नयी दिल्ली, चार अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाक के एक मामले में साक्ष्य दर्ज करने के लिए स्थानीय आयुक्त (एलसी) के रूप में नियुक्त एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी को एक वादी के आचरण के कारण हुई पीड़ा के लिए खेद व्यक्त किया है।
अदालत ने कहा कि एलसी के खिलाफ टिप्पणी से वादी ने अदालती प्रक्रिया का ‘‘मजाक’’ उड़ाया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि वादी महिला का आचरण स्पष्ट रूप से उसके द्वारा नियुक्त अधिकारियों और अदालती प्रक्रिया के प्रति ‘‘दुर्भावनापूर्ण और अनादर’’ है।
उच्च न्यायालय ने वादी पर लागत के रूप में 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे चार सप्ताह के भीतर दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के पास जमा करना होगा।
न्यायमूर्ति नवीन चावला ने तलाक के मामले में और साक्ष्य देने के संबंध में महिला को कोई और छूट देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि अब मामले में एलसी नियुक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
उच्च न्यायालय ने सेवानिवृत्त प्रधान एवं सत्र न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) आर. किरण नाथ द्वारा रजिस्ट्रार जनरल को लिखे गए एक पत्र पर विचार किया, जिसमें उन्होंने खुद को आगे की कार्यवाही से अलग करने की मांग की थी।
नाथ को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत साक्ष्य दर्ज करने के लिए एलसी के रूप में नियुक्त किया गया था।
पूर्व न्यायिक अधिकारी ने कहा कि वादी महिला और उसके वकील द्वारा भेजे गए व्हाट्सएप संदेश ‘‘अपमानजनक, मजाक उड़ाने वाले और पूर्वाग्रह का आरोप लगाने वाले’’ थे।
संदेशों को देखने के बाद, उच्च न्यायालय ने कहा कि स्पष्ट रूप से महिला वादी अदालती प्रक्रिया का मजाक उड़ा रही थी।
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