नयी दिल्ली, 17 नवंबर कांग्रेस ने रविवार को आरोप लगाया कि महिला कर्मियों की मौजूदा कमाई छह साल पहले की तुलना में कम है और यह ‘अमृत काल’ की दुखद वास्तविकता है।
कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने एक बयान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पर श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी संबंधी आंकड़ों में हेरफेर करने का हताशाजनक प्रयास करने का आरोप लगाया।
रमेश ने एक बयान में आरोप लगाया, ‘‘आर्थिक आंकड़ों के साथ इस तरह की छेड़छाड़ कभी नहीं की गई, जैसी प्रधानमंत्री के पिछले दशक के (कार्यकाल के) दौरान की गई है।’’
उन्होंने कहा कि इसका ताजा उदाहरण श्रम क्षेत्र में महिला भागीदारी अनुपात (एलएफपीआर) में 2017-18 में 27 प्रतिशत से 2023-34 में 41.7 प्रतिशत तक ‘स्थिर वृद्धि’ की ‘अभूतपूर्व कहानी’ को उपलब्धि के रूप में पेश करने का है।
रमेश ने कहा, ‘‘यह पूरी तरह से फर्जी है। महिलाओं की एलएफपीआर में जो वृद्धि दिखाई गई है, वह मुख्य रूप से ग्रामीण महिलाओं के कारण है, जिनका श्रम बल में प्रवेश आर्थिक संकट के कारण हुआ है।’’
कांग्रेस नेता ने अपने दावे के समर्थन में दलील दी, ‘‘ स्व-रोजगार में लगी ग्रामीण महिलाओं का अनुपात 57.7 प्रतिशत (2017-18) से तेजी से बढ़कर 73.5 प्रतिशत (2023-24) हो गया है और शहरी महिलाओं में भी स्व-रोजगार 34.8 प्रतिशत(2017-18) से बढ़कर 42.3 प्रतिशत (2023-24) हो गया है।’’ उन्होंने कहा कि ग्रामीण और शहरी महिलाओं द्वारा अवैतनिक पारिवारिक कार्य 31.7 प्रतिशत (2017-18) से बढ़कर 36.7 प्रतिशत (2023-24) हो गया है।
कांग्रेस नेता ने दावा किया, ‘‘2017-18 और 2023-24 के बीच कुल महिलाओं की एलएफपीआर में 84 प्रतिशत वृद्धि स्वरोजगार के कारण हुई है, जिसमें अवैतनिक पारिवारिक कार्य भी शामिल है।’’
रमेश ने एक चार्ट साझा करते हुए कहा कि यह पिछले दशक में महिलाओं के लिए नौकरियों की गुणवत्ता में आई तीव्र गिरावट को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी आधुनिक अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन होता है, क्योंकि श्रमिक कम वेतन वाली कृषि नौकरियों से विनिर्माण और सेवा उद्योगों में बेहतर संभावनाओं की ओर बढ़ते हैं।’’
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘पिछले दशक में यह दुखद रूप से उलट गया है। कृषि में काम करने वाली ग्रामीण महिलाओं का अनुपात 73.2 प्रतिशत (2017-18) से बढ़कर 76.9 प्रतिशत (2023-24) हो गया है, और यह महामारी के दौरान की तुलना में भी अधिक है।’’
उन्होंने दावा किया कि आधुनिक सेवा क्षेत्र (स्वास्थ्य, शिक्षा, आईटी आदि) में महिलाओं के लिए नौकरियों की हिस्सेदारी 2021 से घटी है।’’
उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद, स्वरोजगार वाली महिलाओं का वास्तविक औसत मासिक वेतन 2017-18 और 2023-24 के बीच 3,073 रुपये घट गये, जो 35 प्रतशित की गिरावट है।
रमेश ने आरोप लगाया,‘‘इसी अवधि में वेतनभोगी महिला श्रमिकों का वास्तविक वेतन 1,342 रुपये या 7प्रतिशत कम हुआ है। संक्षेप में, वेतनभोगी श्रमिक या स्वरोजगार के रूप में कार्यबल में प्रवेश करने वाली महिलाएं आज छह साल पहले की तुलना में कम कमा रही हैं। यह अमृत काल की दुखद वास्तविकता है।’’
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