नयी दिल्ली, 11 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र को निर्देश दिया कि वह ‘मैनुअल’ तरीके से सीवर सफाई को चरणबद्ध तरीके से पूरी तरह समाप्त करने के लिए दिए गए निर्देशों के अनुपालन पर कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करे।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि वह दो सप्ताह के भीतर सभी हितधारकों के साथ केंद्रीय निगरानी समिति की बैठक बुलाएं।
समिति मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (एमएस अधिनियम, 2013) के कार्यान्वयन की समीक्षा करती है।
पीठ ने कहा, ‘‘अदालत द्वारा (2023 में) पारित आदेश में कहा गया था कि प्रौद्योगिकी के विकास को देखते हुए, सीवर की सफाई के लिए ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ और श्रमिकों के रोजगार को खत्म करना पूरी तरह से संभव है। ऐसा नहीं किया गया है। रिपोर्ट से ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।’’
न्याय मित्र के रूप में न्यायालय की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने दलील दी कि 2024 में सीवर सफाई और सेप्टिक टैंक की सफाई के कारण 40 लोगों की मौत हुईं, लेकिन कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई।
उन्होंने कहा कि अधिनियम के तहत अनिर्वाय ज्यादातर समितियां अस्तित्व में नहीं हैं तथा कानूनों का अनुपालन नहीं होने की ओर ध्यान दिलाया।
इस मामले पर जनवरी, 2025 में सुनवाई होगी।
उच्चतम न्यायालय ने 2023 में केंद्र और राज्यों को उचित उपाय करने और नीतियां बनाने का निर्देश दिया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ‘मैनुअल’ तरीके से सीवर सफाई को चरणबद्ध तरीके से पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाए।
इससे पहले न्यायालय ने कई निर्देश जारी करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से सीवर सफाई के दौरान मरने वालों के परिजनों को 30 लाख रुपये का मुआवजा देने को कहा था।
उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया था कि किसी भी दिव्यांगता से ग्रस्त सीवर पीड़ितों के मामले में न्यूनतम मुआवजा 10 लाख रुपये से कम नहीं होगा।
इसने कहा था कि यदि दिव्यांगता स्थायी है और पीड़ित आर्थिक रूप से कमजोर है तो मुआवजा 20 लाख रुपये से कम नहीं होना चाहिए।
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