों की ज्यादा जरूरत होती है. चाय और कॉफी के बागानों के लिए जमीन तैयार करने के लिए जंगलों की भी कटाई की जाती है. इससे भी पर्यावरण पर असर पड़ता है.

बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी में पर्यावरण, जलवायु और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाली तुलनात्मक राजनीति की प्रोफेसर लीना पार्त्स ने कहा, "दक्षिणी गोलार्ध के विकासशील देशों में होने वाली अधिकांश वनों की कटाई का उद्देश्य जर्मनी जैसे विकसित देशों को निर्यात के लिए कॉफी और ब्लैक एवं ग्रीन टी जैसी नकदी फसलों का उत्पादन करना है.”

श्रीलंका और भारत जैसे देशों में चाय की वजह से जंगल कट रहे हैं. हालांकि, कॉफी के लिए वनों की कटाई पूरी तरह से रिकॉर्ड में है. 2023 कॉफी बैरोमीटर के मुताबिक, हर साल लगभग 1,30,000 हेक्टेयर पेड़ काटे जा रहे हैं, ताकि बागानों के लिए जगह बनाई जा सके. नीदरलैंड स्थित वैगनिंगन यूनिवर्सिटी की ओर से किए गए एक अध्ययन का अनुमान है कि 5 फीसदी वनों की कटाई कॉफी के कारण हो सकती है.

इन पेय पदार्थों को पीने योग्य बनाने के लिए इन्हें प्रोसेस भी करना पड़ता है. ऐसे में पर्यावरण पर पड़ने वाला असर इस बात पर निर्भर करता है कि इन्हें प्रोसेस करने के लिए किस तरह की ऊर्जा इस्तेमाल की जाती है. जैसे, जीवाश्म ईंधन या नवीकरणीय ऊर्जा.

अब बारी आती है इन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की. ऐसे में पर्यावरण पर इन उत्पादों का क्या असर होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इन्हें समुद्री मार्ग से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है या विमान से. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के 2021 के अध्ययन में पाया गया कि हवाई जहाज की तुलना में पानी वाले कार्गो जहाज से इन्हें ले जाने पर परिवहन के दौरान होने वाले उत्सर्जन में काफी कमी आयी.

चाय और कॉफी की पैकेजिंग भी काफी मायने रखती है और पर्यावरण पर असर डालती है. हालांकि, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें प्लास्टिक में पैक किया जाता है या फिर से इस्तेमाल किए जा सकने वाले थैलों में या ऐसे कागज में जिन्हें बनाते समय पर्यावरण का कम से कम नुकसान हुआ हो.

वैसे पैकेजिंग के फायदे भी हैं. इससे कचरे के ढेर पर फेंके जाने वाले भोजन में कमी आती है. भोजन को कचरे में फेंकने से यह सड़ता है और इससे ग्रीनहाउस गैस मीथेन का उत्सर्जन होता है. स्टॉकवेल ने कहा कि कॉफी की बर्बादी को रोकना एक बड़ी चुनौती है.

उन्होंने बताया, "हम जब भी किसी बर्तन में कॉफी बनाते हैं, तो उसका आधा हिस्सा ही पीते हैं. मैंने कुछ डेटा का अध्ययन किया है, जिससे पता चलता है कि आम तौर पर एक पॉट कॉफी का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है.”

चाय या कॉफी में कौन बेहतर है?

इस सवाल का जवाब देना थोड़ा मुश्किल है. चाय पीने की शौकीन स्टॉकवेल कहती हैं, "एक किलो चाय की तुलना, एक किलो कॉफी से करना और फिर उस आधार पर कोई ठोस सलाह देना काफी मुश्किल है. इसकी वजह यह है कि किसी भी अन्य कृषि उत्पाद की तरह, चाय और कॉफी भी कई वेरायटी के होते हैं.”

हालांकि, चीनी या दूध के बिना एक कप चाय और एक कप कॉफी के कार्बन फुटप्रिंट का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि चाय इस मामले में जीत जाता है. वजह यह है कि हम प्रति कप कम उत्पाद का उपयोग करते हैं. एक टीबैग में लगभग 2 ग्राम पत्तियां होती हैं और एक कप कॉफी में लगभग 7 ग्राम बीन्स का उपयोग होता है.

अगर हम इनमें दूध भी जोड़ दें, तो कॉफी और ज्यादा खराब स्थिति में पहुंच जाती है. गाय के दूध में कार्बन फुटप्रिंट बहुत ज़्यादा होता है और हम इसे कॉफी में ज्यादा मिलाते हैं. लैटे और फ्लैट व्हाइट कॉफी में यह आपको साफ तौर पर देखने को मिलता है.

कॉफी पीने वाले और यूसीएल के प्रोफेसर मार्क मैस्लिन ने कहा, "जब आप कॉफी और चाय पीते हैं, तो सबसे बड़ा फैसला यह होता है कि आप उनमें कौन सा दूध डालेंगे. इसलिए, प्लांट-बेस्ड मिल्क का इस्तेमाल करना या ब्लैक कॉफी या चाय पीना आसान उपाय है.

इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम कैसे करें

स्टॉकवेल कहती हैं, "सिर्फ उतना ही पानी गर्म करें जितनी आपको जरूरत है. मैं हमेशा केतली में जरूरत से ज्यादा पानी भर लेती हूं. इसका मतलब है कि पानी गर्म करने के लिए ज्यादा बिजली का इस्तेमाल करती हूं.” इसलिए, उतना ही पानी गर्म करें जितना जरूरत हो.

वहीं, चाय और कॉफी को एयरटाइट कंटेनर में रखना चाहिए, ताकि वे खराब न हों. चाय की थैलियों के बजाय खुली पत्तियों वाली चाय खरीदें, क्योंकि चाय की थैलियों में अक्सर प्लास्टिक होता है और उन्हें खाद में नहीं बदला जा सकता. कारोबारी, किसान और सरकार भी इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं.

कॉफी पर 2021 के यूसीएल अध्ययन में पाया गया कि कम उर्वरक का उपयोग करने, पानी और ऊर्जा का बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने, और विमान के बजाय कार्गो जहाज से बीन्स का निर्यात करने से, कॉफी से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को लगभग 77 फीसदी तक कम किया जा सकता है.

इसके अलावा, जहां भी संभव हो, वहां पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पैकेजिंग की जानी चाहिए और नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. कुछ कंपनियों ने अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए स्वैच्छिक योजनाओं पर हस्ताक्षर किए हैं. पिछले साल, यूरोपीय संघ ने कारोबारियों को अपने उत्पाद पर यह दिखाने के लिए बाध्य करने का कानून पारित किया कि कॉफी और कोको जैसे उत्पादों के लिए जंगलों की कटाई नहीं की गई है.

यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगले 25 वर्षों में कॉफी की खपत दोगुनी होने का अनुमान है. वहीं, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से दुनिया भी गर्म हो रही है. ऐसे में कॉफी की खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र आधे से भी कम हो जाएंगे. कॉफी एक संवेदनशील फसल है.

मार्क मैस्लिन कहते हैं, "यह कुछ हद तक हमारे जैसा है. आप जानते हैं कि हमें अच्छा और गर्म मौसम पसंद है. हमें थोड़ी नमी पसंद है. हम नहीं चाहते हैं कि मौसम काफी गर्म या उमस भरा हो. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कॉफी और चाय की हमारी मांग की पूर्ति करने के लिए, हमें नए क्षेत्रों में वनों की कटाई न करनी पड़े.”

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