नयी दिल्ली, 18 जून उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में दो मई को चुनाव संबंधी हिंसा में मारे गये भाजपा के दो कार्यकर्ताओं के परिजनों की याचिका पर सुनवाई से खुद को शुक्रवार को अलग कर दिया। इस याचिका में अदालत की निगरानी में जांच कराने और मामलों को केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) या विशेष जांच दल (एसआईटी) को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया है।
जैसे ही मामले को सुनवाई के लिए लिया गया, न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने कहा, ‘‘मुझे इस मामले की सुनवाई में कुछ कठिनाई हो रही है। इस मामले को दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।’’
न्यायमूर्ति एम आर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने आदेश दिया, ‘‘मामले को किसी अन्य उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें जिसमें न्यायमूर्ति बनर्जी हिस्सा नहीं हैं।’’
उच्चतम न्यायालय ने 18 मई को याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी और विश्वजीत सरकार और स्वर्णलता अधिकारी की याचिका पर पश्चिम बंगाल सरकार तथा केंद्र से जवाब मांगा था। विश्वजीत सरकार के बड़े भाई और स्वर्णलता के पति चुनावी हिंसा में मारे गए थे।
उन्होंने दलील थी कि यह एक बहुत ही गंभीर मामला है और राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना के दिन हुई दो भाजपा कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या में राज्य सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। उन्होंने कहा था कि इस मामले में सीबीआई या एसआईटी द्वारा अदालत की निगरानी में जांच किए जाने की जरूरत है क्योंकि राज्य पुलिस शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।
अधिवक्ता सरद कुमार सिंघानिया द्वारा दाखिल याचिका में आरोप लगाया गया है कि अभिजीत सरकार की दो मई को अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस पार्टी के 20 समर्थकों की कथित भीड़ ने हत्या कर दी थी।
याचिका में दावा किया गया है कि भीड़ याचिकाकर्ता नंबर एक बिश्वजीत सरकार के घर में घुसी, उसके बड़े भाई (अभिजीत) को घसीटा और उसकी मां तथा परिवार के अन्य सदस्यों के सामने उनकी हत्या कर दी।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता नंबर दो (स्वर्णलता अधिकारी) हरन अधिकारी की पत्नी हैं, जो सोनारपुर दक्षिण विधानसभा में बूथ नंबर 199 ए में स्थानीय बूथ कार्यकर्ता थे। इसमें कहा गया है कि उनके घर पर ईंटों, लाठी, और फावड़ियों से हमला किया गया था और उनके 80 वर्षीय पिता की मौजूदगी में उन्हें (हरन अधिकारी) बेरहमी से मार दिया गया।
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