नागपुर, 24 अक्टूबर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि मणिपुर में हुई जातीय हिंसा प्रायोजित थी। उन्होंने पूर्वोत्तर राज्य के हालात के लिए “बाहरी ताकतों” को कसूरवार ठहराया।
भागवत ने सवाल किया, “मेइती और कुकी समुदाय के लोग कई वर्षों से साथ रहते आ रहे हैं। यह एक सीमावर्ती राज्य है। इस तरह के अलगाववाद और आंतरिक संघर्ष से किसे फायदा होता है? बाहरी ताकतों को भी फायदा मिलता है। वहां जो कुछ भी हुआ, क्या उसमें बाहर के लोग शामिल थे?”
नागपुर में आरएसएस की दशहरा रैली को संबोधित करते हुए भागवत ने आरोप लगाया कि “तथाकथित सांस्कृतिक मार्क्सवादी और जागरुक तत्व” देश की शिक्षा एवं संस्कृति को बरबाद करने के लिए मीडिया तथा शिक्षा जगत में अपने प्रभाव का दुरुपयोग कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि 22 जनवरी को अयोध्या के मंदिर में भगवान राम की मूर्ति स्थापित की जाएगी और इस अवसर पर जश्न मनाने के लिए लोग देशभर के मंदिरों में कार्यक्रम आयोजित करें।
मणिपुर के हालात पर आरएसएस प्रमुख ने कहा, “केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तीन दिन तक मणिपुर में थे। वास्तव में संघर्ष को किसने बढ़ावा दिया? यह (हिंसा) हो नहीं रही है, इसे कराया जा रहा है।”
उन्होंने सवाल किया, “मणिपुर में अशांति और अस्थिरता का फायदा उठाने में किन विदेशी ताकतों की दिलचस्पी हो सकती है? क्या इन घटनाक्रमों में दक्षिण-पूर्व एशिया की भूराजनीति की भी कोई भूमिका है?”
भागवत ने कहा, “जब शांति बहाल होती नजर आती है, तब कोई न कोई घटना घट जाती है। इससे समुदायों के बीच दूरियां बढ़ती हैं। जो लोग ऐसी हरकतों में शामिल हैं, उनके पीछे कौन है? हिंसा कौन भड़का रहा है?”
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि उन्हें संघ के उन कार्यकर्ताओं पर गर्व है, जिन्होंने मणिपुर में शांति बहाल करने की दिशा में काम किया।
उन्होंने लोगों को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भावनाएं भड़काकर वोट हासिल करने की कोशिशों के प्रति आगाह किया।
भागवत ने लोगों से देश की एकता, अखंडता, पहचान और विकास को ध्यान में रखते हुए मतदान करने का आह्वान किया।
उन्होंने हिंसा भड़काने और समुदायों के बीच अविश्वास एवं नफरत पैदा करने वाले “टूलकिट” का जिक्र किया।
भागवत ने कहा, “जो लोग एकजुटता की चाह रखते हैं, वे इस बात पर जोर नहीं दे सकते कि एकजुटता के बारे में सोचने से पहले सभी समस्याएं हल होनी चाहिए। हमें छिटपुट घटनाओं से विचलित हुए बिना शांति और संयम से काम करना होगा।”
उन्होंने कहा, “तीन तत्व-- मातृभूमि के प्रति समर्पण, पूर्वजों पर गर्व और समान संस्कृति-, क्षेत्र, धर्म, संप्रदाय, जाति एवं उपजाति रूपी सभी विविधताओं को एक साथ जोड़कर हमें एक राष्ट्र बनाते हैं। यहां तक कि जो लोग भारत के बाहर अस्तित्व में आए धर्मों का पालन करते हैं, उन्हें भी इन तत्वों का पालन करना चाहिए।”
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