वह अपना हिजाब उतारती है और नारे लगाने लगती है, “डेथ टू द डिक्टेटर!” (तानाशाह की मौत)। आस-पास के प्रदर्शनकारी भी उनके सुर में सुर मिलाते हैं और अपनी गाड़ियों का हॉर्न उसके समर्थन में बजाते हैं।
मशहद में ही पली-बढ़ी फातिमा शम्स कहती हैं कि कई ईरानी महिलाएं एक दशक पहले तक इस तरह की तस्वीर के बारे में सोच भी नहीं सकती थीं।
उन्होंने कहा, “जब आप मशहद में महिलाओं को सड़कों पर उतरकर सार्वजनिक रूप से अपने हिजाब जलाते हुए देखते हैं तो यह वास्तव में क्रांतिकारी बदलाव है। ईरानी महिलाएं परदे वाले समाज और अनिवार्य हिजाब के दौर का अंत कर रही हैं।”
ईरान में बीते कुछ सालों में कई प्रदर्शन हुए हालांकि उनमें से अधिकतर की वजह आर्थिक दुश्वारियों की वजह से उपजा गुस्सा था।
विरोध की नई लहर लेकिन ईरान के मौलवी के नेतृत्व वाले शासन के खिलाफ दिलों में भरे रोष को दिखा रही है और यह गुबार अनिर्वाय हिजाब के मुद्दे पर निकल रहा है।
ईरान में महिलाओं के लिये बुर्का व हिजाब पहनकर सार्वजनिक रूप से बाहर निकलना अनिवार्य है। इसमें भी हिजाब से उनके बाल पूरी तरह ढके होने चाहिए।
कई ईरानी महिलाओं ने, विशेष रूप से प्रमुख शहरों में, लंबे समय से अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर विरोध का रुख रखा है, जिसमें युवा पीढ़ी ढीले स्कार्फ और पोशाक पहन कर रूढ़िवादी पोशाक के दायरे को चुनौती देती हैं।
हालांकि सभी के लिए इसका अंत सुखद नहीं होता। राजधानी तेहरान में 22 वर्षीय महसा अमीनी को पुलिस ने हिजाब विरोधी रुख के चलते गिरफ्तार किया था और हिरासत में उसकी मौत हो गई थी।
अमीनी की मौत के बाद लगभग दो सप्ताह तक व्यापक अशांति रही और यह ईरान के अन्य प्रांतों में फैल गई है और छात्रों, मध्यम वर्ग के पेशेवरों और कामकाजी वर्ग के पुरुषों और महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर इसका विरोध किया।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)