सिंगापुर, 3 सितंबर : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आधिकारिक यात्रा पर सिंगापुर पहुंचने से पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को कहा कि दोनों देशों के लिए अपने द्विपक्षीय संबंधों को अगले स्तर पर ले जाने का समय आ गया है. सिंगापुर के दैनिक समाचार पत्र ‘द स्ट्रेट्स टाइम्स’ ने जयशंकर के एक साक्षात्कार के हवाले से कहा, ‘‘भारत में हो रहे परिवर्तन और दुनिया में हो रहे बदलावों को देखते हुए उन्हें और अधिक समकालीन बनने की जरूरत है. कई मायनों में, यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही सिंगापुर की यात्रा करने का फैसला किया.’’ उन्होंने कहा कि भारत और सिंगापुर के द्विपक्षीय संबंध ‘‘पिछले दो दशक में बेहद मजबूत रहे हैं.’’ मंत्री ने कहा कि जिस तरह सिंगापुर को 1992 में और फिर 2006 में अवसर मिला था, उसी तरह उसे इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहिए और नए परिदृश्य का पूरा उपयोग करना चाहिए.
जयशंकर ने कहा, ‘‘ईमानदारी से कहूं तो कभी-कभी मुझे लगता है कि आपकी धारणाएं कुछ पुरानी हैं.’’ मंत्री ने कहा, ‘‘भारत में, हम बीते दशक की उपलब्धियों का उपयोग राष्ट्रीय विकास और आधुनिकीकरण में तेजी लाने के लिए कर रहे हैं.’’ उन्होंने कहा कि द्विपक्षीय संबंधों से परे, अस्थिर और अनिश्चित दुनिया में घनिष्ठ सहयोग का मुद्दा भी है. मंत्री ने कहा, ‘‘इस संबंध में, हमें यह पहचानना होगा कि हमारी साझेदारी अत्यधिक विश्वास और समझ पर आधारित है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ये विशेषताएं हमें आकलनों को साझा करने और अपनी समानताओं का पता लगाने में सक्षम बनाती हैं.’’ जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री के मन में सिंगापुर के लिए हमेशा से विशेष भावना रही है और नेतृत्व का यह जुड़ाव पहले से कहीं अधिक मायने रखेगा. जयशंकर सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त रह चुके हैं और उन्हें इसकी बहुत अच्छी समझ है. यह पूछे जाने पर कि भारत द्विपक्षीय संबंधों को किस दिशा में ले जाना चाहता है, मंत्री ने कहा, ‘‘तब से अब तक हम काफी आगे बढ़ चुके हैं. जैसा कि मैंने कहा, हमारे संबंधों को अगले स्तर पर ले जाने का समय आ गया है, जो दोनों देशों की मौजूदा वास्तविकताओं के साथ-साथ दुनिया की स्थिति को भी दर्शाता है.’’ यह भी पढ़ें : किम ने दुश्मन को निशाना बनाने में सक्षम नए ड्रोन का प्रदर्शन देखा, अमेरिका ने सैन्य अभ्यास किया
मंत्री ने कहा कि जहां तक भारत के प्रति सिंगापुर के दृष्टिकोण का सवाल है, तो इसकी शुरुआत पिछले दशक के विकास, कोविड से उबरने और देश के तेजी से डिजिटलीकरण की सराहना के साथ हो सकती है तथा इसके अलावा बुनियादी ढांचे में प्रगति, विनिर्माण पर ध्यान और प्रतिभा की उपलब्धता को भी ध्यान में रखा जा सकता है. पिछले सप्ताह भारत-सिंगापुर मंत्रिस्तरीय गोलमेज सम्मेलन में भी इन मुद्दों पर चर्चा की गई थी - जो मोदी की सिंगापुर यात्रा की तैयारी के लिए आयोजित किया गया था. जयशंकर ने जोर देकर कहा, ‘‘मैं विशेष रूप से भविष्य के लिए आशाजनक प्रौद्योगिकियों जैसे सेमीकंडक्टर, हरित प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का उल्लेख करूंगा. हमें संपर्क सुविधा और ऊर्जा प्रवाह के भविष्य के बारे में भी मिलकर सोचने की जरूरत है.’’ मंत्री ने खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की प्रासंगिकता को रेखांकित करने के लिए कोविड के अनुभव का भी हवाला दिया और कहा, ‘‘वैश्विक परिदृश्य के संबंध में, हमने ‘एक्ट ईस्ट’ नीति पर काम किया है जो अब एक पूर्ण हिंद-प्रशांत प्रतिबद्धता है.’’ जयशंकर ने कहा कि एक नया संतुलन बन रहा है और भारत निश्चित रूप से अपनी भूमिका निभाएगा. उन्होंने कहा, ‘‘यह सिंगापुर और आसियान (दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन) के हित में है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे युग में जब हम वैश्विक समानताओं में कमी होती देखेंगे, हमारे संबंध एक बड़ा अंतर ला सकते हैं.’’ मंत्री ने इस धारणा पर भी टिप्पणी की कि भारत का अपने विस्तारित पड़ोस में मुख्य ध्यान अब आसियान नहीं, बल्कि खाड़ी पर है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं ‘या तो यह या वह’ का दृष्टिकोण नहीं अपनाऊंगा. पिछले दशक में खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंध निश्चित रूप से मजबूत हुए हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘पहले की सरकारें इन्हें व्यापार, ऊर्जा और प्रवासी समुदाय के नजरिए से संकीर्ण दृष्टि से देखती थीं. इसके विपरीत, मोदी सरकार की नीतियों में निवेश, प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और संपर्क सुविधा को भी शामिल किया गया है.’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘हमें निश्चित रूप से लगता है कि हमारे समुदाय के योगदान को (खाड़ी में) अधिक मजबूती से मान्यता दी गई है. आर्थिक और जनसांख्यिकीय दोनों ही पूरकताएं आज बड़ी भूमिका में हैं लेकिन इस वजह से, मैं आसियान के संबंध में कोई निष्कर्ष नहीं निकालूंगा. वास्तव में, इस अवधि में हमारे संबंध भी गहरे हुए हैं.’’ जयशंकर ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि सबसे अधिक आबादी वाले देश और वर्तमान में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत के लिए बहु-दिशात्मक संबंध होना अनिवार्य है.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी यह सोच नहीं है कि दुनिया में किसी एक देश का लाभ दूसरे देश का नुकसान है.’’ मंत्री ने कहा कि सिंगापुर भारत की ‘लुक ईस्ट’ नीति का आधार था. उन्होंने कहा, ‘‘सिंगापुर हमारी ‘लुक ईस्ट’ नीति के स्पष्ट रूप से केंद्र में था और अब ‘एक्ट ईस्ट’ नीति में भी उसकी समान रूप से केंद्रीय भूमिका है. यदि आप इस विकास को दर्शाने वाले नए क्षेत्रों को देखें, तो सुरक्षा, संपर्क सुविधा, प्रौद्योगिकी और स्थिरता में सिंगापुर की साझेदारी स्पष्ट है.’’ उन्होंने कहा कि ‘एक्ट ईस्ट’ नीति कई कारणों से निश्चित रूप से बहुत सक्रिय है. उन्होंने कहा कि दक्षिण पूर्व एशिया में बहुत अधिक क्षमता है जिसका अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया है और इसकी जनसांख्यिकी एवं विकास की संभावनाएं इसे दीर्घकालिक साझेदार बनाती हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए, कल्पना करें कि त्रिपक्षीय राजमार्ग (भारत को म्यांमा और थाईलैंड से जोड़ने की योजना) पूरा होने पर क्या बदलाव ला सकता है.’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘यह एक ऐसा संबंध है जो भारत के हिंद प्रशांत क्षेत्र से जुड़ाव के लिए अहम है. मैं पूरे आत्मविश्वास से एक उज्ज्वल भविष्य की भविष्यवाणी कर सकता हूं.’’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चार सितंबर को सिंगापुर जाएंगे. उन्होंने कहा कि वह सिंगापुर के राष्ट्रपति थर्मन शनमुगरतनम, प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग, वरिष्ठ मंत्री ली सीन लूंग और सेवानिवृत्त वरिष्ठ मंत्री गोह चोक टोंग से मिलने को लेकर उत्साहित हैं. वह सिंगापुर के व्यावसायिक समुदाय के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे.