नयी दिल्ली, 25 अक्टूबर गुजरात सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि गिर सोमनाथ में जिस भूमि पर मुस्लिम धार्मिक ढांचों को कथित तौर पर अवैध रूप से ढहाया गया है, वह उसके पास ही रहेगी और किसी तीसरे पक्ष को आवंटित नहीं की जाएगी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर गौर किया और इस बीच कोई अंतरिम यथास्थिति आदेश पारित नहीं किया। मुस्लिम पक्षकारों के वकील ने यह आदेश पारित किए जाने का अनुरोध किया था।
पीठ ने कहा, ‘‘सॉलिसिटर जनरल ने कहा है कि अगले आदेश तक संबंधित भूमि का कब्जा सरकार के पास रहेगा और इसे किसी तीसरे पक्ष को आवंटित नहीं किया जाएगा। इस मामले को देखते हुए हमें कोई अंतरिम आदेश पारित करना आवश्यक नहीं लगता।’’
पीठ गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मुस्लिम धार्मिक ढांचों के ध्वस्तीकरण के संदर्भ में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश को अस्वीकार कर दिया गया था।
शीर्ष अदालत गुजरात के प्राधिकारियों के खिलाफ उस अवमानना याचिका पर भी सुनवाई कर रही है जिसमें अंतरिम रोक के बावजूद और पूर्व अनुमति के बिना राज्य में आवासीय एवं धार्मिक संरचनाओं का अवैध ध्वस्तीकरण किए जाने का आरोप लगाया गया है।
याचिका में शीर्ष अदालत के 17 सितंबर के आदेश के कथित उल्लंघन को लेकर राज्य प्राधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है। शीर्ष अदालत ने तब देश में किसी मामले के आरोपियों की संपत्ति सहित अन्य संपत्तियों को बिना उसकी अनुमति के ध्वस्त करने पर रोक लगा दी थी। इस याचिका पर 11 नवंबर को सुनवाई होगी।
पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ औलिया-ए-दीन समिति की नयी याचिका को सूचीबद्ध करने का उसी दिन आदेश दिया था।
जूनागढ़ की औलिया-ए-दीन समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुनवाई की शुरुआत में कहा कि एक विशेष समुदाय से संबंधित संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया गया है लेकिन वहां सरकारी भूमि पर बने मंदिरों को छोड़ दिया गया है।
उन्होंने दावा किया कि संरक्षित स्मारकों को इस आधार पर ध्वस्त कर दिया गया कि वे एक जल निकाय- अरब सागर के निकट थे।
सॉलिसिटर जनरल ने इन दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि केवल उन संरचनाओं को ध्वस्त किया गया है जो अतिक्रमित सरकारी भूमि पर बनाई गई थीं और कानून के तहत संरक्षित नहीं थीं।
पीठ ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया और आश्वासन दिया कि वह बहाली का आदेश भी दे सकती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने एक अन्य वादी का प्रतिनिधित्व करते हुए दावा किया कि वैध वक्फ भूमि पर स्थित संरचनाओं को निशाना बनाया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘जब मामला लंबित था तब उन्होंने शनिवार रात भर कार्यवाही की और संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया।’’
अहमदी ने सरकार द्वारा किसी तीसरे पक्ष को भूमि आवंटित किए जाने संबंधी अपने मुवक्किल की आशंका व्यक्त की और यथास्थिति आदेश पारित किए जाने का अनुरोध किया।
मेहता ने जब कहा कि जमीन सरकार के पास ही रहेगी तो पीठ ने इसे दर्ज कर लिया और सुनवाई स्थगित कर दी।
पीठ ने कहा, ‘‘अगली तारीख तक कब्जा सरकार के पास ही रहने दिया जाए।’’
न्यायालय ने चार अक्टूबर को कहा था कि यदि उसने पाया कि गुजरात के प्राधिकारियों ने संपत्ति के ध्वस्तीकरण संबंधी उसके हालिया आदेश की अवमानना करने वाला कृत्य किया है तो वह उन्हें तोड़े गए ढांचों को फिर से बहाल करने के लिए कहेगा।
बहरहाल, पीठ ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पास ध्वस्तीकरण पर यथास्थिति का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।
गुजरात में प्राधिकारियों ने 28 सितंबर को गिर सोमनाथ जिले में सोमनाथ मंदिर के पास सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान चलाया था।
प्रशासन ने कहा था कि इस अभियान के दौरान धार्मिक संरचनाओं और कंक्रीट के मकानों को ध्वस्त कर दिया गया और 60 करोड़ रुपये मूल्य की लगभग 15 हेक्टेयर सरकारी भूमि को खाली कराया गया।
न्यायालय ने एक अक्टूबर को उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिनमें आरोप लगाया गया है कि कई राज्यों में आरोपियों की संपत्ति समेत अन्य संपत्तियां ध्वस्त की जा रही हैं।
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