विदेश की खबरें | अमेरिकी संसदीय समिति ने चीन पर दलाई लामा के दूतों के साथ वार्ता का दबाव बनाने संबंधी विधेयक पारित किया
श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

वाशिंगटन, एक दिसंबर अमेरिकी संसद की एक शक्तिशाली समिति ने तिब्बत के इतिहास को लेकर ‘चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी’ के दुष्प्रचार से निपटने और तिब्बत एवं चीन के पुराने विवाद को सुलझाने के लिए दलाई लामा के दूतों के साथ वार्ता का चीन पर दबाव बनाने के अमेरिकी प्रयासों को मजबूत करने को लेकर एक विधेयक पारित किया है।

विधेयक में चीन के इस दावे को भी गलत बताया गया है कि तिब्बत प्राचीन काल से चीन का हिस्सा रहा है। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की विदेश मामलों की समिति ने इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया।

समिति के अध्यक्ष माइकल मैकॉल ने कहा, ‘‘यह विधेयक ‘चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी’ (सीसीपी) और तिब्बत में लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेताओं के बीच संवाद की आवश्यकता पर जोर देता है। किसी भी प्रस्ताव में तिब्बती लोगों की इच्छाएं और आवाज शामिल होनी चाहिए।’’

मैकॉल ने कहा, ‘‘तिब्बती लोकतंत्र-प्रेमी लोग हैं जो स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी इच्छाओं का भी सम्मान किया जाए, जैसा हम अमेरिका में करते हैं। हम जिन स्वतंत्रताओं का आनंद लेते हैं, हम चाहते हैं कि तिब्बत के लोग भी उनका आनंद उठाएं।’’

इस विधेयक में चीन सरकार पर दलाई लामा के दूतों या तिब्बती लोगों के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेताओं के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के लिए दबाव बनाने का जिक्र किया गया है। बातचीत की प्रक्रिया 2010 से रुकी हुई है।

मैकॉल ने कहा कि सत्तारूढ़ सीसीपी का तिब्बत के लोगों के खिलाफ उत्पीड़न का एक पुराना और हिंसक इतिहास रहा है।

उन्होंने कहा कि अक्टूबर 1950 में चीनी कम्युनिस्ट सैनिकों ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था और इस दौरान हजारों तिब्बती लोग और बौद्ध भिक्षु मारे गये थे।

उन्होंने कहा कि तिब्बत के लोगों पर सीसीपी के जारी उत्पीड़न के कारण दलाई लामा को भारत जाने के लिए अंततः मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कहा कि यह उत्पीड़न आज भी जारी है।

मैकॉल ने कहा, ‘‘अमेरिका ने कभी स्वीकार नहीं किया कि तिब्बत प्राचीन काल से चीन का हिस्सा था।’’

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