नयी दिल्ली, 29 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए मंगलवार को पहली बार केंद्र सरकार से पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर में चुनावी लोकतंत्र बहाल करने के लिए एक समय सीमा निर्दिष्ट करने को कहा। न्यायालय ने यह भी कहा कि मौजूदा व्यवस्था ‘समाप्त होनी चाहिए।’
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि जम्मू कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा कोई "स्थायी चीज़" नहीं है और सरकार 31 अगस्त को अदालत में इस जटिल राजनीतिक मुद्दे पर एक विस्तृत दलील देगी।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘लोकतंत्र महत्वपूर्ण है, हालांकि हम इस बात से सहमत हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य में राज्य का पुनर्गठन किया जा सकता है।’’
अदालत ने कहा कि चुनावी लोकतंत्र की कमी को अनिश्चित काल तक जारी नहीं रहने दिया जा सकता।
पीठ ने कहा, "इसका अंत होना ही चाहिए...हमें एक स्पष्ट समय सीमा बताइए कि आप वास्तविक लोकतंत्र कब बहाल करेंगे। हम इसे रिकॉर्ड पर लेना चाहते हैं।"
पीठ ने मेहता और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कार्यपालिका से निर्देश लेकर आने को कहा। मेहता ने पीठ से कहा, "मैंने निर्देश ले लिया है और निर्देश यह है कि जम्मू कश्मीर के लिए केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा कोई स्थायी चीज नहीं है। यह लद्दाख के लिए बना रहेगा। हालांकि, मैं 31 अगस्त को एक विस्तृत बयान दूंगा।"
पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं।
मेहता ने 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पेश करते समय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दिए गए बयान को पढ़ते हुए कहा कि समय के साथ जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।
अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर न्यायालय सुनवाई कर रहा है।
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