Sundar Lal Bahuguna: हिमालय के रक्षक जिनका जीवन प्रकृति को था समर्पित
इस आंदोलन के दौरान लोगों ने वृक्षों को प्यार करने तथा उन्हें बचाने का संदेश देने के लिए उन्हें अपने गले से लगाया और इसीलिए इसे 'चिपको' नाम दिया गया. यह उस कृतज्ञता की अभिव्यक्ति भी थी जो जंगल मनुष्यों को ऑक्सीजन, लकड़ी, आश्रय और दवाओं के रूप में देता है. बहुगुणा के करीबी सहयोगी याद करते हैं कि वह कहा करते थे कि 'प्रकृति को कुचलने से विकास नहीं हो सकता.'
देहरादून: गांधीवादी सांचे में ढले प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा (Sundar Lal Bahuguna) हिमालय के जंगलों की रक्षा के लिए एक समर्पित योद्धा थे. बहुगुणा का शुक्रवार को कोविड-19 (Covid-19) के चलते निधन हो गया . विकास के नाम पर जंगलों को काटे जाने से रोकने के लिए सत्तर के दशक में गौरा देवी सहित कई समर्पित पर्यावरण (Environment) कार्यकर्ताओं के साथ बहुगुणा ने चिपको आंदोलन (Chipko Movement) शुरू किया था. Corona Vaccination: कोरोना वायरस के खिलाफ सरकार की मुहिम, देशभर में अब तक 17.72 करोड़ लोगों को लगा टीका
इस आंदोलन के दौरान लोगों ने वृक्षों को प्यार करने तथा उन्हें बचाने का संदेश देने के लिए उन्हें अपने गले से लगाया और इसीलिए इसे 'चिपको' नाम दिया गया. यह उस कृतज्ञता की अभिव्यक्ति भी थी जो जंगल मनुष्यों को ऑक्सीजन, लकड़ी, आश्रय और दवाओं के रूप में देता है. बहुगुणा के करीबी सहयोगी याद करते हैं कि वह कहा करते थे कि 'प्रकृति को कुचलने से विकास नहीं हो सकता.'
बहुगुणा के साथ लंबा जुड़ाव रखने वाले प्रख्यात पर्यावरणविद अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि वह गांधी के प्रतिबिंब थे और वह उन मूल्यों का वैयक्तिकरण थे जिनका प्रतिनिधित्व महात्मा गांधी ने किया. यहां स्थित एक गैर सरकारी संगठन ‘हैस्कों’ के प्रमुख पद्मश्री जोशी ने कहा, 'अपनी सादगीपूर्ण जीवन शैली और जीवन में एकमात्र लक्ष्य का पीछा करने वाले बहुगुणा सही मायने में गांधीवादी थे.' जोशी ने कहा कि चिपको नेता का दृढ़ विश्वास था कि पारिस्थितिकीय स्थिरता के बिना आर्थिक स्थिरता संभव नहीं है.
जोशी ने कहा कि कोविड-19 का शिकार बने बहुगुणा की मृत्यु भी एक छिपी हुई चेतावनी है क्योंकि कोरोना वायरस संक्रमण भी मनुष्य द्वारा प्रकृति से की गयी अंधाधुंध छेड़छाड़ का ही नतीजा है. उनके जीवन पर सबसे पहला प्रभाव प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्रीदेव सुमन का था जिन्होंने उन्हें 13 साल की छोटी सी उम्र में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. बाद में विमला से शादी के बाद उन्होंने पारंपरिक राजनीति से दूर होने तथा अपना जीवन जंगलों को बचाने के लिए समर्पित करने का फैसला किया.
9 जनवरी 1927 को टिहरी जिले में जन्मे बहुगुणा को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मविभूषण तथा कई अन्य अलंकारों से सुशोभित किया गया था. चिपको आंदोलन के अतिरिक्त बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़चढ़ कर विरोध किया जिसके लिए उन्होंने 84 दिन लंबा उपवास भी रखा था. एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था.
टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा. उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया. टिहरी राजशाही का भी उन्होंने कड़ा विरोध किया जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा. वह हिमालय में होटलों के बनने और लक्जरी टूरिज्म के भी मुखर विरोधी रहे. बहुगुणा ने हिमालय और पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कई बार पदयात्राएं कीं. वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कट्टर विरोधी रहे. बहुगुणा के निधन पर एक अन्य प्रसिद्ध पर्यावरणविद चंडीप्रसाद भटट ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है. उन्होंने कहा,' वह एक प्रखर सामाजिक कार्यकर्ता थे जिनका जाना हम सभी के लिए दुखदाई है.'
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