अमेरिकी रिपोर्ट में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की बात
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो (Photo Credit- Instagram)

वाशिंगटन, 10 जून. भारत में धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों और भेदभाव का आरोप लगाते हुए बुधवार को एक अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिकी अधिकारियों ने देश में अल्पसंख्यकों को संविधान के तहत प्रदत्त पूर्ण संरक्षण प्रदान किये जाने की जरूरत पर जोर दिया है. अमेरिकी कांग्रेस द्वारा मान्यता प्राप्त ‘2019 अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट’ को विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने बुधवार को विदेश विभाग में जारी किया जिसमें दुनियाभर में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की घटनाओं का उल्लेख किया गया है.

भारत ने अमेरिका की धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी एक रिपोर्ट को पहले ही खारिज करते हुए कहा था कि वह अपने नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों पर किसी विदेशी सरकार के बोलने का कोई अधिकार-क्षेत्र नहीं मानता. रिपोर्ट के भारत वाले खंड में कहा गया है कि अमेरिकी अधिकारियों ने सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों, नागरिक संगठनों और धार्मिक स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं एवं विभिन्न समुदायों के धार्मिक नेताओं के साथ पूरे साल धार्मिक स्वतंत्रता को सम्मान देने और सहिष्णुता एवं परस्पर सम्मान को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया है. यह भी पढ़े | नाइजीरिया में बोको हराम ने 69 लोगों की हत्या की.

इसमें कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों, मीडिया, अंतर-समुदाय सद्भाव संगठनों तथा एनजीओ के साथ बातचीत में अमेरिकी अधिकारियों ने देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों की वैध चिंताओं पर ध्यान देने की जरूरत पर जोर दिया है, सांप्रदायिक बयानबाजी की निंदा की है और संविधान के तहत अल्पसंख्यकों को प्रदत्त संरक्षण पूरी तरह सुनिश्चित करने पर जोर दिया है. रिपोर्ट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अंबेसेडर एट लार्ज ने अक्टूबर में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के साथ बैठकों में धार्मिक एवं जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव का दावा करते हुए इस पर चिंता जताई थी जिनमें सांप्रदायिक हिंसा शामिल है.

रिपोर्ट में पिछले साल अगस्त में जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किये जाने और संसद में दिसंबर में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने का उल्लेख किया गया है. भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से स्पष्ट रूप से कहा है कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को समाप्त करना उसका आंतरिक मामला है.

भारत ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के संदर्भ में इस बात पर जोर दिया था कि इसका लक्ष्य पड़ोसी देशों के पीड़ित अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान करना है.

रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सीएए नागरिकता देने के लिए है, किसी वैध भारतीय नागरिक से नागरिकता लेने के लिए नहीं है.

इसमें कहा गया है कि नवंबर में उन्होंने कहा कि संविधान को पवित्र ग्रंथ मानना चाहिए. इसमें कहा गया कि कुछ अधिकारियों ने सीएए को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) से जोड़ा. रिपोर्ट में कहा गया कि मोदी ने 22 दिसंबर को देशभर में एनआरसी लागू होने पर किसी तरह की चर्चा को खारिज कर दिया था जिनमें गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पूर्व में दिया गया यह बयान भी शामिल है कि देशव्यापी एनआरसी होनी चाहिए ताकि हम हर घुसपैठिये की पहचान करें और हमारे देश से बाहर कर दें.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि सत्तारूढ़ भाजपा समेत हिंदू बहुल दलों के कुछ अधिकारियों ने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भड़काऊ सार्वजनिक बयान दिये या सोशल मीडिया पर पोस्ट डालीं. इसमें आरोप हैं, ‘‘अधिकारियों ने गोरक्षा के नाम पर हिंसा करने वालों पर भी कार्रवाई नहीं की जिनमें लोगों की हत्या, भीड़ हिंसा और डराना-धमकाना शामिल है. कुछ एनजीओ के अनुसार अधिकारियों ने ऐसा करने वालों को अकसर अभियोजन से बचाया और पीड़ितों के खिलाफ आरोप दायर किये.’’

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